सनातन धर्म की वर्तमान दशा और दिशा

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मैं बड़े दिनों से विचार में था आखिर ‘संत रामपाल’, ‘संत आशाराम’ जैसे संतो ने खुद को क्यो स्वायम्भू का दर्जा दिया ।
साथ मे किसी ने तो सनातन धर्म का विरोध किया तो किसी ने खुद के नाम पर रामायण तक लिखवा डाली।
लेकिन किसी ने प्रभू का नाम और उनका वर्णन नहीं किया ।
ऐसे संतो के एक भी वेद विद्यालय नही है आखिर क्यों❓
फिर मैं रामपाल के कुछ किताबो को पढ़ा और साथ मे कुछ प्रकाशन को भी जिसमे लिखा था।
राम मिथ्या है
सनातन धर्म पांखण्ड है
यहाँ तक कुम्भ भी ढोंग है
फिर सही क्या है ❓
ईसा सत्य है । पैगम्बर सत्य है ।
ऐसे लेख रामपाल के लेखों और प्रकाशानो में में मिलता है।
मैंने विचार किया इनको सनातन धर्म से विरोध नही है । इनको उस फण्ड से प्रेम है जो और धर्मो से दिए जाते है जो कि सनातन धर्म को कमजोर या बदनाम कर सके ।
अब समस्या ये है की , हमारे जो संत है धर्म प्रचारक उन लोगो ने आखिर क्यों इन संतो के खिलाफ मुहिम क्यो नही किया❓
हमारे संतो को VVIP प्रोटोकाल चाहिए लम्बी गाड़िया चाइये उनको किसी भी आदिवाशी के यहा नही जाना पसन्द करते है, किसी भी दलित के यहाँ जाना अपना अपमान समझते है ।
उसका प्रमाण है कि इन लोगो का धर्म परिवर्तन बहुत तेजी से होना और उसका लाभ रामपाल जैसे संतो को मिल रहा है जो अपना पूरा पैठ बना चुके है ।
संतो से निवेदन है अपने मूल कार्यो पर ध्यान केंद्रित करे।
नही तो समाज खतरे मैं आजायेगा ।
और मीडिया भी इस बात को गहराई से ले ऐसे संतो की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर में सिर्फ सनातन धर्म का नाम खराब होता है।
ज्योतिर्विद उमाकान्त दुबे

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