श्रीनगर. जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता अली शाह गिलानी ने ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (जी) से इस्तीफा दे दिया है। एक ऑडियो मैसेज में उन्होंने कहा, ‘‘हुर्रियत कान्फ्रेंस के मौजूदा हालात को देखते हुए मैंने इसके सभी स्वरूपों से अलग होने का फैसला किया है। इसके बारे में हुर्रियत के सारे लोगों को विस्तार से चिट्ठी लिखकर सूचना दे दी गई है।’’ 90 साल के गिलानी पार्टी के आजीवन अध्यक्ष थे।
गिलानी की तबीयत भी ठीक नहीं
गिलानी की सेहत पिछले कुछ महीनों से ठीक नहीं चल रही। कहा जाता है कि उन्हें हार्ट, किडनी और लंग्स में दिक्कत है। फरवरी में उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती किया गया था। कई बार उनकी तबीयत को लेकर अफवाहें भी उड़ाई गई थीं।
क्या है हुरियत कांफ्रेंस
हुर्रियत कॉन्फ्रेंस कश्मीर में सक्रिय सभी छोटे-बड़े अलगाववादी संगठनों का मंच है। दरअसल, जम्मू-कश्मीर में 1987 में फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कान्फ्रेंस और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था। नेशनल कॉन्फ्रेंस को 40 और कांग्रेस को 26 सीटें मिलीं। अब्दुल्ला ने सरकार बनाई। इस चुनाव में विरोधी पार्टियों की मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट को सिर्फ 4 सीटें मिलीं। इसके बाद कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के गठजोड़ के विरोध में घाटी में 13 जुलाई 1993 को ऑल पार्टीज हुर्रियत कान्फ्रेंस की नींव रखी गई। इसका काम घाटी में अलगाववादी आंदोलन को बढ़ाना था।
2004 में नया गुट बनाया
गिलानी मतभेदों की वजह से 2003 में हुर्रियत से अलग हो गए थे। उन्होंने नया गुट ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (जी) या तहरीक-ए-हुर्रियत बना लिया था। दूसरे गुट ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के मुखिया मीरवाइज उमर फारूक हैं। गिलानी वाले गुट को कट्टरपंथी और मीरवाइज वाले गुट को उदारवादी माना जाता है।