कन्नौज जनपद के सरकारी अस्पतालों के हाल बेहाल

राष्ट्रीय जजमेंट न्यूज़

रिपोर्ट

कन्नौज: सरकारी महकमे में कोई न कोई महकमा अक्सर चर्चा का विषय बना रहता है इस समय कन्नौज जिले के सरकारी अस्पतालों की स्थिति डॉक्टरों के आलस्य और कर्मचारियों की लचर कार्यशैली चर्चा का विषय बनी हुई है। सरकार द्वारा मुफ्त दवा चिकित्सा अन्य संसाधनों का प्रयोग आम जनमानस के लिए निर्धारित किया गया है लेकिन धरातल पर ऐसा नहीं दिखता है कहीं एंबुलेंस के अभाव में जैसा कि छिबरामऊ अस्पताल में देखा गया इसके पहले तिर्वा मेडिकल कॉलेज में भी वीडियो और फोटो चर्चा में बना रहा की कहीं पुत्र अपने पिता को कंधे पर लेकर तो कहीं कोई अपने बुजुर्ग मरीज को पीठ पर लादे दवा के लिए अस्पताल में चक्कर लगाते देखे गए।

हद तो तब हो गई की अस्पताल के ओपीडी के समय कक्ष में मौजूद कुर्सी पर डॉक्टर साहब सोते नजर आए। मामला यहीं तक नहीं है ना ही ऐसा है कि डॉक्टर सतर्क नहीं डॉक्टर सतर्क हैं लेकिन वह सरकारी अस्पताल के लिए नहीं बल्कि अपने निजी चिकित्सालय में नियमित निशुल्क नहीं बल्कि मोटे शुल्क के साथ मरीजों का इलाज करते हैं यह बात सरकार से लेकर आला अधिकारियों के संज्ञान में रहती है लेकिन शिकायत होने पर या साक्ष्य प्राप्त होने पर भी जांच का विषय मानकर आगे के लिए बढ़ा दी जाती है। सरकार ने सामान्य बीमारियों से लेकर बड़ी बीमारियों तक के लिए निशुल्क उच्च गुणवत्ता की औषधि उपलब्ध करा रखी है लेकिन जनाब अस्पताल में दवा मौजूद ना होना बाहर की व्यक्ति विशेष मोनोपोली दवा ऊंचे कमीशन रेट पर लिखी जाती है।

मरीज डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप समझता है और उस दवा का सेवन भगवान के ही भरोसे करता है इसमें डॉक्टरों को ऊपर से मजबूत संरक्षण मजबूत ड्रग माफिया अच्छी पहुंच वालों का पूरा मंडल होता है। सरकारी अस्पताल में ऐसा नहीं है कि डॉक्टर ही कमीशन के रूप में ऊपरी विटामिन लेते हैं बल्कि अन्य कर्मचारी भी जैसे मेडिकल जांच के नाम पर वसूली प्रसूता को रिफर के बाद जिला अस्पताल ना पहुंचा कर क्षेत्रीय प्राइवेट अस्पतालों में झोलाछाप डॉक्टरों के सुपुर्द मोटी रकम के माध्यम से सौंप दिया जाता है मरीज वहां भी उस झोलाछाप को भगवान का रूप समझता है और ऑपरेशन जैसी क्रिया को अपने साथ अंजाम देने की स्वीकृत देता है तमाम घटनाएं घट जाती हैं तो सरकारी महकमा वही पुराना राग ,जांच प्रक्रिया के बाद उचित कार्रवाई करने का राग गुनगुनाता है और ठंडे बस्ते की तरफ ट्रांसफर कर दिया जाता है। इसी तरीके से अन्य कर्मचारियों की जेब भारी करने का काम ब्लड की प्राइवेट संस्थाओं से जांच करने के माध्यम से किया जाता है। आगे देखने की बात यह होगी की आला अधिकारी इस पर तत्काल गहराई से जांच करा कर कार्यवाही करेंगे या फिर वही पुरानी जांच प्रक्रिया किसी को सौंपकर ठंडे बस्ते में ले जाने के लिए मौखिक कहेंगे।

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