नई दिल्ली/कुरुक्षेत्र। स्वच्छता अभियान के तहत अपने गांवों को खुले शौच से मुक्त कराने के लिए 12 महिला पंच और सरपंचों को कुरुक्षेत्र में सम्मानित किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को स्वच्छ शक्ति-2019 कार्यक्रम में इन्हें स्वच्छता पुरस्कार से सम्मानित करेंगे।
स्वच्छता और ओडीएफ में बेहतर काम को लेकर पिछले साल वाटर एंड सेनिटेशन मिनिस्ट्री की तरफ से आवेदन मांगे थे। इसके बाद देशभर से 12 महिला पंच-सरपंचों को चुना गया।
इन्हें सम्मानित किया जाएगा |
राज्य |
रेखा |
हरियाणा |
लक्ष्मी जाट |
मध्यप्रदेश |
सोनूबेन कालेरानाथ, माधुरी गोडमारे |
महाराष्ट्र |
भाग्यलक्ष्मी सरागली |
तेलंगाना |
फांगफू याकिया |
अरुणाचल प्रदेश |
अमरतबाई मणिकांत जोलाव |
दमनदीव |
मार्शल |
मेघालय |
रीटा रानी |
पंजाब |
पींकू राव |
झारखंड |
पुष्पा |
यूपी |
राधिका |
तमिलनाडु |
ये सभी 15 महिलाएं अपने गांवों की पंचायत की मुखिया हैं। सभी ने खुले में शौच मुक्त गांव बनाने के लिए एक जैसी बाधाएं पार कीं और मेहनत की। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के देहात में लोगों को समझाना काफी मुश्किल काम था। लोगों का विरोध भी झेला, लेकिन परवाह नहीं की। सरकार की तरफ से गांवों में टारगेट मिले, उनसे बढ़कर काम किया।
चित्रकारी से सजाए हैं शौचालय
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इन महिला सरपंचों के गांव जहां पूरी तरह खुले में शौच मुक्त हैं। वहीं, इन्होंने हर घर में शौचालयों को भी बाहर और अंदर से सजावटी बनाया है। पींकूराव, सोनूबेन, अमरतबाई और लक्ष्मी बताती हैं कि उन्होंने लोगों को शौचालय सुंदर बनाने के लिए प्रेरित किया। देखादेखी हर किसी ने अपने शौचालयों को सुंदर चित्रकारी से सजाया। प्रतियोगिता में उनके गांवों के शौचालय स्वच्छ और सुंदर निकले।
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तमिलनाडु की राधिका कहती हैं कि जब लोगों को घरों में शौचालय के लिए कहा, तो वे लड़ाई करने तक पर उतरे आए। हमने गाली-गलौच तक सुनी। मुझे गांव में 990 शौचालय का टारगेट मिला था, लेकिन डेढ़ हजार टायलेट अपने और आसपास के गांवों में बनवाए।
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ब्राह्मी गांव की सरपंच माधुरी गोडमारे को भी ऐसे ही विरोध झेलना पड़ा। वे बताती हैं कि शुरू में लोग घरों में शौचालय बनाने को तैयार नहीं हुए। बाद में किसी तरह वे लोगों को मनाने में सफल रही। इसके साथ उन्होंने गांव में हर रविवार सामूहिक श्रमदान की परंपरा शुरू की। पिछले 42 रविवार से ग्रामीण एकजुट होकर गांव की सफाई करते हैं।
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अरुणाचल से आई फांगफू बताती हैं कि उनके गांव में पांच घर हैं। वहां भी खुले में ही लोग शौच जाते थे। इन पांच घरों में शौचालय बनाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। अब उनके गांव में सुंदर शौचालय हैं।
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मेघालय से मार्शल बताती हैं कि उनके यहां करीब 180 घर हैं। वहां भी किसी घर में शौचालय नहीं था। उन्होंने पहले अपने घर में शौचालय बनाया। फिर घर-घर जाकर लोगों को मनाया। आज गांव ओडीएफ ही नहीं, स्वच्छता के मामले में भी अव्वल है। लोगों में सफाई की आदत पड़ चुकी है।
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मोहाली की रीटा और मिर्जापुर की पुष्पा ने भी स्वच्छता को अपना मिशन बनाया है। पुष्पा बताती हैं कि वे अपने और आसपास के गांवों में ढाई हजार के करीब शौचालय बनवा चुकी हैं।