प्रधानमंत्री संग्रहालय में हुई सामाजिक समरसता पर परिचर्चा, शिक्षा और संस्कारों की भूमिका पर जोर

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री संग्रहालय में भारत विकास परिषद, दिल्ली प्रांत (उत्तर) के तत्वावधान में “सामाजिक समरसता में शिक्षा एवं संस्कारों की भूमिका” विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बाबा साहेब अंबेडकर के अधूरे सपनों को पूरा करने का कार्य तेजी से हो रहा है।

मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की सराहना की और कहा कि इसमें सामाजिक समरसता के बीज निहित हैं, जिनके परिणाम भविष्य में दिखाई देंगे। उन्होंने देश के बंटवारे का जिक्र करते हुए कहा कि “पढ़े-लिखे लोगों ने ही देश का बंटवारा कराया।” उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत की ताकत को पहचानने की जरूरत है और 2047 तक “सबका विकास” का लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा।

परिचर्चा की अध्यक्षता कर रहे भारत विकास परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष आदर्श कुमार गोयल ने कहा कि बाबा साहेब अंबेडकर ने संविधान में एकता और समरसता की भावना को मजबूत करने पर बल दिया था। उन्होंने भारतीय संस्कृति का उल्लेख करते हुए कहा, “एक हैं तो सेफ हैं।” पश्चिम बंगाल में वक्फ कानून को लेकर हुई हिंसा पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि कानून का विरोध करना जायज हो सकता है, लेकिन हिंसा गलत है।

परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री सुरेश जैन ने कहा कि भारत विकास परिषद का उद्देश्य सेवा और संस्कार के जरिए समाज के अंतिम व्यक्ति तक भारतीय मूल्यों को पहुंचाना है। वहीं, विशिष्ट अतिथि कर्नल सिंह ने सामाजिक समरसता के लिए सोच में बदलाव की जरूरत बताई और वोटबैंक की राजनीति पर चिंता जताई। उन्होंने युवाओं से सही रोल मॉडल चुनने की अपील की।

दिल्ली विश्वविद्यालय के डीन प्रो. बलराम पाणी ने शिक्षा प्रणाली की चुनौतियों पर प्रकाश डाला और युवाओं को संस्कारों पर ध्यान देने की सलाह दी। प्रो. निरंजन कुमार ने विषय की पृष्ठभूमि प्रस्तुत की। कार्यक्रम में शिक्षाविदों, समाजसेवियों और परिषद के सदस्यों सहित बड़ी संख्या में गणमान्य लोग शामिल हुए।

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