परिसीमन पर विवाद और डिजिटल मीडिया पर लगाम की मांग, आम जनता से कैसे जुड़ा है दोनों मुद्दा

राष्ट्रीय जजमेंट

संसद के बजट सत्र में लगातार कई मुद्दे उठ रहे हैं और सरकार की तरफ से इसको लेकर समाधान की भी कोशिश की जा रही है। हालांकि, परिसीमन को लेकर पहले ही दिन से जबरदस्त तरीके से हंगामा है। संसद के साथ-साथ विपक्ष बाहर भी इस मुद्दे को लेकर सरकार को घेरने की कोशिश में है। दूसरी ओर डिजिटल मीडिया को लेकर भी आज सदन में एक मांग उठी कि इसे कंट्रोल किया जाए। आज हम इन्हीं दोनों के विषय में बात करते हैं।परिसीमन मुद्दे को लेकर संसद से सड़क तक जबरदस्त तरीके से हंगामा हो रहा है। खास करके दक्षिण भारत के राज्य केंद्र पर भेदभाव का आरोप लगा रहे हैं। हालांकि, केंद्र सरकार किसी भी भेदभाव से इनकार कर रही है। केंद्र यह भी कह रही है कि जो प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हुई है, उसको लेकर गलत बातें प्रसारित की जा रही है। संसद में भी परिसीमन मुद्दे को लेकर हंगामा लगातार देखने को मिला है। आज भी संसद में परिसीमन का मुद्दा उठा। डीएमके का साफ तौर पर कहना है कि सिर्फ जनसंख्या के आधार पर परिसीमन नहीं होना चाहिए। इसमें सभी राज्यों को समुचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।दरअसल, बढ़ती जनसंख्या के आधार पर समय-समय पर निर्वाचन क्षेत्र की सीमाएं निर्धारित की जाती है और इसी को परिसीमन कहा जाता है। यह प्रक्रिया इसलिए महत्वपूर्ण है ताकि लोकतंत्र में आबादी के हिसाब से सभी का प्रतिनिधित्व हो सके और समान अवसर मिल सके। यही कारण है कि लोकसभा हो या विधानसभा, सीटों को समय-समय पर परिभाषित करने या पुनर्धारित करने के लिए परिसीमन किया जाता है। जनसंख्या में लगातार होते बदलाव की वजह से इसे करना जरूरी हो जाता है। इसका मतलब साफ है कि आम जनता के हित के लिए परिसीमन आवश्यक है तभी जनसंख्या और आबादी के हिसाब से सरकार द्वारा लोगों के लिए योजनाएं बनाई जा सकती है। इससे लोकतंत्र मजबूत होता है और सभी को समान अवसर मिलता है।
विरोध क्यों2011 के बाद से देश में जनगणना नहीं हुई है। इसे 2021 में किया जाना था। लेकिन कोरोना महामारी की वजह से यह नहीं हो सका और अभी भी लंबित है। माना जा रहा है कि आने वाले एक या दो वर्षों में इसे किया जाएगा और उसके बाद परिसीमन होगा। ऐसे में माना जा रहा है कि उत्तर भारत में जहां लोकसभा की सीटों में वृद्धि होगी। वहीं, दक्षिण भारत को इसका नुकसान या वर्तमान की स्थिति में ही रहना पड़ सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उत्तर भारत की आबादी ज्यादा बढ़ी है जबकि दक्षिण भारत में जनसंख्या नियंत्रित हुआ है। दक्षिण भारत के राज्यों को चिंता है कि परिसीमन के बाद संसद में उनका प्रतिनिधित्व कम हो सकता है जिसका मतलब साफ है कि उनकी राजनीतिक प्रभाव में गिरावट देखने को मिलेगी। हालांकि अमित शाह ने साफ तौर पर कहा है कि तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों की चिंताओं का समाधान किया जाएगा और कोई भेदभाव परिसीमन में नहीं होगा। हालांकि देखना दिलचस्प होगा की जनसंख्या और परिसीमन होता कब है क्योंकि अब तक इसकी चर्चा की शुरुआत नहीं हुई है।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद दिलीप सैकिया ने लोकसभा में केंद्र सरकार से आग्रह किया कि डिजिटल मीडिया के नियमन के लिए कानूनी प्रावधान किया जाए। उन्होंने सदन में शून्यकाल के दौरान यह मांग की। सैकिया ने कहा, ‘‘मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। आज के डिजिटल युग में ऑनलाइन पोर्टल की बाढ़ आ गई है। बहुत सारे पोर्टल असत्य खबरें प्रसारित कर रहे हैं। इससे मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा हो रहा है।’’जनता के हित में कैसेआज देश में लगभग 90 करोड़ से ज्यादा लोगों के पास मोबाइल है। हम मोबाइल में लगातार जो देखते हैं, जिसमें खबरें भी होती हैं। यह रिल या फिर वीडियो फॉर्मेट में हम देखते हैं। डिजिटल मीडिया के होने की वजह से हमें अखबारों या फिर टीवी की जरूरत नहीं पड़ती। हम किसी भी प्रकार की जानकारी को तुरंत हासिल कर सकते हैं। डिजिटल मीडिया ने आज संसार के माध्यम को बहुत सरल और तेज बना दिया है। हालांकि, यह बात भी सत्य है कि डिजिटल मीडिया की वजह से असत्य चीजों का प्रसार भी बढ़ा है। कमाई के लिए भ्रामक खबरें भी डाली जाती है जिससे आम आदमी की जानकारी को तो नुकसान पहुंचता ही है, समाज में भी कई बार टकराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसके अलावा आज के समय में यह सुनिश्चित होना चाहिए कि हमारे मोबाइल के जरिए जो जानकारी हमें मिल रही है वह सत्य होनी चाहिए और प्रामाणिक होनी चाहिए और इसके लिए डिजिटल मीडिया के नियमन के लिए कानूनी प्रावधान जरूरी है।हालांकि, कई बार विवाद के बाद इसको लेकर मांग जरूर उठती है। हाल में ही हमने देखा कि किस तरीके से चुनाव को प्रभावित करने के लिए सरकार के मंत्रियों के बयान को ही तोड़-मोड कर पड़े पेश किया गया। कई बार विपक्ष को भी इसका खामियाजा उठाना पड़ता है। शासन करने वाले तमाम लोगों को इसके फायदे और नुकसान पता है। बावजूद इसके डिजिटल मीडिया के नियमन को लेकर कोई ठोस प्रावधान वर्तमान में होता दिखाई नहीं दे रहा है। हालांकि वादे हर रोज किए जाते हैं और नए-नए नियम भी बताए जाते हैं। लेकिन उसका अमल कितना हो रहा है, इस पर सवाल बना हुआ है।

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