करवा चौथ की पूजा में क्या है करवा का महत्व, मान्यता और पूजा के न‍ियम

राष्ट्रीय जजमेंट न्यूज

करवा चौथ व्रत की शुरुआत सूर्योदय के साथ होती है और रात को चांद को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत पूर्ण माना जाता है। करवा चौथ की पूजा में करवा का विशेष महत्व होता हैं। करवा मिट्टी का बना एक मटका नुमा होता है। जिसके एक नलकी नुमा आकार भी होता है।

हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को ये व्रत सुहागिनों के लिए बेहद खास होता है। इस साल ये व्रत 1 नवंबर दिन बुधवार को रखा जाएगा। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और पूजा-पाठ करती हैं और व्रत कथा सुनती हैं। इस दिन रात्रि में चांद की पूजा करने का भी विशेष महत्व होता है। महिलाएं चांद की पूजा करने के बाद ही व्रत तोड़ती हैं। ऐसी मान्यता है कि करवा चौथ के दिन पूजा में मिट्टी के करवे का प्रयोग किया जाता है। यह बहुत शुभ और पवित्र माना जाता है।

करवा चौथ व्रत की शुरुआत सूर्योदय के साथ होती है और रात को चांद को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत पूर्ण माना जाता है। करवा चौथ की पूजा में करवा का विशेष महत्व होता हैं। करवा मिट्टी का बना एक मटका नुमा होता है। जिसके एक नलकी नुमा आकार भी होता है। इस करवे को मां देवी का प्रतीक मानकर पूजा की जाती है। मिट्टी के करवे को पूजन विधि में खास माना जाता है। शादी के समय लड़कियों को मायके से करवा दिया जाता है, जिसे महिलाएं शादी के बाद हर करवा चौथ पर उपयोग करती हैं।

ये पूजा का है नियम!

करवा चौथ पूजा के दौरान दो करवे रखे जाते हैं। इनमें से एक देवी मां का होता है और दूसरा सुहागिन महिला का। करवा पूजा में करवा चौथ की व्रत कथा सुनते समय दोनों करवे पूजा के स्थान पर रखे जाते हैं और करवे को साफ करके उसमें रक्षा सूत्र बांधकर, हल्दी और आटे के मिश्रण से एक स्वस्तिक चिह्न बनाया जाता है। इसके बाद करवे पर 13 रोली की बिंदी को रखकर हाथ में गेहूं या चावल के दाने लेकर करवा चौथ की कथा सुनी जाती है।

पूजा में क्यों होते हैं दो करवे?

करवा चौथ की पूजा करते समय और करवा चौथ व्रत कथा सुनते समय दो करवा पूजा के स्थान पर जरूर होने चाहिए। एक वो जिससे महिलाएं अर्घ्य देती हैं यानी जिसे उस महिला की सास ने दिया होता है और दूसरा करवा वो होता है जिसे करवा बदलने वाली प्रक्रिया करते वक्त महिला अपनी सास को करवा देती हैं। करवा को सबसे पहले अच्छे से साफ किया जाता है। धर्म शास्त्र के मुताबिक, करवा पंच तत्वों का प्रतीक माना जाता है। मिट्टी के करवा में पांच तत्व होते हैं, जैसे कि जल, मिट्टी, अग्नि, आकाश, वायु इन सभी से व्यक्ति का शरीर भी बना है। इसलिए करवा भरने का विशेष महत्व होता है।

नोट: यह लेख धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है राष्ट्रीय जजमेंट न्यूज इसकी पुष्टि नहीं करता।

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