बाल विवाह के खिलाफ कार्रवाई और बहुविवाह पर रोक के लिए प्रस्तावित कानून की रही चर्चा

राष्ट्रीय जजमेंट

असम में 2023 के दौरान बाल विवाह के खिलाफ कार्रवाई और अल्पसंख्यक बहुल जिलों में सबसे अधिक गिरफ्तारियां, बहुविवाह को समाप्त करने के लिए विधानसभा में कानून बनाने की पहल और पांच स्थानीय मुस्लिम समुदायों का सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण सुर्खियों में रहा। मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा की पहल ने उन्हें सुर्खियों में बनाए रखा। चुनाव वाले राज्यों में वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रमुख प्रचारक रहे, क्योंकि उन्होंने राज्य की बहुसंख्यक मूल आबादी के बीच अपना आधार मजबूत करने के साथ-साथ पार्टी के मुख्य राजनीतिक एजेंडे को भी मजबूती से आगे बढ़ाया है। असम सरकार ने बाल विवाह के खिलाफ कार्रवाई दो चरणों में की।

 

 

पहली फरवरी और दूसरी अक्टूबर में और इस दौरान करीब 5,500 लोगों को गिरफ्तार किया गया जिनमें से अधिकतर गिरफ्तारी अल्पसंख्यक समुदाय के प्रभाव वाले जिलों में हुई। शर्मा ने दावा किया कि 2026 तक इस सामाजिक बुराई को पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा और सभी ग्राम पंचायत सचिवों को बाल विवाह रोकथाम अधिकारी के रूप में नामित किया जाएगा। हालांकि, विपक्षी दलों का कहना है कि बाल विवाह को पुलिस कार्रवाई से जबरन नहीं रोका जा सकता है, बल्कि सभी हितधारकों को शामिल करते हुए एक निरंतर चलने वाले अभियान की आवश्यकता है। शर्मा ने जोर देकर कहा कि कार्रवाई शुरू होने के बाद से राज्य में मातृ मृत्यु दर में 33 प्रतिशत से अधिक और बाल मृत्यु में लगभग 15 प्रतिशत की कमी आई है।

 

राज्य सरकार ने मुस्लिम समुदाय के बीच बहुविवाह की प्रथा पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक कानून लाने की भी योजना बनाई है क्योंकि कार्रवाई के दौरान पाया गया कि कई अधिक उम्र के पुरुषों ने एक से अधिक शादी की हैं और ज्यादातर की पत्नी कम उम्र की और समाज के गरीब वर्ग से संबंध रखने वाली हैं। राज्य सरकार का कहना है कि जब तक बहुविवाह पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाता तब तक बाल विवाह से पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता। हिमंत सरकार ने इसके मद्देनजर कानूनी विशेषज्ञों की चार सदस्यीय विशेषज्ञ समिति गठित की जिसनेविधानसभा द्वारा राज्य में बहुविवाह पर प्रतिबंध की वैधता की जांच की। समिति ने समान नागरिक संहिता संबंधी संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों और संविधान के अनुच्छेद 25 के साथ-साथ मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम, 1937 के प्रावधानों की जांच की।

 

समिति ने सर्वसम्मति से सहमति जताई कि राज्य बहुविवाह को समाप्त करने के लिए अपने स्वयं के कानून बना सकता है लेकिन विधेयक पर सहमति राज्यपाल के बजाय राष्ट्रपति को देनी होगी, जो आमतौर पर राज्य कानूनों पर अंतिम मंजूरी देते हैं। हालांकि, विपक्षी दलों ने बहुविवाह पर कानून बनाने की सरकार की योजना की आलोचना करते हुए इसे ध्यान भटकाने वाला और सांप्रदायिक कदम बताया। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ भाजपा अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ अपने एजेंडे को आगे बढ़ा रही है। दूसरी ओर मुख्यमंत्री ने विपक्ष के आरोपों पर पलटवार करते हुए कहा कि यह उनकी सरकार है जिसने मूल असमिया और बंगाली भाषी दोनों समुदायों के मुसलमानों की स्थिति में सुधार के लिए कदम उठाए हैं।

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