भारत की चीन पर टेक्नोलाजी के मामले मे पकड़ पहले से और भी ज्यादा मजबूत

आर जे न्यूज़-

पिछले साल गलवान घाटी पर चीन के रवैये और घाटी में हुई हिंसा के बाद भारत औऱ चीन के बीच रिश्तों में तनाव बरकरार है। वहीं सीमा विवाद को लेकर कई दौर की बैठक हो चुकी है लेकिन अभी तक कोई भी नतीजा नहीं निकला है। चीन की सेना 3,488 किमी के वास्तविक नियंत्रण रेखा से पीछे हटने का कोई संकेत नहीं दे रहा है। लेकिन भारत ने अब चीन और उसके सैनिकों पर निगरानी रखने के लिए सख्त कदम उठाए हैं।

भारत अब ड्रोन्स, सेंसर्स, टोही विमान और इलेक्ट्रॉािनिक युद्ध के औजारों के जरिए चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की हरकतों पहले से ज्यादा पैनी नजर रखेगा। भारत के इस कदम के पीछे का सबसे बड़ा उद्देश्य चीन की हरकतों और भारत की सीमा ने घुसने से उसे रोकना है।

रक्षा मंत्रालय के एक सूत्र ने जानकारी दी कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान के साथ 778 किमी लंबी नियंत्रण रेखा की तरह लगातार पैनी नजर नहीं रखी जा सकती। इसलिए वास्तविक नियंत्रण रेखा पर रियल टाइम जानकारी के लिए मौजूदा निगरानी प्रणाली को और दुरुस्त किया जाएगा।

सूत्र ने जानकारी दी कि अधिग्रहण और इंडक्शन की योजना हाई एल्टीट्यूड वाले क्षेत्रों के लिए मिनी ड्रोन और अल्ट्रा लार्ज रेंज सर्विलांस कैमरों से लेकर सुदूर पड़ोसी विमान प्रणालियों के लिए मीडियम एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस और हाई अल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस तक है।

इसके अलावा इजराइल से तीन से चार हेरॉन यूएवी को लीज पर लेने की योजना बन रही है। वहीं वायुसेना के लिए हेरॉप कमिकेज अटैक ड्रोन भी खरीदे जाने हैं। बता दें कि भारतीय सेना ने पिछले महीने एक भारतीय कंपनी के साथ 140 करोड़ रुपये की डील पर हस्ताक्षर किए हैं।

इस डील के तहत एडवांस वर्जन के स्विच ड्रोन खरीदे जाएंगे। इस तरह के ड्रोन के सेना में शामिल होने से रणनीतिक स्तर पर हमारी निगरानी प्रणाली में बड़ा बदलाव आएगा। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बटालियन कमांडरों और सैन्य टुकड़ियों को पल-पल की साफ तस्वीरें मिलती रहेंगी। इधर डीआरडीओ ने बॉर्डर ऑब्जर्वेशन एंड सर्विलांस सिस्टम को लगभग पूरा कर लिया है। इसमें कई सेंसर लगे हुए हैं।

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