प्लास्टिक वेस्ट से सड़क तैयार करने वाला यूपी का पहला शहर लखनऊ

चेन्नई, पुणे, जमशेदपुर और इंदौर के बाद,अब लखनऊ उन शहरों में शामिल हो गया है जो सड़कों को बनाने के लिए प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल कर रहा है.

लखनऊ: यूपी में पहली बार पॉलिथीन के वेस्ट से सड़क बनी है. राजधानी लखनऊ में यह सड़क नई हाई कोर्ट बिल्डिंग के पास इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान के सामने बनी है. ये सड़क 300 मीटर लंबी और 16 मीटर चौड़ी है. दरअसल प्लास्टिक कचरे की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए कई भारतीय शहरों ने पर्यावरण के अनुकूल तरीकों का सहारा लिया है. चेन्नई, पुणे, जमशेदपुर और इंदौर के बाद अब लखनऊ उन शहरों में शामिल हो गया है, जो सड़कों को बनाने के लिए प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल कर रहा है.

दस फीसदी कम है लागत

लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) के जुड़े लोगों का कहना है कि इसकी लागत 10 फीसदी कम है. वहीं इसके बाद अगली सड़क आईआईएम के पास एल्डिको कॉलोनी की अप्रोच रोड होगी. एलडीए ने पायलट प्रोजेक्ट के तहत स्टिक कचरे का इस्तेमाल करके सड़क बनाना शुरू किया है. प्लास्टिक कचरे का इस तरह इस्तेमाल पर्यावरण के अनुकूल एक कदम है. शुरूआती चरण में इस पर्यावरण के अनुकूल पहल का उपयोग गोमती नगर पुलिस स्टेशन से भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम लखनऊ) तक सड़क बनाने के लिए किया गया है.

प्रत्येक किलोमीटर पर होगी 30,000 रुपये की बचत

रिपोर्ट के अनुसार प्लास्टिक कचरे से बनाई जाने वाली सड़कों में एक किलोमीटर सड़क के लिए नौ टन कोलतार और एक टन प्लास्टिक कचरे की आवश्यकता होती है।ऐसे में प्रत्येक किलोमीटर पर सरकार को एक टन कोलतार की बचत होती है। जिसकी कीमत करीब 30,000 रुपये हैं।इसी तरह प्लास्टिक कचरे से बनी सड़कों में 6-8 प्रतिशत प्लास्टिक और 92-94 प्रतिशत बिटुमिन होता है। इससे सड़क मजबूत होती है।

सामान्य सड़क से अधिक मजबूत

एलडीए अधिकारियों का दावा है कि प्लास्टिक का उपयोग कर बनीं सड़कों में बारिश के समय गड्ढे भी नहीं होंगे। तीन से पांच साल तक चलने वाली सड़कों की उम्र 10 साल तक बढ़ सकती है। प्लास्टिकमैन प्रो. राजगोपालन वासुदेवन की इस तकनीक में 10 प्रतिशत प्लास्टिक वेस्ट का उपयोग होता है। प्लास्टिक कचरे को 170 डिग्री पर पिघलाकर गिट्टी और पत्थर पर लेयर बनाई जाती है। बाद में बिटुमिन के मोर्टार को इस पर गिराने से अधिक मजबूत लेयर पूरे माल की बन जाती है। इससे बारिश के समय पानी का असर भी इस पर नहीं होगा।

इस भारतीय प्रोफेसर का अविष्कार

भारत के प्लास्टिक मैन के नाम से मशहूर प्रो. राजगोपालन वासुदेवन ने इसके लिए टेक्नोलॉजी तैयार की थी। प्रो. वासुदेवन मदुरै के त्यागराज कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में रसायन विज्ञान के प्रोफेसर है इन्होने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों पद्म श्री पुरस्कार ग्रहण किया

भारत में प्रतिदिन निकलता है 25, 940 टन प्लास्टिक कचरा

भारत में लगभग 4,300 हाथियों के वजन के बराबर, प्रतिदिन करीब 25,940 टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार इसमें से 60% रिसाइकल हो जाता है बाकी को लैंडफिल में डंप किया जाता है, नालियों को भरा जाता है, समुद्र में सूक्ष्म प्लास्टिक के रूप में चला जाता है, जिससे वायु प्रदूषण होता है।ऐसे में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए इस कचरे का सड़क निर्माण में उपयोग किया जा रहा है।

100 गाय मरती हैं हर महीने

नॉन डिग्रेडेबल होने की वजह से पॉलीथिन जमीन में सालों तक दबे रहने पर भी विघटित नहीं होती है। नालों, नालियों और सीवेज लाइन में फंसने से यह आए दिन चोक होती हैं। वहीं खुले में पड़े होने पर इसे पशु भी खा लेते हैं। जानकारी के मुताबिक राजधानी में हर महीने करीब 100 गौवंशीय पशु पॉलीथिन खाकर मर जाते हैं। कई सामाजिक संगठन पॉलिथीन के प्रतिबंध पर आवाज उठाते रहते हैं

राघवेंद्र सिंह
जर्नलिस्ट, लखनऊ

Comments are closed.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More