मैनपुरी का गढ़ बचाना अखिलेश के लिए कितना जरूरी है

उत्तर प्रदेश में मैनपुरी और रामपुर में उपचुनाव होना है। मैनपुरी की लोकसभा सीट मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद खाली हुई है। वहीं दूसरी तरफ रामपुर की विधानसभा सीट पर आजम खान की सदस्यता जाने के बाद उपचुनाव के हालात बने हैं। यह उपचुनाव समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं हैं।

पिता के निधन के बाद पहली बार अखिलेश किसी चुनावी मोर्चे पर उतरेंगे। ऐसे में उनके सामने कई अहम सवाल रहेंगे? इसमें भी सबसे अहम सवाल यह है कि क्या आजमगढ़ की लोकसभा सीट के रूप में सपा का एक गढ़ गंवाने के बाद अखिलेश, मैनपुरी और रामपुर के किले की हिफाजत कर पाएंगे?

सपा के लिए इस बार परिस्थितियां अलग हैं। इनमेें सबसे महत्वपूर्ण है, सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव का न होना। मुलायम सिंह यादव का पूरे लोकसभा क्षेत्र में जबर्दस्त समर्थन हुआ करता था। अब सपा के सामने उसी समर्थन को बरकरार रखना, सबसे बड़ी चुनौती है। दूसरी तरफ पूर्व में भाजपा का संगठन बहुत मजबूत नहीं था।

करहल, किशनी और जसवंतनगर विधानसभाओं के तो सैकड़ों बूथों पर तो एक कार्यकर्ता तक नहीं था। परंतु वर्ष 2014 में केंद्र की सरकार और फिर 2017 में प्रदेश में सरकार बनने के बाद संगठन का जबर्दस्त विस्तार हुआ है। वर्तमान में हर बूथ पर भाजपा की पूरी मौजूदगी है। बीते चुनावों में उसका मत प्रतिशत भी बढ़ा है। ऐसे में मुकाबला दिलचस्प होने की संभावना जताई जा रही है। जीत का रिकार्ड मुलायम के नाम

इस सीट पर जीत का रिकार्ड मुलायम सिंह यादव के ही नाम है। मुलायम सिंह यादव यहां पांच बार सांसद बन चुके हैं। उनके बाद सबसे ज्यादा जीत बलराम सिंह यादव के नाम हैं। बलराम सिंह यादव एक बार कांग्रेस की टिकट पर और दो बार सपा की टिकट पर चुनाव जीते थे।
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