मुरैना। 10 साल की बच्ची अद्रिका और उसके 14 साल के भाई कार्तिक को बहादुरी की श्रेणी में राष्ट्रीय बाल पुरस्कार के लिए चुना गया है। पिछले साल 2 अप्रैल को मध्यप्रदेश के मुरैना में भारत बंद के दौरान पथराव और
फायरिंग के बीच ट्रेन में फंसे मुसाफिरों को खाना पहुंचाने के लिए इन्हें यह अवॉर्ड मिलेगा। राष्ट्रपति 24 जनवरी उन्हें सम्मानित करेंगे। अद्रिका और कार्तिक की कहानी उन्हीं की जुबानी।
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‘‘बीते साल 2 अप्रैल की बात है। भारत बंद आंदोलन के चलते स्कूल में छुट्टी थी। हम दोनों टीवी देख रहे थे। टीवी पर देखा कि आंदोलन हिंसक हो गया है। हमारे शहर में फायरिंग और पथराव हो रहा है। उपद्रवियों ने ट्रेनें तक रोक दी हैं। हजारों यात्री छह घंटे से भूखे-प्यासे फंसे हुए हैं।’’
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‘‘हम दोनों ने तय किया कि ट्रेन में फंसे यात्रियों की मदद करनी चाहिए। पापा घर में नहीं थे। हमने चुपके से खाने-पीने का सामान एक थैले में भरा और पास में स्थित (300 मीटर दूर) स्टेशन के लिए चल पड़े। घर से निकलते वक्त मां ने टोका…, पूछा कहां जा रहे हो। इस पर हमने कहा- यहीं हैं।’’
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‘‘रास्ते में पुलिसवालों ने रोका। हमसे कहा कि घर में रहो, यहां खतरा है। पर हम दोनों किसी तरह बचते-बचाते ट्रेन तक जा पहुंचे। ट्रेन में मौजूद लोगों को हमने खाना दिया तो किसी को भरोसा ही नहीं हुआ।’’
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‘‘एक महिला ने कहा कि तुम लोग खाना नहीं लाते तो मेरी बच्ची का क्या होता। फिर हम लोग घर लौटे तो दादाजी ने खूब डांट लगाई। जब हमने उन्हें बताया कि हम ट्रेन में फंसे लोगों को खाना पहुंचाने गए थे तो वे चुप हो गए। और उन्होंने हमें गले लगा लिया। अवॉर्ड मिलने पर सबसे ज्यादा खुशी दादाजी को ही हो रही है।’’
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पिता ने अवार्ड के लिए किया था ऑनलाइन आवेदन
बच्चों के पिता ने बताया कि उन्होंने इस अवॉर्ड के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की वेबसाइट के जरिए ऑनलाइन आवेदन किया था। बाद में दिल्ली से दो अफसरों की टीम मुरैना आई थी और उन्होंने घटना की सत्यता की जांच भी की थी। अद्रिका और कार्तिक ने कहा कि वे दोनों बड़े होकर आईएएस और आईपीएस अिधकारी बनना चाहते हैं।
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अद्रिका 20 हजार लोगों को आत्मरक्षा की ट्रेनिंग भी दे चुकी
अद्रिका ताइक्वांडो में ब्लैक बेल्ट हैं। वो 20 हजार स्कूली बच्चों को आत्मरक्षा की ट्रेनिंग दे चुकी है। इसलिए उसे ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान का ब्रांड एंबेसडर भी बनाया गया है।