जब भी हारने लगे मन

राष्ट्रीय जजमेंट

जब भी हारने लगे मन कहते है की जब भी हमारा मन हारने लगे तो हम हिम्मत नहीं हारे। क्योंकि जीवन में बहुत बार ऐसी परिस्थिति आती है कि हम बहुत कोशिश कर लेते है लेकिन हमको परिणाम सही से नहीं प्राप्त होता है ।इस स्थिति में हमे भगवान पर छोड़ देना चाहिये ।भगवान पर छोड़ने का मतलब यह कभी भी नहीं है कि हम छोड़ दे सबकुछ भगवान पर बल्कि हमको यह करना है कि प्रमाणिक प्रयास करते रहना है निरन्तर परिणाम की डोर भगवान पर छोड़ना हैं। हार जीत तो एक दूसरे के विलोम शब्द हैं |पर दोनों में समान रहना ही मनुष्यता की पहचान है|किसी ने सही कहा है – झूठी शान के परिंदे ही ज्यादा फडफडाते हैं| बाज की उडान में कभी आवाज नहीं आती| कैसे नादान हैं हम दुख आता है तो अटक जाते हैं और सुख आता है भटक जाते हैं| जहाँ दो बरतन रहते, उनका आपस मे टकराना तो है सम्भव। फिर भी हर बरतन का अपना-अपना महत्व। एक ही रसोई मे वे रहते साथ-साथ। मनुष्य मन भी है बरतन के समान। जो टकराव के बाद भी है एक-दुसरे के लिए जरुरी है तो कभी कटुता का मैल क्यों जमाये बस बात आई-गई करनी हो अपनी मजबूती। सरल मन ही है इसकी सबसे बङी कुंजी। मौत से ज्यादा भयभीत है दुनियां, मौत की आहट से। वर्तमान की समस्या से अधिक चिंतित है,आने वाले कल से।कमोबेश हर प्राणी की यही कहानी है,यही हकीकत है । हम सच्चाई को आत्मसात कर सकें इसकी बङी जरूरत है। तभी तो कह रहे हैं भगवान ! यह तो तुम्हारी कोशिश का मात्र एक दौर है न कि अन्तिम छोर यानी IT IS JUST A BEND, NOT THE END.इस तरह ज्यों-ज्यों यह चिन्तन गहन होगा मन उत्साहित होता रहेगा।
प्रदीप छाजेड़
(बोरावड़ )

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