केंद्र सरकार ने विवादित स्थल को छोड़कर बाकी जमीन उनके मालिकों को लौटाने की सुप्रीम कोर्ट में दी अर्जी
नई दिल्ली. लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने अयोध्या मामले में मंगलवार को बड़ा कदम उठाया। उसने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर मांग की कि अयोध्या की गैर-विवादित जमीनें उनके मूल मालिकों को लौटा दी जाएं।
1991 से 1993 के बीच केंद्र की तत्कालीन पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने विवादित स्थल और उसके आसपास की करीब 67.703 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था। सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में इस पर यथास्थिति बरकरार रखने के निर्देश दिए थे।
अयोध्या में 2.77 एकड़ परिसर में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद का विवाद है। इसी परिसर में 0.313 एकड़ का वह हिस्सा है, जिस पर विवादित ढांचा मौजूद था और जिसे 6 दिसंबर 1992 को गिरा दिया गया था। रामलला अभी इसी 0.313 एकड़ जमीन के एक हिस्से में विराजमान हैं। केंद्र की अर्जी पर भाजपा और सरकार का कहना है कि हम विवादित जमीन को छू भी नहीं रहे।
33 पेज की अपनी अर्जी में केंद्र की मुख्य दलीलें
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‘‘केंद्र ने 2.77 एकड़ के विवादित परिसर समेत कुल 67.703 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था। अब हम अतिरिक्त और गैर-विवादित जमीन उनके मूल मालिकों को लौटाने की अनुमति चाहते हैं और यथास्थिति बरकरार रखने के 2003 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में बदलाव चाहते हैं।’’
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‘‘मुस्लिम समाज ने भी 0.313 एकड़ के मूल विवादित क्षेत्र पर ही अपना दावा जताया है, जहां 1992 से पहले विवादित ढांचा मौजूद था।’’
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‘‘1993 के कानून के तहत अधिग्रहित की गई शेष संपत्ति पर किसी भी मुस्लिम पक्ष की ओर से मालिकाना हक का दावा नहीं किया गया है।’’
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‘‘जमीनें उनके मूल मालिकों को लौटाने की मांग राम जन्मभूमि न्यास की है। न्यास ने अपनी 42 एकड़ जमीन मांगी है।’’
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‘‘सरकार को एक प्लान मैप बनाकर न्यास और अन्य मूल भूमि मालिकों को उनकी जमीन लौटा देने में सैद्धांतिक रूप से कोई आपत्ति नहीं है, बशर्ते विवादित स्थल तक उचित पहुंच बनी रहे।’’
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‘‘31 मार्च 2003 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ विवादित जमीन पर यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश देने की बजाय आसपास की अधिग्रहित जमीनों पर भी यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए थे।’’
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‘‘2003 के निर्देश में भी सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आने तक वहां यथास्थिति बनाए रखी जाए।’’
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‘‘1994 के फारुकी केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर केंद्र चाहे तो सेंट्रल एरियाज ऑफ अयोध्या एक्ट के तहत मूल विवाद के 0.313 एकड़ इलाके के अलावा अतिरिक्त अधिग्रहित जमीनें उनके मूल मालिकों को लौटा सकता है।’’
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‘‘गैर-विवादित जमीन लौटाने के फैसले की न्यायिक समीक्षा या उसकी संवैधानिक वैधता जांचने की जरूरत नहीं है।’’
सरकार गैरविवादित जमीन को छूएगी भी नहीं: जावडेकर
भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने प्रेस वार्ता में कहा, ‘मैं आपको बताना चाहता हूं कि सरकार गैरविवादित जमीन को छूएगी भी नहीं। हम गैरविवादित भूमि को राम जन्मभूमि न्यास और अन्य को वापस करना चाहते हैं। उनकी जमीनें हैं, जो करना है वही करेंगे। न्यास ट्रस्ट भी अयोध्या में राम मंदिर की मांग कर रहा है। वह गैरविवादित जमीन के बड़े हिस्से का मालिक है।’
– यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रयागराज में कहा, ‘मैं सरकार के इस कदम का स्वागत करता हूं। अब हमें भूमि के गैरविवादित हिस्से पर काम शुरू करने की अनुमति मिलनी चाहिए।’
– एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, एनडीए सरकार बाबरी मस्जिद विवाद के निष्पक्ष और स्वतंत्र निर्णय को रोकने की कोशिश करती रही है। इसके लिए वे अपनी पूरी ताकत के साथ सब कुछ करने की कोशिश कर रहें हैं।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने 30 सितंबर 2010 को 2:1 के बहुमत से 2.77 एकड़ के विवादित परिसर के मालिकाना हक पर फैसला सुनाया था। यह जमीन तीन पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला में बराबर बांट दी गई थी। हिंदू एक्ट के तहत इस मामले में रामलला भी एक पक्षकार हैं।
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हाईकोर्ट ने कहा था कि जिस जगह पर रामलला की मूर्ति है, उसे रामलला विराजमान को दे दिया जाए। राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़े को दे दी जाए। बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए।
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इस फैसले को निर्मोही अखाड़े और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।
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शीर्ष अदालत ने 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट में यह केस तभी से लंबित है।