आक्रामक हुई कांग्रेस के सामने पड़े अकेले शिवराज सिंह चौहान

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मध्‍य प्रदेश में प्रचार समिति के प्रमुख और राहुल गांधी के करीबी होने के नाते, ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को कांग्रेस का मुख्‍यमंत्री उम्‍मीदवार माना जा रहा था। मगर 72 वर्षीय कमलनाथ ने जिस आक्रामक अंदाज में प्रचार किया है, उससे मुकाबला रोचक हो गया है।
उम्‍मीदवार तय करने में अहम भूमिका अदा करने वाले अहमद पटेल, मुकुल वासनिक, मधुसूदन मिस्‍त्री, वीरप्‍पा मोइली और अशोक गहलोत जैसे दिग्‍गज कमलनाथ के साथ हैं। नाथ के ही सहयोगी दिग्‍विजय सिंह ने बागियों को किनारे करने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है।
मध्‍य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 के मद्देनजर राजनैतिक पार्टियां धुआंधार चुनाव प्रचार में जुटी है। राज्‍य में लंबे समय से विपक्ष की भूमिका निभा रही कांग्रेस को इस बार जीत की प्रचंड संभावना दिख रही है। पार्टी में नेतृत्‍व को लेकर कुछ असमंजस की स्थिति जरूर है।
राहुल ने कई बार कहा है कि कांग्रेस के लिए ‘करो या मरो’ की इस लड़ाई में एकता जरूरी है। अगर पार्टी बिना किसी सहयोगी के जीत दर्ज करती है तो 2019 में प्रमुख विपक्षी दल के तौर पर उसकी भूमिका पुष्‍ट हो जाएगी।
दूसरी तरफ भाजपा शायद यह नहीं समझ रही कि राज्‍य में सत्‍ता पर काबिज रहना उसके लिए कितना अहम है। लोकसभा चुनाव से पहले विधानसभा चुनावों में हार उसे बैक-फुट पर ला देगी।
द इंडियन एक्‍सप्रेस में अपने साप्‍ताहिक कॉलम ‘Inside Track’ में कूमी कपूर ने लिखा है कि अब तक मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अकेले ही सत्‍ता बचाने छोड़ दिया गया है। राज्‍य से आने वाले केंद्रीय मंत्री जैसे-
उमा भारतीय, थावरचंद गहलोत और सुषमा स्‍वराज पूरी मजबूती के साथ शिवराज संग खड़े नहीं दिख रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी राज्‍य में 11 रैलियां ही करेंगे, जबकि उन्‍होंने कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए 21 जनसभाएं तथा गुजरात चुनाव में 34 रैलियां की थीं।
भाजपा के रणनीतिकार अनिल दवे के निधन का असर भी भाजपा की प्रदेश की राजनीति पर असर साफ नजर आ रहा है। भाजपा में दवे जिस जिम्मेदारी को संभालते थे, उसे संभालने के लिए केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर,
धर्मेद्र प्रधान, भाजपा के प्रवक्ता डॉ. संबित पात्रा सहित कई प्रमुख नेताओं को दिल्ली से भोपाल लाकर बिठाना पड़ा है, उसके बाद भी पार्टी में न तो सामंजस्य बन पा रहा है और न ही बगावत को थामा जा सका है।
चुनाव करीब आते ही भाजपा की राज्य इकाई को संचालित करने की कमान पूरी तरह ‘दिल्ली’ के नेताओं के हाथ में सौंप दी गई है। राज्य के अधिकांश नेता वही कर रहे हैं जो
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पार्टी हाईकमान द्वारा भेजे गए नेता निर्देश दे रहे हैं। इस तरह राज्य के नेताओं की हैसियत सिर्फ आदेश का पालन करने वाले कार्यकर्ताओं की होकर रह गई है।

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