श्रीमद्भागवत महापुराण कथा

राष्ट्रीय जजमेंट

गोरखपुर ।युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 54 वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 9वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित साप्ताहिक श्रीमद्भागवत कथा के पांचवे दिन व्यासपीठ से कथाव्यास वृंदावन मथुरा से पधारे भागवत भास्कर श्री कृष्णचंद्र शास्त्री “ठाकुर जी” ने कहा कि दुनिया में सबसे मधुर संबंध पिता और पुत्री का होता है पिता का जितना प्रेम पुत्री के प्रति होता है उतना पुत्र से नहीं होता। गोकुल में नंद बाबा के आनंद का सिंधु उमड़ पड़ा। सभी ग्वाल बाल आनंद मंगल होकर माखन और मिश्री की होली खेलने लगे ।भगवान का स्वरूप सच्चिदानंद है । वह जहां रहते हैं वहां आनंद ही आनंद होता है । जहां सनातन धर्म है वहीं नारायण का निवास होता है ।सनातन धर्म वही रहता है जहां संत और गायों का निवास होता है। गोकुल के गांव का सुंदर चित्रण करते हुए कथा व्यास ने कहा कि भारत देश का हृदय यहां के गांव में बसता है गांव के लोग इतने भोले होते हैं कि किसी नए आगंतुक का भरपूर स्वागत करते हैं । गोकुल ग्राम वासियों ने भेष बदलकर आई हुई पूतना का स्वागत करते हैं। पूतना 7 दिन के कन्हैया को दूध में जहर पिलाना चाहती है लेकिन भगवान ने उसके दूध के साथ उसके प्राण को भी पी लिया । खुद मैया ने कन्हैया को गोमूत्र से स्नान कराया और गाय की पूंछ से उनको झाड़। भागवत में इस प्रकरण को बल रक्षा स्त्रोत कहा जाता है। पूतना राक्षसी कोई और नहीं वही अविद्या जो संसार के जीवो को अपने वश में करके संसार में फंसाए रखती है। पूतना चतुर्दशी तिथि को आई थी । अविद्या भी चतुर्दशी है अर्थात पांच ज्ञानेंद्रिय, पांच कर्मेंद्रियां ,मन ,बुद्धि चित्त और अहंकार ये 14 है । और ये 14 अंगों को ग्रसित करती है लेकिन बाल रूप भगवान के ऊपर अविद्या का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। संस्कारों से युक्त जीवन ही संस्कृत होता है ।संस्कृत, संस्कृति और संस्कार ये तीनों जीवन के महत्वपूर्ण अंग है। संस्कृत की रक्षा करने से संस्कृति और संस्कार सुरक्षित रहते हैं। संस्कार युक्त जीवन ही श्रेष्ठ जीवन है। संस्कारों से व्यक्ति का पुनर्जन्म होता है । उपनयन संस्कार एक ऐसा संस्कार है जिससे मनुष्य का पुनर्जन्म होता है तथा उसका जीवन शुद्ध होता है । कलयुग की कुटिलता का नाश करने के लिए महर्षि वाल्मीकि ही गोस्वामी तुलसीदास बनकर आते हैं। भारत का सबसे महान संत महर्षि वाल्मीकि है।इन्होंने आदिकाल में राम कथा लिखा और संसार को राम के आदर्शों पर जीवन जीने की शिक्षा दी। कहते हुए कथा व्यास ने “कहन लागे मोहन मैय्या मैय्या” भजन गाकर मंत्र मुग्ध कर दिया। कथा व्यास कहते हैं कि दुनिया के शब्दकोश में मां से बड़ा कोई शब्द नहीं अपने पुत्र के लिए मां के पास जितना सामर्थ्य होता है। उतना किसी के पास नहीं होता है। बाल रूप भगवान जब मिट्टी खा लेते हैं तो यशोदा मैया उनके कान पड़कर डांट लगाती है। भगवान का कान भला दूसरा कौन पकड़ सकता है। यह अधिकार सिर्फ उनकी मैय्या यशोदा को ही था । मैया के कहने पर कन्हैया मुख खोल कर दिखाते हैं तो उनके मुंह में यशोदा मैय्या की पूरे ब्रह्मांड का दर्शन होता है । सनातन धर्म केवल धर्म नहीं पूरा विज्ञान है यह जीवन पद्धति है।
कथा का समापन आरती और प्रसाद से हुआ।

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