शिकायत उनके मुख्यमंत्री रहते हुए दर्ज की गई थी, लेकिन…येदियुरप्पा केस में सुप्रीम कोर्ट ने उठाए अहम सवाल

राष्ट्रीय जजमेंट

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और एक प्रमुख भाजपा नेता, अपने खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले को फिर से शुरू करने का विरोध कर रहे हैं। इस मामले में भ्रष्टाचार और आपराधिक साजिश के आरोप शामिल हैं, जिसमें पूर्व उद्योग मंत्री मुरुगेश आर निरानी और कर्नाटक उद्योग मित्र के पूर्व प्रबंध निदेशक शिवस्वामी केएस भी शामिल हैं।शिकायत उनके मुख्यमंत्री रहते हुए दर्ज की गई थी, लेकिन स्वीकृति न होने के कारण उसे खारिज कर दिया गया। बाद में जब वेपद पर नहीं थे, तब एक और शिकायत दर्ज की गई, जिसे ट्रायल कोर्ट ने 2016 में खारिज कर दिया। लेकिन कर्नाटक हाई कोर्ट ने 2021 में उस मामले को फिर से शुरू कर दिया। अब सुप्रीम कोर्ट यह तय कर रहा है कि क्या इस मामले में 2018 के बाद लाए गए कानून के बदलाव पुराने मामलों पर भी लागू होंगे। कोर्ट के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर मैजिस्ट्रेट ने सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत जांच का आदेश दे दिया है, तो क्या भ्रष्टाचार कानून की धारा 17A के तहत भी सरकारी मंजूरी लेनी जरूरी होगी? सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे. बी. पारदीवाला ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि जब मैजिस्ट्रेट ने जांच का आदेश दिया हो, तो शायद 17A की मंजूरी जरूरी नहीं रह जाती। लेकिन कोर्ट यह भी देख रहा है कि मैजिस्ट्रेट और सरकार, दोनों जांच की अनुमति देने में किन-किन बातों पर ध्यान देते हैं और क्या ये प्रक्रियाएं एक-दूसरे से इतनी अलग हैं कि मैजिस्ट्रेट का आदेश 17A की जगह नहीं ले सकता?

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