हरतालिका तीज पर माता पार्वती और भगवान शंकर की विधि-विधान से की जाती है पूजा,

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हरतालिका व्रत को ‘हरतालिका तीज’ या ‘तीजा’ भी कहते हैं।
इस बार यह व्रत 1 सितंबर 2019, रविवार को शुभ मुहूर्त सुबह 5.27 से 7.52 तथा प्रदोष काल पूजा मुहूर्त शाम 17.50 से 20.09 तक है।
हरतालिका तीज पर माता पार्वती और भगवान शंकर की विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है
हरतालिका पूजन के लिए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की बालू रेत व काली मिट्टी की प्रतिमा हाथों से बनाएं।
 पूजास्थल को फूलों से सजाकर एक चौकी रखें और उस चौकी पर केले के पत्ते रखकर भगवान शंकर, माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें।
इसके बाद देवताओं का आह्वान करते हुए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश का षोडशोपचार पूजन करें।
सुहाग की पिटारी में सुहाग की सारी वस्तु रखकर माता पार्वती को चढ़ाना इस व्रत की मुख्य परंपरा है।
इसमें शिवजी को धोती और अंगोछा चढ़ाया जाता है।
यह सुहाग सामग्री सास के चरण स्पर्श करने के बाद ब्राह्मणी और ब्राह्मण को दान देना चाहिए।
पौराणिक कथा
लिंग पुराण की एक कथा के अनुसार मां पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त
करने के लिए हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया।
इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया।
काफी समय सूखे पत्ते चबाकर काटी और फिर कई वर्षों तक उन्होंने केवल हवा पीकर ही जीवन व्यतीत किया।
माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता अत्यंत दुखी थे।
इसी दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वतीजी के विवाह का प्रस्ताव लेकर
मां पार्वती के पिता के पास पहुंचे जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया।
पिता ने जब मां पार्वती को उनके विवाह की बात बतलाई तो वे बहुत दु:खी हो गईं और जोर-जोर से विलाप करने लगीं।
फिर एक सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया
कि वे यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं
जबकि उनके पिता उनका विवाह विष्णु से कराना चाहते हैं।
तब सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गईं
और वहां एक गुफा में जाकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गईं।
भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र को माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया
और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया।
तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए
और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।
मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि-विधानपूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं,
वे अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करती हैं।
साथ ही यह पर्व दांपत्य जीवन में खुशी बरकरार रखने के उद्देश्य से भी मनाया जाता है।
उत्तर भारत के कई राज्यों में इस दिन मेहंदी लगाने और झूला झूलने की प्रथा है।
विशेषकर उत्तरप्रदेश के पूर्वांचल और बिहार में मनाया जाने वाला यह त्योहार करवा चौथ से भी कठिन माना जाता है,
क्योंकि जहां करवा चौथ में चांद देखने के बाद व्रत तोड़ दिया जाता है,
वहीं इस व्रत में पूरे दिन निर्जल व्रत किया जाता है और अगले दिन पूजन के पश्चात ही व्रत तोड़ा जाता है।
इस व्रत से जुड़ी एक मान्यता यह है कि इस व्रत को करने वाली स्त्रियां पार्वतीजी के समान ही सुखपूर्वक
पतिरमण करके शिवलोक को जाती हैं।
सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखंड बनाए रखने
और अविवाहित युवतियां मन-मुताबिक वर पाने के लिए हरितालिका तीज का व्रत करती हैं।
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सर्वप्रथम इस व्रत को माता पार्वती ने भगवान शिवशंकर के लिए रखा था।
इस दिन विशेष रूप से गौरी-शंकर का ही पूजन किया जाता है।
इस दिन व्रत करने वाली स्त्रियां सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाती हैं और नहा-धोकर पूरा श्रृंगार करती हैं।
पूजन के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर गौरीशंकर की प्रतिमा स्थापित की जाती है।
इसके साथ ही माता पार्वतीजी को सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है।
रात में भजन-कीर्तन करते हुए जागरण कर 3 बार आरती की जाती है और शिव-पार्वती विवाह की कथा सुनी जाती है।

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