सुस्त अधिकारियों के कारण अपनी मनमर्जी से रैन बसेरे चला रही संस्था

कहीं सिर्फ़ एक तो कही दो केयर टेकर से ही चल रहा रैन बसेरा

नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत में ठंड का पारा गिरता जा रहा है। ठंड के कारण बेघर लोग रैन बसेरों में आश्रय लेते है। अभी दिल्ली में 319 रैन बसेरे कार्यरत हैं जिनमें करीब 20 हज़ार लोगों के सोने की सुविधा है। राष्ट्रीय जजमेंट मिडिया ग्रुप लगातार के रैन बसेरे की असुविधा और समस्या को प्राथमिकता से प्रकाशित कर रहा है। राष्ट्रीय जजमेंट न्यूज ने 28 दिसंबर गुरुवार को दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों के रैन बसेरों में जाकर जमीनी हकीकत जानने का प्रयास किया।

दिल्ली की ठंड में बेघरों के साथ साथ रैन बसेरे में ड्युटी करते केयर टेकर की भी स्थिति दयनीय है। कही सिर्फ़ एक तो कही दो केयर टेकर से ही रैन बसेरा चल रहा है। न्यूनतम मानदेय भी केयरटेकर को नही दिया जाता। बेरोजगार युवाओं की मजबूरी का फायदा उठाकर कम मानदेय में 24 घंटे काम करवाया जाता है। फिर बेरोजगार हो जाने के डर के कारण कोई भी केयर टेकर खुलकर बात नही रखता, इन युवाओं की मजबूरी का फायदा उठाकर रैन बसेरे संचालन करती संस्था मोटी कमाई करती है।

तिलक नगर स्थित रैन बसेरे के एक केयर टेकर ने बताया कि वो दो केयरटेकर बारह बारह घंटे ड्यूटी करते है, 20 हज़ार रुपए तनख्वाह मिलती है। जब छुट्टी लेनी हो तब आपस में एक दूसरे की ड्यूटी करते हैं। यदि छुट्टी के लिए ऑफिस से कोई स्टाफ आता है तो उनका पैसा काटते हैं। वही तिलक नगर रैन बसेरे का एक केयर टेकर रात को रेस्क्यु करता है और सुबह ड्यूटी भी।

द्वारका स्थित रैन बसेरे के एक केयर टेकर ने बताया कि वो दो केयर टेकर बारह बारह घंटे ड्यूटी करते है, 15 हज़ार रुपए तनख्वाह मिलती है। वही अस्थायी रैन बसेरे के केयर टेकर को 20 हजार रुपए देकर 24 घंटे काम करवाया जाता है। अन्य एक व्यक्ति ने बताया की संस्था सेवा नही बिजनेस कर रही है ऐसा लगता है।

मयूर विहार से अक्षरधाम तक तीन अस्थायी रैन बसेरे है। जिनमें दो में ही केयर टेकर मौजूद मिले, इनमें एक केयर टेकर ने बताया कि उसे 24 घंटे काम करने का 16500 रूपए और खाना दिया जाता है।

केयरटेकर शराब पीकर करते हैं ड्युटी, चलाते है मनमानी

तिलक नगर स्थित रैन बसेरे में रहने वाले बलविंदर सिंह ने कहा की वे दो साल से रैन बसेरे में रह रहे है। दिन में मजदूरी करते है। सुबह पांच बजे मुझे जाना होता है पर केयर टेकर मैन गेट नही खोलते, बार बार बोलने पर गुस्से और बत्मीजी करते है। अन्य एक बेघर ने बताया की केयर टेकर रात को कैंपस में ही शराब पीकर ड्यूटी करते है। नशे में गली गलौज भी करते है। बार बार रैन बसेरे से बाहर निकालने की धमकी देते है

द्वारका स्थित रैन बसेरे के एक बेघर ने बताया कि खाने में सिर्फ चार पांच रोटी और सब्जी मिलती है। जो एक के लिए पर्याप्त नही होती, कई बार भूखा रहना या तो बाहर से खाना पड़ता है।

खबर लिखेने से पहले डूसिब के रैन बसेरा ऊप निदेशक पी सारस्वत, निदेशक राजबीर सिंह और सीई वीएस फोनिया से फोन से संपर्क किया गया पर तीनों ने कॉल का उत्तर नही दिया। सूत्रों की माने तो डूसिब के अधिकारी जमीनी स्तर पर जाने का कष्ट नही उठाते है। ऑफिस की चार दीवारों के बीच मिली जानकारी को सच मानकर कागजी कार्यवाही पर विश्वास रखते हैं।

एक शिकायतकर्ता इस्तिकर अंसारी ने कहां की बीते मार्च में डूसिब को कम वेतन और बारह बारह घंटे काम करवाने की शिकायत दी थी पर आज तक डूसिब के अधिकारियों ने कोई कार्यवाई नही की ओर मुझे आज तक शिकायत के संदर्भ में बुलाया भी नही है।

मेहनतकश एसोसिएशन के निदेशक निर्मल गोराना अग्नि ने कहा की जहां पर मजदूरों को बोलकर हायर किया गया हो या किसी भी प्रकार का एग्रीमेंट होता है। अगर एग्रीमेंट रिटर्न और मौखिक रूप से दोनों में से एक है तो उसमें मजदूर को सरकार द्वारा तय की गई न्यूनतम मजदूरी देनी चाहिए। अधिनियम 1948 के अंतर्गत तय मजदूरी से कम रेट में हायर किया गया है और अगर उसका उससे कम वेतन भुगतान होता है तो ये एक प्रकार की गुलामी है और अधिनियम का उल्लघंन है। जहां मजदूर अगर बोलेगा तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाएगा। डूसीब की जिम्मेदारी है की वह इस मामले में जांच करें और अगर इस प्रकार मौखिक रूप से बोलकर कम रेट पर हायर किया गया है तो कार्यवाई करे। अन्यथा डूसिब के खिलाफ भी न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के तहत कार्यवाई होनी चाहिए।

सेंटर फॉर होलिस्टिक डेवलपमेंट-सीएचडी के कार्यकारी निदेशक सुनील कुमार आलेडिया ने कहां की ऐसे मामले डूसिब की जानकारी में पिछले पांच सालों से है। पर डूसिब उसपर लीपापोती कर देती है। अगर कम वेतन में संस्था की संगति पाई जाती है तो डूसिब को अधिकार है की वे शेल्टर मैनेजमेंट एजेंसी को ब्लैकलिस्ट भी कर सकती है। ऐसी ढेरों शिकायते डूसिब के विजिलेंस विभाग में पेंडिंग पड़ी है। ऐसी विसंगति होने के बावजूद संस्था को टेंडर मिल जाता है। डूसिब के अधिकारी पैसे लेकर ऐसी शिकायतों को दबाकर संस्था को बचाते है।

 

 

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