अश्वमेध में घोड़े कम पड़ जाएं तो खच्चर नहीं लाते- कुमार विश्वास

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‘कुंभ देख लिया महाकवि?’, हाजी पंडित ने चमकते हुए पूछा। मैंने हाजी को लताड़ा, ‘अमां हाजी, कैसे धर्म प्रबंधक हो! अभी कुंभ शुरू कहां हुआ है? हां, राजनीतिक पंडितों ने ज़रूर अभी से यूपी की अस्सी सीटों के जुगाड़ में डुबकी लगानी शुरू  कर दी है।
महागठबंधन की छपाक-छपाक से लेकर अपने दल तक की छपर-छपर तक तरह-तरह की आवाज़ें गूंज रही हैं। कुछ स्विमिंग पूल के रसिया गंगाजी में कूद तो गए हैं, लेकिन असली इनफिनिटी पूल का विस्तार देखते ही गुडुप-गुडुप करने लगे हैं। अपनी लहर का दावा करने वाले कई पुराने लहरिये गंगा के बुलावे पर गंगाजी की धार में ही तख़्ती ढूंढते नज़र आ रहे हैं।’
हाजी ने पहली बार मुझे इतना सारा एक बार में बोलते हुए सुना था। बोले, ‘वो तो ठीक है महाकवि! लेकिन एक कुंभ तो दुबई में हो भी लिया।’ ‘तुम भी हाजी कभी-कभी भावनाओं में बह जाते हो! इवेंट मैनेजमेंट और राजनीति में फ़र्क़ होता है।’
हाजी को राजनीति सिखाने वाला मैं कौन होता था। सो हाजी ने पलटवार किया, ‘अच्छा! और जैसे तुमने पिछले पांच साल में देखा ही नहीं है कि इवेंट मैनेजमेंट के सहारे पटरी से उतरी राजनीति कैसे चलाई जाती है!’
मैंने भी हाजी से कम न पड़ने का इरादा कर लिया था, ‘पर उनकी भी कहां चल रही है हाजी! भाई लोगों को लगा कि एक साथ कई घोड़े निकाल दो तो विश्व-विजय जल्दी हो जाएगी। लेकिन अश्वमेध में घोड़े कम पड़ जाने का मतलब यह थोड़ी है कि
खच्चरों को काम पर लगा दो! अब देख लो, पांच राज्यों में मिट्टी हुआ पथ जहां-तहां रुका पड़ा है!’ हाजी को बात पसंद आई। उन्होंने जोड़ा, ‘रथ तो रुका सो रुका महाकवि, मज़े की बात तो ये है कि बजाए घोड़े और खच्चर पहचानने के, बंदे लकड़ी के पहिये में पंक्चर ढूंढने में लगे हैं।
मौके का फ़ायदा उठाकर विपक्ष भी मुहल्ले के बदमाश बच्चों की तरह परेशान रथाधीश पर कभी रफाल, तो कभी सीबीआई, तो कभी एससी-एसटी एक्ट के गोले बना-बनाकर फेंक रहा है।’
मैंने कहा, ‘ऐसे में तो भाजपा के लिए बड़ी मुश्किल है हाजी। उधर बुआ-बबुआ इकठ्ठे हो गए, इधर कांग्रेस ने तो लगता है संजीवनी सूंघ ली है। शिव सेना ने तो लंबी वाली जीभ चिढ़ा दी।
अब?’ हाजी बोले, ‘अब ये सिल्वर लाइनिंग इन द क्लाउड ढूंढ रहे हैं महाकवि- डूबते को तिनके का सहारा। हद तो ये है कि कल एक भाजपाई पूरे कॉन्फिडेंस से बोल रहा था कि देख लेना ममता दीदी हमारे साथ आएंगी।
मैंने पूछा कि ऐसा क्यों लगता है, तो बोला कि कल दीदी ने कहा कि सीबीआई मामले में मोदी जी ने लक्ष्मण रेखा पार कर ली है। लक्ष्मण का नाम लेकर ममता दीदी निश्चित रूप से राम मंदिर मामले में हमारा साथ देने का इशारा दे रही हैं।’
मैंने हंसी और आश्चर्य के मिश्रित भाव में पूछा, ‘हें! ये कौन सी बात हुई?’ हाजी भी हंसे। बोले, ‘ऐसा है महाकवि! जहां लॉजिक ख़त्म होता है, वहां से मैजिक शुरू हो जाता है। तो अब भाई साहब मैजिक की तलाश में हैं। उम्मीद पर दुनिया क़ायम है। बक़ौल हबीब सिद्दीक़ी,
आफ़ियत की उम्मीद क्या कि
            अभी
दिल-ए-उम्मीद-वार बाक़ी है

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