वाराणसी ‘क्योटो’ तो नहीं बन पाई! 2019 की राह तय करेगी जनता

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वाराणसी। जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में पूर्वांचल की वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान किया तो ये सबकी नजरों में आ गई. मोदी ने गंगा की सफाई से लेकर घाटों की दुर्दशा तक को दूर करके काशी को क्योटो बनाने का वायदा किया। मोदी के प्रयासों से काशी बदली भी लेकिन रफ्तार सुस्त रही. अब एक बार फिर चर्चा है कि नरेंद्र मोदी वाराणसी से चुनाव लड़ेंगे।
बीजेपी को छोड़कर वाराणसी की लोकसभा सीट पर किस राजनैतिक दल का कौन उम्मीदवार हो सकता है, यह तो अभी तय नहीं है। लेकिन ये जरूर है कि जिस तरह से 2014 में बीजेपी के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी के पक्ष में जनता ने वोट दिया, और जीत के बाद वाराणसी में कई विकास योजनाओं की शुरुआत हुई, उससे जनता का मिजाज मोदी के पक्ष में ही जाता दिख रहा है।
‘हर हर मोदी, घर घर मोदी’ का नारा इस बार भी बीजेपी के लिए संजीवनी की तरह दिख रहा है. वाराणसी में मोदी की लहर के आगे सभी विपक्षी दल एक होकर बीजेपी को रोकने का प्रयास करेंगे। लेकिन ये रथ रुकेगा या थमेगा, इसका फैसला  तो जनता जनार्दन ही करेगी।
तीन सप्ताह पहले दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान की बैठक में पूर्व कांग्रेसी सांसद डॉ राजेश मिश्रा को वाराणसी से लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी करने के संकेत दिए गए थे। इस संकेत के बाद कांग्रेस के दूसरे खेमे के नेता अजय राय अपने प्रभाव को दिल्ली हाईकमान के सामने प्रस्तुत करने में मजबूती से लग गए हैं, लेकिन कांग्रेस व उसके गठबंधन का प्रत्याशी कौन होगा, ये निश्चित नहीं है।
सपा और बसपा के गठबंधन का प्रत्याशी कौन होगा, ये भी अभी तय नहीं हो पाया है। हाल ही में वाराणसी दौरे पर आए सपा प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम ने बताया वाराणसी उनके हिस्से में है. और इस बार सपा का प्रत्याशी मजबूत होगा।
भीम आर्मी संस्थापक चंद्रशेखर पीएम मोदी के खिलाफ यहां से चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके है. गठबंधन से उन्होंने समर्थन की अपील भी की है. हालांकि अभी सपा, बसपा इस पर चुप्पी साधे हैं.
चूंकि वाराणसी में अंतिम चरण में मतदान होना है. इस कारण अभी किसी पार्टी की ओर से वाराणसी की लोकसभा सीट पर प्रत्याशी के फैसले को लेकर के बड़ी सरगर्मी नहीं दिख रही है।
20 मार्च को कांग्रेस की महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रभारी प्रियंका गांधी का वाराणसी दौरा कांग्रेस की चुनावी विसात की बड़ी कड़ी है। अभी 2 दिन पहले ही बाबू सिंह कुशवाहा की पार्टी जन अधिकार पार्टी ने कांग्रेस से तालमेल किया है।
क्षेत्रीय पार्टियों और कुर्मी बिरादरी में अपनी मजबूत पैठ रखने वाली सोनेलाल पटेल की पार्टी अपना दल का एक खेमा अपना दल अनुप्रिया पटेल भाजपा के साथ है. वहीं, दूसरी ओर अपना दल कृष्णा गुट को कांग्रेस ने अपने साथ ले लिया है।
वाराणसी संसदीय क्षेत्र में कुर्मी वोटर अच्छी खासी संख्या मे हैं. कांग्रेस का इरादा मोदी की घेरांबदी मजबूत करने का है। वाराणसी लोकसभा सीट का जातीय गुणा भाग जानने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि
यहां कितने मतदाता हैं। वाराणसी संसदीय क्षेत्र में चंदौली की दो विधानसभाएं भी शामिल हैं। लगभग 28,29203 मतदाता सातवें चरण में वाराणसी संसदीय क्षेत्र में अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे।
जिले की सभी 8 विधानसभा क्षेत्रों में महिला मतदाताओं की भागीदारी बड़ी है. जिले में लगभग 19,427 युवा मतदाता जोड़े गए हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव में यह युवा मतदाता विनिंग फैक्टर साबित हो सकते हैं. कहा जाता है कि यूथ का मूड जिस ओर होगा हवा की बयार भी उसी और वह चलती है।
जातिगत लिहाज से इस सीट पर सवर्ण वोट बैंक असरदायक माना जाता है। नरेंद्र मोदी के प्रत्याशी हो जाने के बाद 2014 में जिस तरह से तस्वीर बदली, वह किसी से छुपी नहीं है। बीजेपी को वैश्य, बनियों और व्यापारियों की पार्टी मानी जाता है।
वैश्य मतदाताओं की संख्या यहां पर लगभग 3 से साढ़े तीन लाख के बीच है। जो कि सबसे ज्यादा है. वाराणसी लोकसभा क्षेत्र में लगभग ढाई लाख ब्राह्मण मतदाता हैं. तीन लाख के आसपास मुस्लिम मतदाता हैं। 13,0000 के आसपास भूमिहार मतदाता हैं। राजपूत मतदाताओं की संख्या भी एक लाख के आस पास है।
यहां पर यादव मतदाताओं की संख्या 16,0000 के आसपास है. पटेल बिरादरी जो कुर्मी बहुल क्षेत्र माना जाता है, उनकी संख्या भी दो लाख है। वाराणसी में चौरसिया मतदाताओं की संख्या अभी 80,000 से ऊपर है और लगभग 80,000 से 90,000 के बीच में दलित मतदाता भी हैं।
इसके अलावा अन्य पिछड़ी जातियां हैं। जो किसी एक प्रत्याशी पर वोट कर दें तो जीत तय की जा सकती है. इनकी भी संख्या 70,000 से ऊपर है।
आकड़े बताते हैं कि छोटी-छोटी जातियों के वोट बैंक बड़े मायने रखते हैं। 2014 में बीजेपी के साथ अपना दल जैसे क्षेत्रीय छोटी पार्टियों का गठजोड़ उसकी कामयाबी की बड़ी वजह थी।
 
