तेजस्वी यादव के साथ ‘खेला’ हो गया, मोदी के सामने कितनी बड़ी चुनौती बनेगा महागठबंधन

राष्ट्रीय जजमेंट न्यूज

जब तेजस्वी यादव यह दावा कर रहे थे कि इस बार नीतीश-भाजपा के साथ ‘खेला’ हो जाएगा तो यही माना जा रहा था कि जदयू के कुछ विधायक उनके पक्ष में आ गए हैं। इसके बल पर तेजस्वी यादव न केवल नीतीश कुमार की सरकार को गिरा देंगे, बल्कि नए आंकड़ों के साथ अपनी सरकार भी बना सकते हैं।

यदि ऐसा होता तो लोकसभा चुनाव के ठीक पहले यह भाजपा नेतृत्व के लिए बहुत बड़ा झटका होता, क्योंकि जब से अमित शाह और पीएम नरेंद्र मोदी की जोड़ी ने केंद्र की राजनीति संभाली है, उन्होंने कई राज्यों में विधायकों-सांसदों का पाला बदल करवा कर सरकारें बनाई हैं, लेकिन खुद भाजपा के विधायकों को तोड़ने में कोई भी राजनीतिक दल सफल नहीं हुआ है। ऐसे में यदि तेजस्वी यादव कोई बड़ा खेला करने में सफल हो जाते तो इससे आगामी लोकसभा चुनाव में बिहार में एनडीए की चुनौती बढ़ सकती थी।विश्वासमत के दौरान भी जब अंतिम समय तक भाजपा के तीन विधायक सदन में नहीं पहुंचे, तब तक इसी उलटफेर के कयास लगाए जा रहे थे। लेकिन विश्वासमत के दौरान तेजस्वी यादव अपने ही विधायकों को अपने साथ नहीं रख सके।

 

उनके विधायकों चेतन आनंद, नीलम देवी और प्रह्लाद यादव ने सरकार के पक्ष में वोट कर दिया।इससे पासा पलट गया और सरकार के पक्ष में 129 वोट पड़ गए, जो उसके कुल विधायकों की संख्या से भी ज्यादा थे। जो तेजस्वी एनडीए के साथ खेला करने की सोच रहे थे, अंततः यही साबित हुआ कि इस खेल के असली खिलाड़ी तो मोदी-शाह ही हैं। उन्होंने न केवल सरकार के सभी विधायकों पर अपनी पकड़ बनाकर रखी, बल्कि राजद के विधायकों को भी तोड़ लिया। हालांकि, स्पीकर के विश्वासमत पर मतदान के दौरान केवल 125 विधायकों ने ही विरोध में मतदान किया जो बताता है कि अंततः वे अपने ही खेमों में बने रहेंगे।

 

2014 के लोकसभा चुनाव में जब भाजपा ने लालू-नीतीश से अलग होकर चुनाव लड़ा था, तब भी उसने अपने सहयोगियों के साथ 31 सीटों पर सफलता हासिल की थी। इसमें भाजपा 22, रामविलास पासवान 6 और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी की तीन सीटें शामिल थीं। यानी मोदी ने यह साबित कर दिया था कि लोकसभा चुनाव में वे अकेले के दम पर भाजपा और उसके सहयोगियों को चुनाव जितवा सकते हैं।

 

चूंकि अब 2024 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार भी उनके साथ रहेंगे, जिनके साथ चुनाव लड़कर भाजपा ने पिछले चुनाव में 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल की थी। इन आंकड़ों के आलोक में आज के राजनीतिक माहौल को देखकर तुलना करें, तो माना जा सकता है कि इस बार भी भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए बिहार में बेहतर जीत हासिल करने में कामयाब रहेगी।बिहार की राजनीति पर करीब से नजर रखने वाले धीरेंद्र कुमार का मानना है कि लोकसभा तो नहीं, लेकिन बिहार विधानसभा के चुनाव में तेजस्वी यादव एनडीए के सामने कड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं।

 

इसका बड़ा कारण है कि तेजस्वी यादव की पार्टी राजद का एक मजबूत जातीय आधार है, जिसका कोई विकल्प आज भी एनडीए खेमे के पास नहीं है।साथ ही, तेजस्वी यादव ने अपनी छवि एक फाइटर के रूप में बनाई है। राज्य के कई युवा उन्हें अपने आदर्श के तौर पर देखते हैं। सरकारी नौकरियां दिलवाने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई है। चुनाव में सरकार और भाजपा विरोधी मतदाता एकजुट हो सकते हैं, जिसका लाभ महागठबंधन को हो सकता है। ऐसे में बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव नीतीश-भाजपा के लिए चुनौती बन सकते हैं, लेकिन फिलहाल लोकसभा चुनाव में मोदी की छवि पर वोट होने के कारण एनडीए को कोई नुकसान होने की संभावना नहीं है।

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