गोरखनाथ मंदिर में मुख्यमंत्री का उद्बबोधन

गोरखनाथ मंदिर में सप्त दिवसीय कथा के सातवें व विराम दिवस पर गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री का उद्बबोधन

RASHTRIYA JUDGEMENT NEWS

गोरखपुर।

गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर आयोजित सात दिवसीय कथा के सातवें व विराम दिवस के अवसर पर श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए गोरक्षपीठाधीश्वर महन्त योगी आदित्यनाथ ,  मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश ने अपने संबोधन में कहा कि भगवान् भोलेनाथ को देव और दानव दोनों पूजते हैं, वे यथाशीघ्र अपने भक्तों पर कृपा करते हैं, इसीलिए उन्हें आशुतोष कहा जाता हैं। शिव का अर्थ कल्याणकारी होता है। शिव के भक्तों का कभी अमंगल नहीं होता। भगवान् राम ने भी कहा है कि शिव मेरी आराध्य है और जो व्यक्ति शिव से विमुख होगा वह मेरा अपना नहीं होगा, क्योंकि शिव से द्रोह करने वाला राम का भक्त हो हीं नहीं सकता, यह सारी बातें गोरक्षपीठाधीश्वर ने श्री रामचरितमानस की चौपाई का उदाहरण देते हुए विस्तृत व्याख्या किया।
उन्होंने कहा कि भगवान शिव एक ऐसे देवता हैं जिनको संपूर्ण भारत के प्रत्येक गांव में, यहां तक कि प्रत्येक घरों में लोग शिवलिंग स्थापित करके पूजा करते हैं। हमारी सनातन परंपरा में प्रातः भगवान शिव को जल देकर के हीं लोग अपने दैनिक क्रिया का प्रारंभ करते हैं।

कथा व्यास पं. बालकदास जी महाराज ने कहा कि मनुष्य को अपने जीवन में देने की आदत डालनी चाहिए, क्योंकि परमात्मा के द्वारा हमें जो कुछ भी प्राप्त होता है वह परमार्थ के लिए प्राप्त होता है परमार्थ के साथ-साथ स्वार्थ की पूर्ति करना हमारा धर्म होना चाहिए, केवल स्वार्थ की पूर्ति करना यह पशु तुल्य जीवन का लक्षण है। संसार में जो कुछ भी है उसमें हमारा कुछ नहीं है। पूरा संसार परमात्मा का है और शिवमय है। हमारे वेदों में भी कहा गया है कि ” ईशा वास्यमिदं सर्वम्” । अर्थात्‌ यह सब कुछ परमेश्वर के द्वारा बनाया गया है, हमें इन सब का उपभोग त्याग भावना से करना चाहिए संग्रह की भावना से नहीं करना चाहिए और प्रयास करना चाहिए कि हमारे पास जो कुछ भी हो उसके द्वारा दूसरों का अधिक से अधिक लाभ हो, दूसरों की सेवा हो।

हम जीते जी जो दान तीर्थ व्रत कर सकते हैं वह कर लें, क्योंकि हमारा शरीर और सम्पत्ति नश्वर है और मरने के बाद किसी काम का नहीं होता।

दूसरी बात उन्होंने कही कि हमें सत्य के लिए लड़ना भी पढ़े तो वह धर्म होता है सत्य मार्ग पर चलते हुए प्राण त्याग भी मुक्ति का कारक बनता है। भगवान श्री राम व श्रीकृष्ण भी सत्य के लिए अपने जीवन में लड़ते रहे।
भगवान के शरण में शुद्ध भाव से जाकर प्रार्थना करना हमारा कार्य है हमारी विनती को सुनना भगवान का कार्य है। इस भाव को उन्होंने “तेरी चौखट पे आना मेरा काम है मेरी बिगड़ी बनाना तेरा काम है” इस भजन के द्वारा प्रस्तुत किया।

जिस प्रकार से किसी धातु को सात सात दिनों तक गोमय, गोमूत्र इत्यादि में रखकर फिर अग्नि में जलाकर भस्म बनाकर के उसको दिव्य औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है, उसी प्रकार से हम सभी 7 दिन भागवत, 7 दिन शिव पुराण आदि कथाओं को सुन सुन कर के भक्ति की अग्नि से शुद्ध कर अपने इस सामान्य जीवन को दिव्य जीवन बना सकते हैं और अपने साथ-साथ अपने समाज का भी उद्धार कर सकते हैं।

पुरुष का आचरण और स्त्री का आंचल पवित्र होना चाहिए। हमारा मन बहुत ही चंचल होता है वह हमारे आचरण को अपवित्र करने का प्रयास करता है इसलिए हमें सत्संग करते रहना चाहिए, तभी हमारा मन भक्ति में लगता है उन्होंने भजन “मन पंछी अलबेला साधो मन पंछी अलबेला” के द्वारा भक्तों को मन के बारे में गाकर बताया और कहा कि सत्संग और कथा बार-बार सुनना चाहिए क्योंकि यह मन एक बार में मानता नही है, इस मन का कभी भरोसा न करना, यह कहां ले जा सकता है।

इंद्रियां जिसे नचाती हैं वह पशु होता है किंतु जो इंद्रियों को नचाता है वह पशुपति कहलाता है और ऐसे हमारे भोलेनाथ हैं जिनको पशुपति नाथ भी कहा गया है।

कथा व्यास ने द्वादश ज्योतिर्लिंगों की कथा का अलग- अलग वर्णन करते हुए भिन्न भिन्न स्थानों में उनके प्राकट्य का उद्देश्य और उनकी अपनी- अपनी महिमा का गुणगान भी किया।

द्वादश ज्योतिर्लिंग की कथा को सुनने मात्र से उन सभी लिंगों के दर्शन का पुण्य फल प्राप्त होता है और यहीं हमारे सातों दिनों के कथा श्रवण का पुण्य लाभ है।

कथा का समापन आरती और प्रसाद वितरण से हुआ। संचालन डॉ॰ भगवान सिंह ने किया।

कथा में योगी कमलनाथ , मिथिलेश नाथ, संतोषदास सतुआबाबा, महन्त रविंद्र दास , प्रो यू पी सिंह, यजमान अवधेश सिंह, लाला बाबू, विकास जालान, डॉ संजीव गुलाटी आदि ने आरती की।
प्रातःकाल मन्दिर में आचार्य रामानुज त्रिपाठी वैदिक के नेतृत्व में रुद्राभिषेक का भी आयोजन किया गया।

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