बिहार: मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत और डिजिटल इंडिया के दौर में, सरकार शिक्षा क्षेत्र को लगातार नज़रअन्दाज़ कर रही है, जो हर मायनों में इन सभी योजनाओं की रीढ़ की हड्डी है। आज के समय में जिस तरह की शिक्षा व्यवस्था बिहार में है, वह किसी हद तक संतोषजनक नहीं हैं। किसी भी राज्य के विकास में शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान होता है। हाल के दशकों में देश के आर्थिक, सामाजिक क्षेत्रों में कई नीतिगत सुधार किये गए है, जिसके फलस्वरुप देश में तेजी से विकास हो रहा है।
इन विकास योजनाओं ने अन्य क्षेत्रों के साथ साथ बिहार में शिक्षा व्यवस्था में भी गति प्रदान की है, लेकिन इतने विकास के बाद भी हमारे शिक्षा व्यवस्था की आधारभूत समस्याए दूर नहीं की जा सकी है। सरकार को वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में जरुरी बदलाव लाने की बहुत आवश्यकता है, इन बदलावों के तहत सरकार को विशेष रूप से प्रारम्भिक शिक्षा की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि प्रारंभिक शिक्षा से ही बच्चों की नींव को मज़बूत बनाया जा सके।
जो की राज्य के साथ साथ देश के विकास में भी सहायक होंगी! दो तरह की शिक्षा व्यवस्था है अमीरों के लिए अलग जिनके बच्चे नामी प्राइवेट स्कूल में जाते हैं,गरीबों के लिए अलग जिनके बच्चे फटे कपड़े बिना बैठने की व्यवस्था के सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते हैं। इससे साफ मालूम चलता है कि प्राइवेट स्कूलों की अपेक्षा सरकारी स्कूलों के छात्र में कितना अंतर है! और शिक्षा असुविधा का घोर अभाव है। आखिर क्या? कारण है कि कोई भी डॉक्टर इंजीनियर वकील यहां तक कि उस स्कूल के शिक्षक भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाना चाहते हैं। यही वजह है जो छत्रों के बीच हीन भावना को जन्म देती है! और सरकारी स्कूल के छात्रो को गरीब या निचले तबके का समझा जाता है!
कहीं भी किसी भी प्रकार के समारोह का आयोजन होता है तो वहां लोग हजारों की संख्या में जाते है लेकिन क्या कभी आपने अपने अपने गांव के विद्यालय में झांकने की कोशिश की है। कि वहां के शिक्षक आते हैं या नहीं अगर आते हैं तो पढ़ाते हैं कि नहीं,अगर पढ़ाते हैं तो बच्चों को क्या पढ़ाते हैं! हमें लगता है कि इन सब बातों से आप लोगों को कोई मतलब नहीं? और ज़्यादातर लोगों को इस बात से फ़र्क़ ही नहीं पड़ता की सरकारी स्कूलों में बच्चो की क्या व्यवस्थता है!
पूरे देश के प्राइवेट स्कूलों को बंद करा देना चाहिए ऐसा मेरा कहना नहीं बिहार के उन गरीब बच्चो का उन परिवारों का जिनके बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते है सही है या गलत इसका निर्णय आप ही लोग करेंगे सभी बच्चों के साथ एक ही तरीके का व्यवहार करना चाहिए चाहे वह डॉक्टर के बच्चे हो या फिर किसान का या फिर मजदूर तभी इस देश में समान शिक्षा लागू हो सकती है! क्या यह विचार उचित है ? यह एक सवाल आप सभी पाठक गण के लिए!
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