मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में नाबालिग से शादी को लेकर क्या हैं नियम? नए निर्देश बाल विवाह रोकने में होंगे असरदार

राष्ट्रीय जजमेंट

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने देश में बाल विवाह को रोकने के लिए कानूनी प्रवर्तन, न्यायिक उपायों तथा प्रौद्योगिकी आधारित पहलों पर जोर दिया। ‘कानूनी प्रवर्तन’ शीर्षक के अंतर्गत, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जिला स्तर पर बाल विवाह निषेध अधिकारी (सीएमपीओ) के रूप में कार्यों के निर्वहन के लिए पूरी तरह जिम्मेदार अधिकारियों की नियुक्ति करने का निर्देश दिया गया था। इसमें कहा गया है कि व्यक्तिगत जवाबदेही सुनिश्चित करने तथा बाल विवाह के किसी भी नियोजित आयोजन के विरुद्ध तत्काल निवारक उपाय सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश सीएमपीओ की तिमाही रिपोर्ट अपनी आधिकारिक वेबसाइटों पर अपलोड करेंगे। प्रत्येक राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश के महिला और बाल विकास तथा गृह मंत्रालयों को सीएमपीओ तथा कानून प्रवर्तन एजेंसियों की तिमाही कामकाज समीक्षा करने का निर्देश दिया गया है। गौरतलब है कि हिंदू और मुस्लिम पर्सनल लॉ में नाबालिगों की शादी की इजाजत है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बचपन में कराए गए विवाह से बच्चों के जीवन साथी चुनने का अधिकार खत्म हो जाता है, और यह अधिकार चाइल्ड मैरिज के माध्यम से उल्लंघन होता है। कोर्ट ने बाल विवाह रोकने के लिए संबंधित अधिकारियों से कदम उठाने की अपील की और नाबालिगों को सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता बताई। इसके साथ ही, कोर्ट ने कहा कि जो लोग इसके साथ ही, कोर्ट ने कहा कि जो लोग इस प्रथा के लिए जिम्मेदार हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि बाल विवाह निरोधक कानून में कुछ कमी है। सुप्रीम कोर्ट ने संसद से आग्रह किया है कि बच्चों की सगाई को गैरकानूनी बनाने के लिए चाइल्ड मैरिज प्रोहिबिशन एक्ट (पीसीएमए) में बदलाव पर विचार किया जाए। कोर्ट ने कहा कि वर्तमान कानून बच्चों की सगाई को नहीं रोकता, जिससे इसे कानून से बचने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। शादी नाबालिग रहते हुए फिक्स किया जाता है और यह उनके पसंद के अधिकार का उल्लंघन करता है। अपने पार्टनर को चुनने के अधिकार को छीनता है।
नए निर्देश बाल विवाह रोकने में होंगे असरदार केरल हाई कोर्ट ने 2022 में एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा था कि पर्सनल लॉ के तहत मुस्लिम विवाह को प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसिस एक्ट (पॉक्सो) से बाहर नहीं रखा गया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शादी की आड़ में किसी बच्चे के साथ शारीरिक संबंध बनाना एक अपराध है। पॉक्सो कानून में भी 18 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ यौन संबंध को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। कानूनी दृष्टिकोण से, स्पष्ट है कि बाल विवाह को हतोत्साहित किया गया है, लेकिन यह अब भी जारी है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का नया आदेश बाल विवाह रोकने के प्रयासों में महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।

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