नैनीताल:उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने प्रदेश में लोकायुक्त की नियुक्ति और लोकायुक्त संस्थान को सुचारू रूप से संचालित किए जाने को लेकर गौलापार निवासी रवि शंकर जोशी की जनहीत याचिका पर सुनवाई की। मामले की सुनवाई के बाद मुख्य न्यायधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खण्डपीठ ने राज्य सरकार से कल तक जवाब पेश करने को कहा है।मामले की अगली सुनवाई 27 जून को तय की गई है। पिछली तिथि में न्यायालय ने सरकार से शपथपत्र के माध्यम से यह बताने को कहा था कि लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए अभी तक क्या किया गया और संस्थान जब से बना है तब से 31 मार्च 2023 तक इस पर कितना खर्च हुआ है, इसका वर्ष वार विवरण दाखिल करें।
लेकिन सरकार ने अभी तक इस पर जवाब पेश नहीं किया।जनहित याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार द्वारा अभी तक लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं की गई है। जबकि संस्थान के नाम पर हर वर्ष 2 से 3 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। जनहित याचिका में कहा गया है कि कर्नाटक और मध्य प्रदेश में लोकायुक्त ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की है। लेकिन उत्तराखंड में तमाम घोटाले हो रहे हैं। हर एक छोटे से छोटा मामला उच्च न्यायालय में लाना पड़ रहा है।जनहित याचिका में यह भी कहा गया है कि वर्तमान में राज्य की सभी जांच एजेंसी सरकार के अधीन हैं जिसका पूरा नियंत्रण राज्य के राजनैतिक नेतृत्व के हाथों में है।
वर्तमान में उत्तराखंड राज्य में कोई भी ऐसी जांच एजेंसी नहीं है जिसके पास यह अधिकार हो की वह बिना शासन की पूर्वानुमति के किसी भी राजपत्रित अधिकारी के विरुद्ध भ्रष्टाचार का मुकदमा पंजीकृत कर सके। स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के नाम पर प्रचारित किया जाने वाला विजिलेंस विभाग भी राज्य पुलिस का ही हिस्सा है जिसका सम्पूर्ण नियंत्रण पुलिस मुख्यालय सतर्कता विभाग या मुख्यमंत्री कार्यालय के पास ही रहता है।एक पूरी तरह से पारदर्शी, स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच व्यवस्था राज्य के नागरिकों के लिए कितनी महत्वपूर्ण है, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यही है की पूर्व के विधानसभा चुनावों में राजनैतिक दलों द्वारा राज्य में अपनी सरकार बनने पर प्रशासनिक और राजनैतिक भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए एक सशक्त लोकायुक्त की नियुक्ति का वादा किया गया था, जो आज तक पूरा नहीं हुआ है।
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