औरंगजेब की मजार को हटाने की माँग तेज हो रही है, लेकिन क्या कानूनी रूप से ऐसा करना संभव है?

राष्ट्रीय जजमेंट

महाराष्ट्र में छत्रपति संभाजीनगर जिले में स्थित औरंगजेब की मजार को हटाने के पक्ष में राज्य और पूरे देश में आवाजें उठ रही हैं। तमाम राजनीतिक दल भी इसके पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं। स्वयं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कह दिया है कि सभी का मानना है कि छत्रपति संभाजीनगर में स्थित मुगल बादशाह औरंगजेब की मज़ार को हटाया जाना चाहिए, लेकिन उन्होंने साथ ही कहा है कि यह काम कानून के दायरे में किया जाना चाहिए। अब सवाल उठता है कि कानून का वह कौन-सा दायरा है जो औरंगजेब की मजार के लिए ढाल बनकर खड़ा है? सवाल यह भी उठ रहा है कि औरंगजेब की मजार को कानूनी संरक्षण किसने प्रदान किया? कौन है वो जिसके चलते आम लोगों की मेहनत की कमाई से दिये गये टैक्स का पैसा औरंगजेब या अन्य आक्रांताओं की मजार या मकबरे के संरक्षण में खर्च हो रहा है?हम आपको बता दें कि पिछली कांग्रेस सरकार ने औरंगजेब की मजार को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के संरक्षण में दे दिया था। इससे पहले कांग्रेस की सरकार ने 1958 में जो प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम बनाया था उसका उद्देश्य यही था कि गुलामी के नामोनिशान को बरकरार रखा जाये। हम आपको बता दें कि प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 का उद्देश्य पुरातात्विक और ऐतिहासिक स्मारकों और स्थलों की सुरक्षा और संरक्षण करना है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत कार्य करता है। हाल ही में उपजे कई विवाद दर्शा रहे हैं कि इस अधिनियम को खत्म किया जाना चाहिए या इसमें बदलाव करना चाहिए। औरंगजेब और उस जैसे आक्रांताओं की मजार या मकबरे के संरक्षण में सरकारी खर्च बंद किया जाना चाहिए। उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत के पीआईएल मैन के रूप में विख्यात अश्विनी उपाध्याय ने अपनी एक खास पेशकश में बताया है कि क्यों जरूरी है कांग्रेसी और अंग्रेजी कानून को बदलना?हम आपको यह भी बता दें कि समाजवादी पार्टी (सपा) के विधायक अबू आसिम आजमी को मुगल बादशाह औरंगजेब की प्रशंसा करने वाली टिप्पणी के कारण पिछले सप्ताह महाराष्ट्र विधानसभा से 26 मार्च को समाप्त होने वाले बजट सत्र की शेष अवधि के लिये निलंबित कर दिया गया था। महाराष्ट्र के मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने सदन में शेष अवधि के लिये आजमी के निलंबन का प्रस्ताव पेश किया। सत्ता पक्ष के सदस्यों ने कहा कि औरंगजेब की प्रशंसा में बयान देना मराठा राजा छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके बेटे छत्रपति संभाजी महाराज का अपमान है। प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित किया गया। पाटिल ने कहा, “औरंगजेब की प्रशंसा और संभाजी महाराज की आलोचना करने वाली आजमी की टिप्पणियां एक विधानसभा के सदस्य को शोभा नहीं देती हैं और यह विधानसभा का अपमान है।” उल्लेखनीय है कि सपा की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष आजमी ने कहा था कि औरंगजेब के शासनकाल के दौरान भारत की सीमा अफगानिस्तान और बर्मा (म्यांमा) तक पहुंच गई थी।

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