आजादी के बाद संभाला रेल मंत्रालय, देश की आर्थिक तरक्की में भी दिया है अहम योगदान

राष्ट्रीय जजमेंट

भारत के पहले रेल मंत्री चालियाल जॉन मथाई का जन्म कोझिकोड में एक रूढ़िवादी सीरियाई ईसाई परिवार में 10 जनवरी, 1886 को हुआ था। उनकी प्रचलित नाम जॉन मथाई है। मथाई ने 1906 में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। 1908 में उन्होंने मद्रास लॉ कॉलेज में दाखिला लिया और 1910 में बी.एल. की डिग्री पूरी की। इस सबके बाद में उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस में डॉक्टरेट शोध किया, साथ ही बैलिओल कॉलेज, ऑक्सफोर्ड से बी.लिट. की डिग्री भी प्राप्त की।साल 1918 में भारत लौटने के बाद वे मद्रास सरकार के सहकारी विभाग में विशेष कार्य अधिकारी बन गए। एक प्रखर शिक्षक के रूप में उन्होंने 1925 तक प्रेसीडेंसी कॉलेज में अर्थशास्त्र भी पढ़ाया। वे एक सक्रिय सरकारी कर्मचारी बन गए, जिन्होंने विधान परिषद में सेवा की और वित्त और सांख्यिकी से संबंधित महत्वपूर्ण समितियों और विभागों का नेतृत्व किया। उनकी आर्थिक सूझबूझ के कारण उन्हें 1940 में टाटा द्वारा निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया। मथाई बॉम्बे योजना के वास्तुकारों में से एक थे, जिसे भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड वेवेल ने भारत की आर्थिक समस्याओं के समाधान के रूप में सराहा था।संविधान निर्माण में योगदानमथाई कांग्रेस पार्टी के टिकट पर संयुक्त प्रांत से संविधान सभा के लिए चुने गए थे । उन्होंने कर प्रावधानों से संबंधित बहसों में महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण दिए। उन्होंने देश में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने का समर्थन किया। हालांकि मथाई ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका नहीं निभाई। इसके बजाय उन्होंने खुद को सरकारी सेवा और शिक्षा के लिए समर्पित कर दिया। वे वायसराय की कार्यकारी परिषद के सदस्य थे और बाद में अंतरिम सरकार का हिस्सा बने।भारत के निर्माण में योगदान उन्होंने भारत के पहले रेल मंत्री के रूप में भी कार्य किया है। 1948 में पहला बजट पेश करने के बाद मथाई वित्त मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने 1949-51 के बीच दो बजट पेश कि जिसके बाद उन्होंने तत्कालीन योजना आयोग के हाथों में बड़ी शक्तियाँ सौंपे जाने के विरोध के बाद इस्तीफा दे दिया। अपने इस्तीफे के बाद, वे लगातार दो संस्थाओं के अध्यक्ष रहे: कराधान जांच समिति, और नवगठित भारतीय स्टेट बैंक। इसके बाद वे बॉम्बे विश्वविद्यालय (1955-57) और बाद में केरल विश्वविद्यालय (1957-59) के कुलपति बने। शिक्षा और सार्वजनिक सेवा के क्षेत्र में उनके योगदान के परिणामस्वरूप, उन्हें 1959 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। मथाई का वर्ष 1959 में निधन हो गया।

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