लेकिन इस बार चुनौती बड़ी है. एक तो पिछड़े और दलित मतदाता पर गठबंधन की नजर है। कांग्रेस अपना दल के दूसरे गुट के सहारे कुर्मी वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में है. ब्राह्मण और अति पिछड़ी जातियों पर भी उसकी नजर है. ऐसे में इस बार लड़ाई उतनी आसान नहीं रहने वाली।
दुनिया के प्राचीनतम शहर वाराणसी की बात करें तो इतिहास की चर्चा स्वभाविक सी बात है. वाराणसी अस्सी से वरुणा के बीच में बसा वह शहर है जो शंकर का शहर माना जाता है। शिव के त्रिशूल पर बसी मां जान्हवी के अर्धचंद्राकार भौगोलिक आंचल में बसा यह वाराणसी आनंद वन से लेकर काशी, बनारस और अब वाराणसी कहा जाता है।
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख बाबा श्री विश्वनाथ की नगरी है। मोक्ष की नगरी है. 5-5 भारत रत्नों की जननी है। शिक्षा का केंद्र है। धर्म और संस्कृति की राजधानी है. रविदास और कबीर की जन्मस्थली, गोस्वामी तुलसीदास जी की कर्मस्थली और गौतम बुद्ध की ज्ञानस्थली है।
राजनीतिक गलियारे की अगर बात करें तो देश की आजादी के बाद 1952 में पहला लोकसभा चुनाव हुआ. वाराणसी के सांसद के रूप में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के रघुनाथ सिंह को जनता ने अपना सांसद चुना।
1952, 1957 और 1962 में लगातार तीन बार कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में रघुनाथ सिंह ने वाराणसी के सांसद के रूप में यहां का प्रतिनिधित्व किया। लगातार तीन कार्यकाल पूरा करने के बाद 1967 में जब लोकसभा का चुनाव हुआ तो रघुनाथ सिंह को हराकर कम्युनिस्ट पार्टी के सत्य नारायण सिंह ने वाराणसी से सांसद बने।
1977 में भारतीय लोक दल के चंद्रशेखर को वाराणसी का सांसद होने का गौरव प्राप्त हुआ. 1980 मे सांसद के रूप में कमलापति त्रिपाठी को जनता ने चुना 1991 में बीजेपी के श्रीचंद दीक्षित संसद रहे. 1991 से 1999 के बीच में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में श्रीचंद दीक्षित और शंकर प्रसाद जायसवाल चार बार वाराणसी के सांसद रहे।
2004 के चुनाव में शंकर प्रसाद को हार का सामना करना पड़ा. एक बार फिर 2004 में वाराणसी की सीट कांग्रेस के खाते में गई और डॉ राजेश मिश्रा वाराणसी के सांसद चुने गए। 2004 के बाद 2009 में लोकसभा चुनाव हुआ. भारतीय जनता पार्टी ने डॉ मुरली मनोहर जोशी को अपना उम्मीदवार बनाया। वाराणसी की जनता ने उन्हें अपना सांसद चुन लिया।
लोकसभा चुनाव का यह सफर 2009 से 2014 में पहुंचा, जो काफी महत्वपूर्ण चुनाव था. भारतीय जनता पार्टी की ओर से नरेंद्र मोदी को वाराणसी का प्रत्याशी बनाया गया और जनता ने भारी बहुमत से उनको अपना सांसद चुनकर देश का प्रतिनिधित्व करने का जिम्मा दे दिया।
1952 से लेकर 2014 के बीच में 16 बार लोकसभा का चुनाव हुआ. इस 16 बार के लोकसभा चुनाव में वाराणसी लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व सात बार कांग्रेस के सांसदों ने किया और जनता जनार्दन ने 6 बार भाजपा को यह मौका दिया।
वाराणसी की सीट से 1967 में कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी सत्य नारायण सिंह को भी प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला. 1977 में भारतीय लोक दल के प्रत्याशी चंद्रशेखर को और 1989 में जनता दल के अनिल शास्त्री को वाराणसी का सांसद होने का गौरव प्राप्त हुआ।
2014 में वाराणसी के लिए सांसद प्रत्याशी की घोषणा के बाद नमो नमो की लहर दिखाई पड़ने लगी. 2014 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के नरेंद्र मोदी, आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस के अजय राय उम्मीदवार बने।
बसपा ने व्यापारी विजय प्रकाश जायसवाल को चुनाव मैदान में उतारा. समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे कैलाश चौरसिया को उम्मीदवार बनाया. अरविंद केजरीवाल के अलावा कोई भी प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा सका।
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी नरेंद्र मोदी को 5,81000 से ज्यादा मत मिले। वहीं, केजरीवाल ने भी 21,0000 के आसपास वोट पर अपना कब्जा जमाया था।

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