खुले में शौच: भारत को हासिल होगी जल्‍द एक और उपलब्धि

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भारत तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था के लिए ही प्रयास नहीं कर रहा, बल्कि स्थाई विकास लक्ष्य-2030 के 6 (2) लक्ष्य यानी खुले में शौच से मुक्ति पाने वाले लक्ष्य को हासिल करने के भी करीब है। देश के लिए यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी और यह लक्ष्य देश की आर्थिक वृद्धि को और रफ्तार देने में सहायक होगा।
हाल में देश की राजधानी दिल्ली में पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय ने चार दिवसीय महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें 45 मुल्कों के मंत्रियों व विशेषज्ञों ने शिरकत की और वे स्वच्छ भारत मिशन की प्रगति से रूबरू हुए।
इस सम्मेलन का महत्व इससे आंका जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटनियो गुटेरस और यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरिटा फोर भी विशेष तौर पर मंच पर उपस्थित थीं। कार्यकारी निदेशक फोर ने इस मौके पर अपने भाषण में जो कहा वह गौरतलब है- दक्षिण एशिया ने बीते एक दशक में शौचालय के प्रयोग में जितनी प्रगति की है, उतनी इतिहास के किसी भी दौर में नहीं की।
आंकड़ों पर नजर डालें तो इस क्षेत्र में 24 करोड़ से अधिक लोग खुले में शौच से मुक्ति पाकर शौचालयों का प्रयोग कर रहे हैं और फोर ने भारत का विशेष तौर पर जिक्र किया कि इस प्रगति को गति देने में मेजबान देश भारत का भी योगदान है।
भारत में अब तक 21 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश शौच से मुक्त हो चुके हैं। स्थाई विकास लक्ष्य में 2030 तक सब की शौचालय तक पहुंच वाला लक्ष्य अहम है। और वह इसलिए, क्योंकि इसमें सुधार होने से बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण में सुधार होता है।
उनकी स्कूल में टिके रहने की संभावना अधिक रहती है। सीखने के स्तर में सुधार होता है और बड़े होकर मुल्क के कार्यबल में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। इससे उनकी कमाई में भी वृद्धि होती है।
परिवारों को भी फायदा होता है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार स्वच्छता की दशा खराब होने के कारण वैश्विक जीडीपी को सालाना 260 अरब डॉलर का नुकसान होता है।
यह स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च और उत्पादकता में कमी के कारण होता है। भारत सरकार के एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि खुले में शौच से मुक्त माहौल में परिवार मेडिकल खर्च और समय को बचाकर सालाना 50,000 रुपये तक बचा सकते हैं।
प्रगति महज अधिक से अधिक शौचालय बनाना भर नहीं है, लोगों के व्यवहार में परिवर्तन लाकर शौचालय इस्तेमाल को सुनिश्चित करना भी है। और वे यह समझे कि यह उनके स्वास्थ्य और उनके बच्चों के भविष्य के लिए जरूरी क्यों है?
स्वच्छता के संदर्भ में विश्वभर में बच्चों व युवाओं की भागीदारी पर जोर दिया जा रहा है, युवा न सिर्फ हमारी दुनिया के भविष्य का प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि वे आज अपने-अपने समुदायों में परिवर्तन के दूत भी हैं।
उदाहरण के लिए देश के कबीरधाम जिले में 1,700 से अधिक स्कूलों के 1,38,000 विद्यार्थियों ने अपने-अपने अभिभावकों को अपने-अपने घरों में शौचालय बनाने के लिए प्रार्थना पत्र लिखा और उसका परिणाम यह हुआ कि उस जिले में स्वच्छता कवरेज 25 प्रतिशत तक बढ़ गया।
स्वच्छता का एक अन्य पहलू रोजगार से भी जुड़ता है। निकारागुआ में यूनिसेफ किशोर लड़कियों व लड़कों को अपने-अपने समुदायों व स्कूलों में पानी व स्वच्छता की सुविधाओं का निर्माण करने के लिए मिस्त्री का प्रशिक्षण दे रहा है।
दरअसल इस समय सरकारों और व्यवसायों को जल व स्वच्छता को एक अवसर के तौर पर इस्तेमाल करने की जरूरत है। इसके लिए युवाओं के कौशल विकास प्रशिक्षण पर फोकस करना होगा। हाल ही में कौशल विकास मंत्री धर्मेद्र प्रधान ने कहा कि भारत युवाओं का देश है और यही युवा देश की सबसे बड़ी ताकत हैं।
उन्होंने कहा कि आज देश की जरूरत है कि हमारे शिक्षा तंत्र ने जो ज्ञान दिया है उसे रोजगार के मौकों में बदला जाए। उन्होंने यह भी कहा कि युवाओं को नए जमाने के कौशल के साथ प्रशिक्षित किया जाए, साथ ही अपनी वर्कफोर्स में महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ानी होगी,
ताकि मुल्क की जीडीपी में उनका भी योगदान हो सके और बड़े सामाजिक बदलाव में महिलाएं भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लें। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि भारत में हर पांचवां व्यक्ति 10-19 आयुवर्ग का है। इस दृष्टि से दुनिया के सबसे अधिक किशोर भारत में हैं। भारत के लिए यह एक सुनहरा अवसर है
टॉयलेट बोर्ड कोएलिशन के अनुसार अनुमान है कि भारत में टॉयलेट संबंधित उत्पादों और सेवाओं का बाजार 2021 तक दोगुना बढ़कर 62 अरब डॉलर तक हो जाएगा। भारत सरकार के कौशल विकास मंत्रालय को इस बात का अहसास है कि विदेशों में कौशल युक्त भारतीय युवाओं की बहुत मांग है,
लिहाजा युवा आबादी को हुनरमंद बनाने के लिए सरकार चौतरफा प्रयास कर रही है। देश में कौशल विकास के प्रशिक्षण से जुड़े केंद्रों को मान्यता देने के लिए सरकार ने नया नियामक बनाने का फैसला किया है। नीति आयोग व यूनिसेफ भारत ने युवाओं की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए भागीदारी की है।
इस राष्ट्रीय भागीदारी का लक्ष्य 2.5 करोड़ स्कूली किशोर और युवाओं, स्कूल से बाहर करीब दो करोड़ यळ्वाओं और अन्य करोड़ों युवाओं तक पहुंचना है।
भारत में वर्तमान कार्यबल 48 करोड़ है। इसमें से 93 प्रतिशत यानी 44.6 करोड़ लोग छोटे, अनौपचारिक यानी असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। 60 प्रतिशत से भी अधिक गांवों में काम करते हैं। आने वाले 20 सालों में देश की वर्तमान आबादी के 44.4 करोड़ बच्चे कार्य करने वाली आयु के हो जाएंगे।
उन्हें बाजार की जरूरतों के अनुकूल तैयार करना देश के लिए एक बहुत बड़ा काम है। जाहिर है कि सरकार बड़ी संस्थाओं, व्यवसायों और अन्य हितधारकों के सहयोग से ही यह लक्ष्य हासिल कर सकती है।

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बहरहाल स्थाई विकास लक्ष्य वर्ष 2030 को हासिल करने के लिए युवाओं को आगे आने के मौके दिए जा रहे हैं। भारत 2019 तक खुले में शौच से मुक्ति पाने वाला दर्जा हासिल करने की राह पर है, यह स्थाई विकास लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में उल्लेखनीय योगदान होगा।

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