एटा आंकड़ों पर नजर डालें तो यह खतरनाक हैं। पिछले चार सालों में यहां 60 फीसदी तक किडनी रोगियों की संख्या बढ़ गई है।
मेडिकल कॉलेज में वर्ष 2019 में डायलिसिस यूनिट पीपीई मॉडल पर शुरू की गई। पहले साल में मार्च से दिसंबर तक इस यूनिट में 4200 मरीजों की डायलिसिस की गई।
इनमें 15 प्रतिशत युवाओं ने डायलिसिस कराई। धीरे-धीरे इस संख्या में इजाफा हुआ। वर्ष 2022 में डायलिसिस कराने वाले कुल लोगों की संख्या 9124 पर जा पहुंची। कुल मरीज तो लगभग दोगुना बढ़े। लेकिन युवाओं की संख्या चार गुना बढ़ गई।
मेडिकल कॉलेज के फिजीशियन डॉ. मानवेंद्र प्रताप सिंह बताते हैं कि युवाओं की किडनी खराब होने का बड़ा कारण बिगड़ा हुआ खानपान है। इससे वह दूसरी गंभीर बीमारियों की चपेट में भी आ रहे हैं। किडनी खराब होने से एरिथ्रोपोइटिन हार्मोन बनना कम हो जाता है। इससे हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता है। ऐसे में किडनी फेल होने की आशंका बढ़ जाती है।
मेडिकल कॉलेज के चेस्ट फिजीशियन डॉ. जितेंद्र अग्रवाल ने बताया कि एरिथ्रोपोइटिन हार्मोन किडनी को नियंत्रित करता है। अगर किडनी खराब होना शुरू हो जाएगी तो एल्डोस्टेरोन हार्मोन अनियंत्रित हो जाता है। इसकी वजह से व्यक्ति का ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता है। यह किडनी फेल होने का कारण बनता है। साल दस साल बढ़े आंकड़े
वर्ष |
मरीज |
युवाओं |
Comments are closed.