प्राचीन व वर्तमान काल में नारी शिक्षा

राष्ट्रीय जजमेंट

वो भी एक युग था जब सभ्यता और शिक्षा कम थी और आम आदमी की जीविका चलाने के लिये वस्तुओं का आदान प्रदान ही माध्यम था। उस युग में प्रगति कम थी पर पारस्परिक स्नेह और मन की शांति बहुत थी।मन के अंदर छल कपट,व्यभिचार और संग्रह आदि की सीमा नहीं के बराबर थी। समय के साथ हर क्षेत्र में प्रगति की शुरुआत हुयी।आपसी लेन-देन में मुद्रा का प्रयोग होने लगा। एक आदर्श-शांतिमय-सुखद जीवन जीने के कई गुर हैं । जो सरलता-सद्भाव – समता-सेवा-सहयोग – प्रेम सामंजस्यता आदि के साथ में जीवन जी सकता है । जीवन जीना भी एक कला हैं । इस जीवन में पारंगत वही बन सकता है जिसने कुछ सहना ,सही समय पर सहज भाव से कुछ कहना आदि नारी के समान गुणों को सीखा । जैसे – कभी पीया शब्दों का अमृत तो कभी सहा बाण भी तीखा आदि ।जिसका ह्रदय हो मनोमालिन्य रहित हो सबके प्रति प्रमोद भाव- मैत्री भावना सहित ।तत्पर हो ,बेहिचक कर्म दान ,सेवा दान हेतु , चलने के लिए हो विवेक और स्नेह आदि का सुदृढ़ सेतु । यथार्थतः यही हैं नारी के समान गुणों की तरह संतुष्ट जीवन के सुंदर -सफल स्रोत , वही तो हैं समझदार – जो हों इन महकते गुणों से ओतः-प्रोत । समता के मज़बूत तिनकों से बनता है सुखी- समृद्ध- संतुष्ट जीवन का परिवेश । मैंने मेरे जीवन में देखा व अनुभव किया है कि प्राचीन काल में नारी की शिक्षा बहुत कम व नगण्य थी । शिक्षा का स्तर भले ही कम हो लेकिन घर की सार – सँभाल , अपनापन , समर्पण आदि अतुल्य व बेजोड़ था । उस समय घड़ी भी नहीं थी । रेत की शीशी चलने के क्रम में कम ज्यादा रहने के अनुमान के आधार पर प्रातः 3-4 बजे उठना , गेहूँ – दाल आदि घटी से पिसना , घर के सारे काम खाना , साफ – सफाई आदि हाथ से करना , बच्चे – बूढ़ों की देखभाल सार – सँभाल करना आदि – आदि । मैंने देखा अनुभव किया है दिवंगत मेरे दादीसा , बाई माँ ममी , काकीसा आदि – आदि प्रातः काम सम्पन्न करने के साथ – साथ धर्म – ध्यान का समय भी निरन्तर रोज सुनियोजित रखते थे । प्रातः 8 बजे के आस – पास काम सम्पन्न कर महाराज के व्याख्यान में जाना 10 बजे आना फिर खाना बनाकर महाराज की गौचरी की भावना भाना , व्रत निपजाना आदि – आदि क्रम भी रोज चलता था । अपने अपने क्षेत्र में पुरुष हो या महिला सबकी अपनी अहम भूमिका है सबके सहयोग से घर परिवार चलता है दोनों के सहयोग की अपेक्षा होती है घर परिवार चलाने में। हमारे नवें आचार्य गुरुदेव तुलसी जी ने तो औरतों के लिए शिक्षा के क्षेत्र में या कोई भी और क्षेत्र में बहुत बहुमूल्य अवदान दिए हैं।भगवान महावीर ने भी महासती चनदनबाला को साध्वी प्रमुखापद देकर जैन धर्म में चारों तीर्थ साधु-साध्वी,श्रावक-श्राविका के बराबर का सम्माननीय स्थान दिया है ।उससे भी पहले भगवान ऋषभ के समय से ही चल रहा है ये सब।हमें अपनी सोच को सकारात्मक रखने की सब को अपने समान समझने के विवेक की जरूरत है। महिलाओ ने आज बहुत अपने आपको सफलता की उच्चाइयों तक पहुंचाया है । शिक्षा के क्षेत्र में हो या कोई भी ओर क्षेत्र लेकिन उसका श्रेय पुरुष वर्ग को भी जाता है । उनके सहयोग भी अपेक्षित है नारी की जिंदगी में।महिला और पुरुष दोनों का सहयोग सोने में सुहागा बनता है ।पुरुष भी अपनी कुर्बानियां देकर नारी को आगे बढ़ने में सहायक सिद्ध हुए हैं। गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी जी के अवदानों को आज हमें स्मृति पटल पर पुनः जीवित करने की अपेक्षा है । शिक्षा के क्षेत्र में, पर्दाप्रथा , आत्मोत्थान,जागृति आदि सभी क्षेत्रों में उन्होंने नारी जाति के उत्थान में अपना बहुत बड़ा काम किया हैं ।सभी का सहयोग अपेक्षित होता है कोई भी काम की सफलता में।पुरुष और नारी एक दूसरे के पूरक है।भले ही अन्तर्राष्ट्रय स्तर पे पुरुष दिवस नहीं ,महिला दिवस मनाया जाता है लेकिन महिलाओं के सर्वांगीण उत्थान में पुरुषों का सहयोग बराबर मिलता है तभी महिलाएं आगे से आगे विकास कर पाती है । भगवान महावीर की ग्यारह शिक्षाओं में एक शिक्षा सभी आत्माएँ बराबर हैं कोई छोटा-बड़ा नहीं है कितनी अमूल्य शिक्षा है । हमारे जीवन की पहली शिक्षक माँ ही होती हैं । भारतीय संस्कृति में यंहा तक कहा गया है जंहा नारी की पूजा होती है वंहा देवता रमण करते है। सम्पूर्ण नारी जाती को सलाम ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

Comments are closed.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More