‘हम कभी भी इसके पक्ष में नहीं रहे, जम्मू-कश्मीर के लिए सबसे अनुचित दस्तावेज’, सिंधु जल संधि पर बोले उमर अब्दुल्ला

राष्ट्रीय जजमेंट न्यूज 

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हस्ताक्षरित सिंधु जल संधि केंद्र शासित प्रदेश के लोगों के लिए सबसे अनुचित दस्तावेज है। मीडिया को संबोधित करते हुए उमर अब्दुल्ला ने सिंधु जल संधि पर कड़ी असहमति जताते हुए कहा, “भारत सरकार ने कुछ कदम उठाए हैं। जहां तक ​​जम्मू-कश्मीर का सवाल है, हम कभी भी सिंधु जल संधि के पक्ष में नहीं रहे हैं। हमारा हमेशा से मानना ​​रहा है कि सिंधु जल संधि जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए सबसे अनुचित दस्तावेज रही है।”हालांकि, उमर अब्दुल्ला ने आज कहा कि सिंधु जल संधि से जम्मू-कश्मीर को पहले ही बहुत नुकसान हो चुका है। लेकिन अगर इस संधि के निलंबन से जम्मू-कश्मीर को फायदा होता है, तो मैं सबसे पहले यह कहूंगा कि यह एक अच्छा कदम है। पहलगाम में हुए हमले में 26 लोग मारे गए थे, जिसके बाद भारत ने बुधवार को पाकिस्तान के साथ राजनयिक संबंधों में कटौती की और कई उपायों की घोषणा की, जिनमें पाकिस्तानी सैन्य सलाहकार (अताशे) को निष्कासित करना, 1960 की सिंधु जल संधि को स्थगित करना और अटारी-वाघा सीमा पारगमन चौकी को तत्काल बंद करना शामिल है।
केंद्र सरकार ने 1960 में हुई सिंधु जल संधि स्थगित करने के लिए बृहस्पतिवार को एक आधिकारिक अधिसूचना जारी की। सूत्रों ने यह जानकारी दी। इस संबंध में पाकिस्तान को बृहस्पतिवार को औपचारिक जानकारी देते हुए भारत ने कहा कि उसने समझौते की शर्तों का उल्लंघन किया है। भारत की जल संसाधन सचिव देबाश्री मुखर्जी ने अपने पाकिस्तानी समकक्ष सैयद अली मुर्तजा को लिखे पत्र में कहा कि जम्मू-कश्मीर को निशाना बनाकर पाकिस्तान द्वारा जारी सीमा पार आतंकवाद सिंधु जल संधि के तहत भारत के अधिकारों में बाधा डालता है। मुखर्जी ने पत्र में कहा, ‘‘किसी संधि का सद्भावपूर्वक सम्मान करने का दायित्व संधि का मूल होता है। हालांकि, इसके बजाय हमने देखा है कि पाकिस्तान भारतीय केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर को निशाना बनाकर सीमा पार से आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है।’’ पत्र में कहा गया है, ‘‘ उत्पन्न सुरक्षा अनिश्चितताओं ने संधि के तहत भारत के अधिकारों के पूर्ण उपयोग में प्रत्यक्ष रूप से बाधा उत्पन्न की है।’’ पाकिस्तान को भेजे गए पत्र में ‘‘काफी हद तक जनसांख्यिकी में बदलाव, स्वच्छ ऊर्जा के विकास में तेजी लाने की आवश्यकता और अन्य बदलावों’’ को भी संधि के दायित्वों के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता वाले कारणों के रूप में रेखांकित किया गया।

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