लखनऊ: तय हो गयी सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की सीट, यहां से लड़ेंगे चुनाव

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लखनऊ। यूपी में प्रियंका गाँधी की जोरदार एंट्री के चलते समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव 2019 का लोकसभा चुनाव आजमगढ़ सीट से लड़ेंगे. खबर यह भी है कि उनके पिता मुलायम सिंह यादव मैनपुरी सीट से चुनावी जंग में कूदने वाले हैं। मुलायम ने हालांकि 2014 में आजमगढ़ के साथ मैनपुरी से भी पिछला चुनाव जीता था लेकिन तब उन्होंने ये सीट खाली कर दी थी।
अखिलेश की रणनीति में ये बदलाव प्रियंका गांधी की एंट्री की वजह से आया है। समाजवादी पार्टी अध्यक्ष चाहते हैं कि पूर्वांचल के अपने गढ़ को मजबूत किया जाए. यही वजह है कि वह एटा, इटावा, कन्नौज और मैनपुरी जैसे अपने गढ़ों से बाहर निकल रहे हैं. आजमगढ़ का जातीय समीकरण भी अखिलेश को सुरक्षा की गारंटी दे रहा है।
आजमगढ़ संसदीय क्षेत्र में 40 प्रतिशत वोट यादव और मुस्लिमों के हैं. यही वजह है कि 2014 में मोदी लहर के बाद भी मुलायम ये सीट निकाल ले गए थे. वहीं, इस बार तो समाजवादी पार्टी की नजर आजमगढ़ के 22 प्रतिशत दलित वोटरों पर भी है यानी मायावती के साथ गठबंधन के बाद आजमगढ़ अखिलेश के लिए और भी ज्यादा आसान सीट है।
पिछले साल के आखिर में अखिलेश यादव कांग्रेस से सारे रिश्ते तोड़ लेने के मूड में थे. तब मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ और राजस्थान में एसपी-बीएसपी को तरजीह न देने पर वह कांग्रेस से खफा थे. नतीजों के बाद मध्य प्रदेश में एसपी विधायक को मंत्री नहीं बनाने पर अखिलेश ने कहा था कि- “हम कांग्रेस पार्टी का धन्यवाद करते हैं।
उन्होंने हमारे विधायक को मंत्री नहीं बनाया. कांग्रेस के इस कदम के बाद समाजवादी पार्टी का उत्तर प्रदेश में रास्ता साफ हो गया है.” कांग्रेस के यूपी में अकेले जाने के ऐलान तक भी अखिलेश उन्हें भाव देते नहीं दिखे लेकिन प्रियंका की राजनीति में एंट्री और पूर्वांचल की कमान संभालते ही हालात बदले. और साथ ही बदल गए अखिलेश और उनकी पार्टी के सुर भी। अब अखिलेश कहते हैं कि कांग्रेस तो गठबंधन में है ही हमने उनके लिए तो 2 सीटें भी छोड़ी हैं।
माना जा रहा है कि हाल में पीएम मोदी को लेकर दिखाई गई मुलायम सिंह की नरमी से एसपी के मुस्लिम वोटर असहज हुए हैं. ऐसे में मुस्लिमों की अधिकता वाली आजमगढ़ सीट मुलायम के लिए जोखिम भरी हो सकती है यही नहीं,
मुलायम यहां के 22 प्रतिशत दलित वोटरों से भी वैसी उम्मीद नहीं रख सकते, जितना भरोसा उन पर अखिलेश कर सकते हैं. क्योंकि एक तो मायावती से मुलायम के रिश्ते का इतिहास ही ‘छत्तीस का’ है और दूसरे कि माया-अखिलेश गठजोड़ का पुरजोर विरोध भी मुलायम सिंह कर चुके हैं।
इस पूरी कवायद के बाद एक दिलचस्प मुकाबला आजमगढ़ में बनता दिख रहा है. ये मुकाबला हो सकता है अखिलेश यादव और अमर सिंह के बीच दरअसल, अमर सिंह की कोशिश सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के रास्ते एनडीए कोटे की सीट हासिल करने की है. यही वजह है कि ओमप्रकाश राजभर लोकसभा की 2 सीटों के लिए जिद पर अड़े हैं। राजभर मऊ की सीट अपने बेटे के लिए चाहते हैं जबकि आजमगढ़ की सीट बीजेपी से हासिल कर वहां से राजनीतिक जुगाड़ के उस्ताद अमर सिंह को उतारना चाहते हैं।
अब सवाल है कि अमर सिंह महागठबंधन के मुकाबले में उतरकर आजमगढ़ की पहले से ही हारी हुई दिख रही लड़ाई लड़ने क्यों जा रहे हैं? तो इसकी वजह ये भी है कि बदले राजनीतिक माहौल में बीते 5 साल से अमर सिंह हाशिये पर हैं।
कई मौकों और मुद्दों पर वह बीजेपी की चिरौरी करते जरूर दिख जाते हैं, लेकिन उधर से भाव मिलना अभी बाकी है। ऐसे में हार की तय दिख रही आशंका के बावजूद अमर सिंह के लिए ‘आजमगढ़ का दांव’ खेलना नुकसानदेह नहीं रहेगा।

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