संसद का शीतकालीन सत्र में किन बड़े मुद्दों पर तुरंत चर्चा होनी चाहिए?

राष्ट्रीय जजमेंट

संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो चुका है। दोनों सदनों का पहला दिन हंगामे की भेंट चढ़ गया। विपक्ष के जिस तरह के तेवर दिखाई दे रहे हैं उससे ऐसा लगता है कि संसद का यह शीत सत्र राजनीतिक रूप से गर्म बना रहेगा। देखा जाये तो सरकार ने इस सत्र के लिए जो विधायी कामकाज तय किया है वह तो किसी ना किसी तरह पूरा हो जायेगा लेकिन चिंता इस बात की है कि जनता के असल मुद्दों का क्या होगा? देश के सामने ऐसी कई ज्वलंत समस्याएं हैं जिन पर संसद में चर्चा होना बहुत जरूरी है। देश के समक्ष कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर संसद में चर्चा कर उनका निराकरण करना बहुत जरूरी है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या विपक्ष संसद को चलने देगा ताकि जनता के मुद्दों का हल निकल सके। सवाल उठता है कि क्या विपक्ष संसद को चलने देगा ताकि सांसद जो विषय संसद में उठाने के लिए अपनी तैयारी करके आये हैं उनको मौका मिल सके?देखा जाये तो यह अब चलन-सा हो गया है कि एक तो संसद के सत्र छोटे होते जा रहे हैं दूसरा बैठकों को बाधित किया जाता है और हो-हल्ले के बीच ही बजट तथा अन्य महत्वपूर्ण विधेयक पास हो जाते हैं जिससे जनता को पता ही नहीं चलता कि उनके लिए सरकार ने कौन-सा और किन प्रावधानों वाला कानून बना दिया है। विपक्ष जिस तरह संसद की बैठकों को बाधित करता है उससे संसदीय लोकतंत्र पर भी सवाल उठ रहे हैं। हर बार की तरह इस बार भी संसदीय अवरोध कायम रहता है तो इससे लोकतंत्र कमजोर ही होगा। भारत पूरी दुनिया में संसदीय प्रणाली का सबसे बड़ा लोकतंत्र है मगर संसद में कई बार मर्यादा की लक्ष्मण रेखा को लांघता हुआ हंगामा देखने को मिलता है। संसद का यह शीतकालीन सत्र व्यर्थ ना जाये, इसके लिए दोनों पक्षों को मिलकर चर्चा करनी चाहिए।
बहरहाल, देश के समक्ष कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर संसद में चर्चा कर उनका निराकरण करना बहुत जरूरी है। क्या हैं वह प्रासंगिक मुद्दे और भारत कैसे उनके चलते हो रहा है प्रभावित, इस बारे में उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत के पीआईएल मैन के रूप में विख्यात अश्विनी उपाध्याय ने कई बड़ी बातें कही हैं।

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