योगी के कई मंत्रियों को लड़ाया जा सकता है लोकसभा चुनाव

राष्ट्रीय जजमेंट

राजनीति के मैदान में कोई भी ‘मुकाम’ छोटा या बड़ा नहीं होता है. किसी भी ‘मुकाम’ को प्रमोशन या डिमोशन समझने की बजाये इसे सियासत की मांग या इसे गेम चेंजर का ‘लबादा’ पहना दिया जाता है. सब कुछ समय के हिसाब से तय किया जाता है.इसका ताजा उदाहरण बीते दिनों हुए पांच राज्यों के चुनाव में देखने को मिला जहां भारतीय जनता पार्टी ने अपने कई सांसदों को ही विधान सभा का चुनाव लड़ा दिया.इतना ही नहीं जो सांसद,विधान सभा का चुनाव जीत गये उनसे लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा भी दिला दिया गया. कहीं किसी को नहीं लगा की इन सांसदों का पार्टी मेें कद घटा दिया गया है.क्योंकि राजनीति में आगे बढ़ने की संभावनाएं सभी जगह नजर आती हैं.तीन राज्यों में बीजेपी को बहुमत मिलने के पश्चात कई सांसद तो सीएम की रेस में भी नजर आ रहे हैं. वैसे यह रवायत कोई नई नहीं है.राजनीति में अक्सर ऐसा देखने को मिलता रहता है.कई दिग्गज नेतागण या फिर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व चुनावी मैदान में अपनी पार्टी की फिजा या स्थिति बेहतर करने के लिए स्वयं मैदान में कूद पड़ते हैं या फिर उन्हें ‘कूदा’ दिया जाता है.बात यूपी की ही कि जाए तो सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव,अखिलेश यादव से लेकर योगी आदित्यनाथ तक इसकी जिंदा मिसाल हैं,जो जरूरत के हिसाब से लोकसभा की सदस्यता छोड़कर विधान सभा के सदस्य बन चुके हैं.क्योंकि दोनों को यूपी में संभावनाएं ज्यादा दिखीं तो वह दिल्ली से लखनऊ वापस आ गये.इसी तरह का नजारा पांच राज्यों के चुनावों में भी देखा गया था.

खैर,किसी नेता लोकसभा की सदस्यता त्याग कर किसी राज्य की विधान सभा सदस्यता को महत्व लोगों को भले अचंभित करता हो,लेकिन ऐसे नेताओं की भी कमी नहीं है जो विधान सभा की जगह लोकसभा में छलांग लगाने को उतावले रहते हैं.ऐसे ही यूपी के कुछ विधायक अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए अभी से अपनी दावेदारी पेश करने में लगे हैं तो कुछ विधायकों को बीजेपी आलाकमान भी लोकसभा चुनाव लड़ाने की मंशा पाले हुए हैं. इसी क्रम में लोकसभा चुनाव 2024 में भारतीय जनता पार्टी आलाकमान उत्तर प्रदेश में नए राजनीतिक समीकरण तलाशने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर पार्टी के मजबूत चेहरों को लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरने की कोशिश कर रही है. ताकि पार्टी को जीत दर्ज करने के लिए अधिक मेहनत नही करनी पड़े. दरअसल, पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 21 सांसदों को चुनावी मैदान में उतारा था. इसके जरिए क्षेत्र में उनकी पकड़ की जांच की गई. भले ही विधानसभा चुनाव में सांसदों की जीत का प्रतिशत उस स्तर का नहीं रहा, लेकिन सांसदों ने अपने दम पर क्षेत्र में माहौल बना दिया. इसका परिणाम पार्टी को प्रदेश के चुनावों में बेहतर स्थिति के रूप में देखने को मिला.

बात यूपी की कि जाए तो यह राज्य बीजेपी के लिए काफी महत्व रखता है.उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटे हैं.2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 80 में से 63 सीटों पर जीत दर्ज की थी. अबकी से बीजेपी सभी 80 सीटों पर जीत का दावा कर रही है.बीजेपी गठबंधन ने लोकसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश में मिशन 80 का लक्ष्य रखा है. इसको देखते हुए कई विधायकों और मंत्रियों को पार्टी चुनावी मैदान में उतर सकती है. योगी सरकार के कई मंत्रियों के चुनावी मैदान में उतारे जाने की चर्चा तेज हो गई है. इसमें यूपी के दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक का नाम तेजी से उछल रहा है.गौरतलब हो,वर्ष 2014 में केशव प्रसाद मौर्य लोकसभा सदस्य चुने गए थे. यूपी चुनाव 2017 से पहले उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई थी. पार्टी का विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन के बाद केशव प्रसाद मौर्य को डिप्टी सीएम बनाया गया. सिराथु से हार के बाद भी 2022 में दूसरी बार बनी योगी सरकार में केशव मंत्री बनाए गए. लेकिन केशव प्रसाद मौर्य एक बार फिर लोकसभा के रण में फूलपुर संसदीय सीट पर अपनी पकड़ को दिखाने की कोशिश के लिए चुनाव लड़ सकते हैं. यूपी सरकार के दूसरे डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक को भी चुनावी मैदान में उतारे जाने की चर्चा है. यूपी चुनाव 2022 में दूसरी बार योगी सरकार के लौटने के बाद ब्रजेश पाठक को डिप्टी सीएम बनाया गया है.

जमीनी राजनीति करने वाले ब्रजेश पाठक स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर अपने कार्यों से लगातार चर्चा में रहे हैं. ऐसे में पार्टी उनकी बढ़ती ताकत की परीक्षा चुनावी मैदान में करना चाहेगी. इनके अलावा यूपी सरकार में परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह का नाम भी लोकसभा चुनाव के उम्मीदवारों में लिया जा रहा है.पार्टी उनकी ताकत को हथियार बना सकती है.इसी तरह से कांग्रेस से भाजपा में आकर अपनी अलग पहचान बना चुके जितिन प्रसाद को भी भाजपा चुनावी मैदान में उतार सकती है. ब्राह्मण वोट बैंक को साधने के लिए पार्टी की ओर से उनके चेहरे का इस्तेमाल किया जा सकता है. प्रदेश में औद्योगिक विकास के क्षेत्र में लगातार काम करने वाले योगी के मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी पर भी पार्टी दांव लगा सकती है. प्रयागराज से रीता बहुगुणा जोशी के चुनावी मैदान से हटने की स्थिति में नंदी यहां से किस्मत आजमाते दिख सकते हैं. योगी सरकार के मंत्रियों की यह अपनी महत्वाकांक्षा और क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता को इसका कारण माना जा रहा है. योगी सरकार में मंत्री बेबी रानी मौर्य को भी पार्टी चुनावी मैदान में उतार सकती है. दलित वोट बैंक के बीच उनके जरिए पकड़ बढ़ाने की कोशिश होगी. इसके अलावा धर्मपाल सिंह का नाम भी सामने आ रहा है. पार्टी प्रशासनिक- पुलिस सेवा से राजनीति में आने वाले असीम अरुण और राजेश्वर सिंह पर भी दांव लगा सकती है. इनके अलावा संजय गंगवार, अनूप बाल्मीकि, सिद्धार्थनाथ सिंह, श्रीकांत शर्मा के भी लोकसभा चुनाव के मैदान उतरने की इच्छा की बात कही जा रही है,लेकिन अंतिम फैसला मोदी और अमित शाह ही लेगें.इसमें योगी की भी भूमिका महत्वपूर्ण रहना तय है.

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