महाराष्ट्र की बागडोर शरद पवार के हाथों में, भाजपा को मिली शिकस्त
बीते शनिवार को जैसे ही सुबह सबने देखा कि अजित पवार ने भाजपा से हाथ मिलाकर महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली,
तो यही राय बनी कि यह शरद पवार का दांव है।
उन्होंने भतीजे को भाजपा के साथ आगे बढ़ा कांग्रेस-शिवसेना को दुविधा में डाल दिया है।
वह दोनों तरफ से मोहरें चल रहे हैं।
मगर पवार ने पूरे धीरज से न केवल अपने दोनों सहयोगी दलों का विश्वास बरकरार रखने में सफलता पाई
बल्कि अगले तीन दिनों में अपना किला सुरक्षित रखते हुए ऐसी चालें चली कि भाजपा को परास्त कर दिया।
शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी की सरकार बनाने की राह के सारे कांटे हटा दिए।
भाजपा की सरकार बनने के अगले 78 घंटों में ऐसा क्या किया पवार ने।
महत्वपूर्ण बिंदु…
अजित पवार की बगावत के बाद सबसे पहले कांग्रेस-शिवसेना को विश्वास में लिया कि यह अजित का निजी फैसला है।
उनका या एनसीपी का नहीं।
एनसीपी कार्यकर्ता उलझन में थे कि अजित के साथ जाएं या शरद पवार के साथ रहें।
प्रेस कॉन्फ्रेंस करके पवार ने सारी स्थिति साफ की। उद्धव ठाकरे को लगातार साथ रखा,
जिससे दिखे महाविकास अघाड़ी में कोई बिखराव नहीं है।
पवार ने मीडिया के सामने अपने विधायकों को पेश किया।
मीडिया के माध्यम से यह संदेश दिया कि भाजपा ने भी एनसीपी विधायकों को उलझाने में सक्रिय भूमिका निभाई।
अजित पवार के साथ जो नेता गए थे
उनसे संपर्क करने और लौटाने के लिए अपने विश्वसनीय (जयंत पाटिल, छगन भुजबल) लोगों को लगाया।
पवार ने लापता विधायकों के परिवारों को अपनी चिंता में शामिल किया,
जिन्होंने पुलिस में गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई।
वापस लौटे विधायकों को मीडिया में पेश करके उनके साथ जो हुआ,
वह बयान कराया और अजित पवार को एहसास दिलाया कि वे अकेले पड़ रहे हैं।
अजित के करीबी धनंजय मुंडे-माणिकराव कोकाटे को पवार ने विश्वास में लिया।
इससे भाजपा का आत्मविश्वास कमजोर पड़ा।
अकेले पड़े अजित पवार एनसीपी से दूर न होकर भाजपा के प्रभाव में न आ जाएं,
इसलिए शरद पवार ने परिजनों को काम पर लगाया कि वे अजित के संपर्क में रहें तथा वापस आने के लिए दबाव बनाएं।
शरद पवार ने लगातार एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना के नेताओं से मुलाकातें करके एकसूत्र में बांधे रखा।
होटल हयात में ‘वी आर 162’ (हम हैं 162) आयोजित करके मीडिया के माध्यम से दुनिया को बताया की भाजपा ने बहुमत न होने के बावजूद सरकार बनाई है।
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अजित पवार पर अंतिम भावनात्मक वार तब हुआ जब शरद पवार की पत्नी प्रतिभा पवार ने उनसे मिलकर बात की। चाची ने उन्हें समझाया कि कुटुंब सबसे बड़ा है।
अंतत: अजित पवार का इस्तीफा करवा के शरद पवार ने तय कर कर दिया कि भाजपा की सरकार मात्र 78 घंटों में गिर जाए।