विवाह- विच्छेद समाज लिए जहर है – सतीश कुमार सारस्वत

देश में अनेक सामाजिक समस्याएं हैं। कुछ समस्या तो ऐसी है जो अन्य समाज समस्याओं को जो अन्य समस्याओं को जन्म दे रही हैं। जिससे समाज पूरी तरह पीड़ित है, जिनमें जनसंख्या वृद्धि, गरीबी, भ्रष्टाचार, दहेज प्रथा,बाल अपराध, भ्रूणहत्या व विवाह-विच्छेदन जैसी समस्याओं ने समाज के हर को जकड़ रखा है। जिस रफ्तार से विवाह विच्छेदन समाज में पैर पसार रहा है, उससे एक सभ्य समाज का अस्तित्व खतरे में है।

वर्तमान स्थिति में80प्रतिशत मुकदमे अदालतों में पति पत्नी के झगड़े व घरेलू हिंसा के चल रहे हैं।जिससे आने वाली पीड़ी का भविष्य खतरे में है। विवाह बंधन अत्यंत ही पवित्र बंधन है। जिसमें उत्तरदायित्व पूर्तियों के साधन समाविष्ट हैं।तथा स्त्री पुरुष के शारीरिक मानसिक चरित्र का समावेश जो दो आत्माओं के पारस्परिक सहवास द्वारा आत्म सुख प्रेम वात्सल्य त्याग से संसार की रचनात्मक क्रिया की एक पवित्र शांति कुटी है। जो दोनों के प्रणय सूत्र में पवित्रता से सतीत्व से पतिव्रत व पत्नी व्रत की प्रतिज्ञा के साथ समाज की मर्यादा व सीमाओं में रह कर एक दूसरे में एक दूसरे की मौजूदगी का आकर्षण है। जो गुण एक में नहीं दूसरे में ,पृथक-पृथक होते हुए भी एक दूसरे का पूरक हैं।

विवाह संस्कार दो आत्माओं का परस्पर सामंजस्य है। जो व्यक्तिगत सुविधा से पथ भृष्ट न हो कर अपने धैर्य और संयम की साधना है।जो हिन्दू धर्म में एक सभ्यता एवं संस्कृति है।जो जीवन पर्यन्त एक दूसरे का साथ न छोड़ने के लिए प्रतिबद्ध है। हिंदू धर्मानुसार मानसिक व शारीरिक रूप से सक्षम वयस्क युवक-युवती जो सामाजिक मर्यादा व सीमाओं में रहकर अपने कर्तव्य के साथ परिवार की जिम्मेदारी उठाने को ही ,घर,परिवार, कुटम्बियों व समाज के संभ्रांत लोगों की उपस्थिति में धर्मानुष्ठा से अग्नि व सभी देवों को साक्षी मान कर विवाह-संस्कार से पृणय -सूत्र में बांधा जाता है। जिसमें समाज भी उनके एक सूत्र बंधन का प्रत्यक्षी है।उसके बाद विवाह-विच्छेद अनेक विचारों को दर्शाते हुए भयंकर स्थिति पैदा कर समाज को अव्यवस्थित करता है।

आपसी फूट के कारण समाज की सभी मर्यादा एवं सीमाएं टूटती चली गई किसी भी परिवार पर सामाजिक दबाव नहीं रहा और व्यक्ति विशेष समाज से अलग होता जा रहा है जिसके कारण ऐसी समस्याएं पैदा हो रही है। माता पिता व अन्य परिवारी जनों के हाथ से युवाओं के नियंत्रण की डोर छूट गई सामूहिक परिवार मिटते चले गए युवा वर्ग अपने आप उचित अनुचित फैसला लेने लगे परिवार टूट कर एकल परिवार में बदल गए सभी अपनी सभ्यता व संस्कृति को भूलकर पाश्चात्य सभ्यता में वैसे चले गए चरित्रों का हनन हो गया किसी भी प्रकार का सामाजिक दबाव ना होना विवाह विच्छेदन के कारण बन गए जो किसी सभ्य समाज के लिए घातक हैं।

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