मैनपुरी: बेवर ब्रिटिश साम्राज्य बाद के खिलाफ उठती बुलन्द आवाज की क्रान्ति देश में चौतरफा फैल गयी थी । बात है सन् 1942 की जब 9 अगस्त को गाँधीजी ने ” करो या मरो ” व ” अंग्रेजो भारत छोड़ो का दस्तावेजी नारा दिया था। उधर ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ शहीद- ए – आजम भगत सिंह , अशफाक उल्ला खाँ, रामप्रसाद बिस्मिल की आवाज से पहले चम्बल के बीहड़ में क्रान्तिवीर नायक पंडित गेंदालाल दीक्षित द्वारा “मातृवेदी” संगठन बनाकर ब्रितानी हूकूमत की चूलें पहले ही हिला दी थी । ऐसे में भला मैनपुरी का बेवर इलाका अछूता कैसे रह जाता।
बेवर की धरती अपनी कोख से बहुत पहले से क्रांन्तिवीरों को पैदा करती आयी थी।इस राष्ट्रव्यापी इन्कलाबी सैलाब की कुछ लहरें उस वक्त मैनपुरी जनपद में भी पहुंची थी । महाराजा विदुर की ऐतिहासिक बेवर नगरी इन क्रांति लहरों का पावन स्पर्श पाकर निहाल हो गयी थी । राष्ट्रीय स्वाधीनता के महायज्ञ में अपनी अमूल्य आहुतियां देकर हमारे पूर्वजों ने इसे शहीद नगरी बना दिया । 14 अगस्त 1942 को मिडिल स्कूल से देश के लिए मर मिटने को तैयार नयी पीढ़ी के नौजवान जिनकी उम्र 12 से 14 वर्ष थी जो कक्षा 6-8 के उन उभरते क्रान्तिवीरों ने उस क्रान्ति के ज्वाला का उदघोष करते हुये बेवर थाने को घेर लिया और अपने इन्कलावी तेवर को दिखाते हुये थाने में तिरंगा झण्डा फहरा दिया ।
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