उत्तर प्रदेश भाजपा में चल रही उठापटक की चर्चा तो देशभर में है लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ यूपी में ही खींचतान चल रही है। दरसअल भाजपा में अंदरूनी खींचतान बंगाल और उत्तराखंड में भी जोरदार तरीके से चल रही है जिससे पार्टी नेतृत्व की चिंता बढ़ गयी है। हम आपको बता दें कि भाजपा की विभिन्न प्रदेश इकाइयों की कार्यसमिति की बैठकें या तो हाल में संपन्न हुई हैं या आयोजित होने वाली हैं। इन बैठकों में विभिन्न नेता अपने संबोधनों के दौरान प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक दूसरे पर निशाना साध रहे हैं। ताजा मामला पश्चिम बंगाल और उत्तराखंड से सामने आया है।बंगाल की बात करें तो आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव में राज्य में भाजपा के खराब प्रदर्शन के कारणों पर चर्चा के लिए पार्टी की बंगाल इकाई के दो दिवसीय मंथन के दौरान कई नेताओं ने प्रदेश के संगठन में बदलाव और जवाबदेही तय करने की मांग की। पिछले हफ्ते विधानसभा उपचुनावों में तृणमूल कांग्रेस से तीन सीटों पर शिकस्त मिलने के बाद भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी के विस्तारित सत्र का आयोजन किया गया था। हम आपको बता दें कि संसदीय चुनावों में राज्य में भाजपा के खराब प्रदर्शन के बाद विधानसभा उपचुनाव के परिणाम भी पार्टी के लिए निराशाजनक रहे हैं। हाल में संपन्न आम चुनाव में प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को 12 सीटें मिली थीं जबकि 2019 में यह आंकड़ा 18 था।पत्रकारों से बातचीत के दौरान वरिष्ठ भाजपा नेता और सांसद सौमित्र खान ने राज्य संगठन में नेतृत्व परिवर्तन की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, “हमारे निराशाजनक प्रदर्शन के बाद राज्य संगठन में अधिक जवाबदेही और बदलाव की आवश्यकता है। यह बदलाव जरूरी है, क्योंकि राज्य की जनता ने हमें संदेश दे दिया है।” एक अन्य वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि निराशाजनक चुनावी नतीजों के बाद राज्य इकाई में आमूलचूल परिवर्तन की तत्काल आवश्यकता है। उन्होंने कहा, “अगर हम 2026 के विधानसभा चुनावों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहते हैं, तो हमें जल्द से जल्द खुद को व्यवस्थित करना होगा। राज्य इकाई में बदलाव समय की मांग है। जिन लोगों ने राज्य इकाई की ओर से निर्णय लिए हैं, उन्हें जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए और पद छोड़ देना चाहिए।” वहीं सौमित्र खान की भावनाओं से सहमति जताते हुए बैरकपुर लोकसभा सीट से हारने वाले पूर्व भाजपा सांसद अर्जुन सिंह ने भी कमियों को स्वीकार किया। उन्होंने कहा, “हमें पार्टी की चुनौतियों को स्वीकार करना चाहिए, चाहे वे संगठनात्मक हों या अन्य, और 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले उनका तेजी से समाधान करना चाहिए।”चुनावों में हार की जिम्मेदारी लेने से नेता कैसे बच रहे हैं इसकी बानगी तब देखने को मिली जब पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने स्पष्ट किया कि मैं संगठन का कामकाज नहीं देखता। उन्होंने कहा, ‘‘मैं पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष का नेता हूं और ऐसा कोई उदाहरण नहीं है जहां मैंने पार्टी के खिलाफ टिप्पणी की हो। दूसरी बात यह कि मैं प्रदेश इकाई के संगठनात्मक कार्यों के लिए किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं हूं।’’ वहीं प्रदेश भाजपा प्रमुख एवं केंद्रीय मंत्री सुकांत मजूमदार ने कहा, ‘‘लोकसभा चुनाव के नतीजे राज्य में पार्टी की संभावनाओं के संकेतक नहीं हो सकते।’’ उनका कहना है कि चुनाव जीतने में संगठनात्मक कौशल की भूमिका ज्यादा नहीं होती। उन्होंने कहा, “जब कोई पार्टी जीतती है, तो हर कोई संगठनात्मक ताकत को श्रेय देता है और अगर वह हार जाती है तो हर कोई संगठनात्मक ताकत को दोष देता है। यह स्वाभाविक है। हालांकि, राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार चुनाव जीतने में संगठनात्मक ढांचे की भूमिका सिर्फ 10-25 प्रतिशत है।”हम आपको यह भी बता दें कि इस समय भाजपा तीन खेमों में बंटी हुई दिखाई दे रही है। एक ओर शुभेंदु अधिकारी का खेमा है तो दूसरी ओर सुकांत मजूमदार का और तीसरी ओर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष का। जब बैठक के दौरान शुभेंदु अधिकारी ने सबका साथ, सबका विकास की जगह ‘हम उनके साथ जो हमारे साथ’ वाला बयान दिया तो इससे तुरंत सुकांत मजूमदार ने असहमति जता दी। जबकि शुभेंदु अधिकारी की टिप्पणी का वरिष्ठ नेता तथागत रॉय और पूर्व सांसद अर्जुन सिंह ने समर्थन किया।
उधर, भाजपा की इस हालत को देखकर तृणमूल कांग्रेस ने दावा किया है कि जल्द ही भगवा पार्टी के दो सांसद ममता बनर्जी के साथ आ जायेंगे। तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कुणाल घोष ने दावा किया है कि भाजपा के दो सांसदों ने 21 जुलाई को आयोजित होने वाले शहीद दिवस समारोह के दौरान में तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने की इच्छा जतायी है। कुणाल घोष ने दावा किया है कि हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के 12 सांसद चुने गए हैं और उनमें से दो हमारे संपर्क में हैं। उन्होंने हमसे संपर्क करके तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने की इच्छा जताई है। वे ममता बनर्जी के नेतृत्व में काम करना चाहते हैं और 21 जुलाई के कार्यक्रम के दौरान पार्टी में शामिल हो सकते हैं।वहीं उत्तराखंड की बात करें तो प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में पूर्व सांसद तीरथ सिंह रावत का संबोधन काफी चर्चा में रहा। उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में कहा कि कि जो आज कुर्सी पर हैं कल नहीं रहेंगे। जो कल आगे थे आज पीछे बैठे हुए हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की कार्यशैली से नाराज दिख रहे तीरथ सिंह रावत ने कहा कि जब वह उत्तर प्रदेश में MLC चुने गए थे तब पुष्कर सिंह धामी लॉ कर रहे थे। इसलिए वह उनके संघर्ष को बखूबी जानते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने संकेतों में सब कुछ कहकर लोकसभा चुनाव में अपना टिकट कटने और दोनों उपचुनाव में पार्टी के प्रदर्शन पर भी कई तरह से सवाल उठाये। उन्होंने कहा कि पार्टी नेतृत्व को चाहिए कि वह किसी को हम पर थोपे नहीं बल्कि सलाह मशविरा कर फैसले ले। उनकी इस बात पर खूब तालियां बजीं।
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