सुप्रीम कोर्ट की अपोलो अस्पताल को सख्त चेतावनी, गरीबों को मुफ्त इलाज नहीं मिला तो एम्स को सौंपा जाएगा

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के प्रतिष्ठित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल को कड़ी फटकार लगाते हुए चेतावनी दी है कि यदि गरीब मरीजों को मुफ्त इलाज मुहैया नहीं कराया गया, तो अस्पताल को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के हवाले कर दिया जाएगा। यह सख्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान की। कोर्ट ने अस्पताल द्वारा लीज समझौते का पालन न करने पर गहरी नाराजगी जताई, जिसके तहत उसे गरीबों के लिए मुफ्त चिकित्सा सुविधाएं देनी थीं।

एक रुपये की लीज पर जमीन, मगर शर्तों का उल्लंघन

इंद्रप्रस्थ मेडिकल कॉरपोरेशन लिमिटेड द्वारा संचालित अपोलो अस्पताल को दिल्ली में 15 एकड़ की कीमती जमीन मात्र एक रुपये की प्रतीकात्मक लीज पर दी गई थी। इसके बदले में अस्पताल को यह जिम्मेदारी सौंपी गई थी कि वह अपनी कुल क्षमता के एक तिहाई बेड (33%) गरीब मरीजों के लिए मुफ्त में उपलब्ध कराए और 40 प्रतिशत बाहरी मरीजों (ओपीडी) को बिना किसी भेदभाव के मुफ्त इलाज व अन्य सुविधाएं प्रदान करे। हालांकि, कोर्ट में सामने आए तथ्यों से पता चला कि अस्पताल इन शर्तों का पालन करने में विफल रहा है।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अगुवाई वाली पीठ ने कहा, “यह जमीन आपको जनता की भलाई के लिए दी गई थी, न कि केवल मुनाफा कमाने के लिए। अगर हमें पता चला कि गरीब मरीजों को मुफ्त इलाज से वंचित किया जा रहा है, तो हम इस अस्पताल को एम्स को सौंप देंगे।” कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि लीज समझौते का उल्लंघन न सिर्फ कानूनी रूप से गलत है, बल्कि यह गरीबों के स्वास्थ्य के अधिकार का भी हनन करता है।

एक याचिका में आरोप लगाया गया कि अपोलो अस्पताल गरीब मरीजों को मुफ्त इलाज देने में आनाकानी कर रहा है। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि अस्पताल ने अपनी सुविधाओं को मुख्य रूप से संपन्न वर्ग के लिए केंद्रित कर दिया है, जबकि लीज की शर्तों को नजरअंदाज किया जा रहा है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अस्पताल प्रशासन से इस संबंध में विस्तृत जवाब मांगा है।

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह रुख निजी अस्पतालों के लिए एक बड़ा संदेश है, जो सस्ती लीज पर जमीन लेकर भी सामाजिक दायित्वों से मुंह मोड़ते हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र के जानकारों ने भी इस फैसले का स्वागत किया है और इसे गरीबों के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं को सुलभ बनाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम बताया है।

सुप्रीम कोर्ट का यह कदम न केवल अपोलो अस्पताल के लिए, बल्कि देश भर के उन सभी निजी संस्थानों के लिए एक नजीर बन सकता है, जो सार्वजनिक संसाधनों का लाभ उठाकर भी अपने सामाजिक दायित्वों से पीछे हटते हैं।

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