नाबालिग बेटी से दुष्कर्म के आरोपी पिता को आजीवन कारावास

आर जे न्यूज़-

आगरा: थाना जगदीशपुरा क्षेत्र में नाबालिग बेटी के साथ दुष्कर्म करने वाले पिता को अन्तिम सांस तक कारावास में रखने का आदेश कोर्ट ने दिया है। मां की गैर मौजूदगी में कलयुगी पिता ने 12 साल की बेटी के साथ 10 दिन दुष्कर्म किया था। स्पेशल जज (पॉक्सो एक्ट) वीके जायसवाल ने सोमवार को दुष्कर्मी पिता को आखिरी सांस तक कारावास में रखने की सजा सुनाई। पत्नी की गैर मौजूदगी में उसने 12 साल की बेटी के साथ 10 दिन तक दुष्कर्म किया था। लौटने पर मां को उसकी दरिंदगी का पता चला तो उसने 16 मई 2015 को थाना जगदीशपुरा में रिपोर्ट दर्ज कराई थी।

पेशे से जूता कारीगर शख्स की पत्नी बीमार बहन को देखने के लिए एत्माद्दौला में उसके घर गई थी। घर पर पति, बेटी और बेटा थे। दस दिन बाद लौटने पर पता चला कि बेटी गुमसुम थी, कोने में बैठकर रोती रहती थी, उसके शरीर में असहनीय दर्द हो रहा था, उसने खाना-पीना छोड़ दिया था। विशेष लोक अभियोजक (पॉक्सो एक्ट) विमलेश आनंद ने बताया कि मां के बार-बार पूछने पर उसे बेटी ने घटना की जानकारी दी कि पापा ने उसके साथ गंदा काम किया है और धमकी दी है कि अगर किसी को बताया तो जान से मार देंगे।

कोर्ट ने दोषी पर 1.80 लाख रुपये का अर्थदंड भी लगाया है। इसमें से एक लाख रुपया पीड़ित बच्ची को दिया जाएगा। जज के फैसला सुनाते ही पीड़ित लड़की की मां रो पड़ी। उसने कहा कि बेटी को न्याय मिला है, पांच साल बाद यह दिन आया है। बहुत चक्कर काटे, कभी थाने तो कभी कोर्ट लेकिन अब तसल्ली है। जब बेटी ने उसकी करतूत के बारे में बताया था, तभी प्रण ले लिया था कि  दरिंदे पति को सजा दिलाकर रहेगी।

बेटी ने बहुत दुख सहन किया। महीनों तक उसकी पढ़ाई छूटी रही थी। पीड़ित बच्ची की मां ने कोर्ट में बयान दर्ज कराया कि पति की यह पहली दरिंदगी नहीं थी। इससे चार साल पहले उसकी बहन की नाबालिग बेटी के साथ भी दुष्कर्म कर चुका था। बहन ने समाज में बदनामी के डर से रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई। उसकी बेटी ने खाना-पीना छोड़ दिया था, उसे सदमा लगा था, इसी में उसकी जान चली गई।

जज ने कहा कि पिता से ऐसे पाप की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। दुष्कर्मी पिता को सजा सुनाए जाते समय जज वीके जायसवाल ने टिप्पणी की, पिता तो बेटी का रखवाला होता है, उससे ऐसे पाप की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। पिता तो वह होता है जो बेटी के लिए सब कुछ त्याग सकता है।

उन्होंने सजा सुनाने से पहले यह कविता पढ़ी-

जब-जब जन्म लेती है बेटी, खुशियां साथ लाती है बेटी
ईश्वर की सौगात है बेटी, सुबह की पहली किरन है बेटी।
तारों की शीतल छाया है बेटी, आंगन की चिड़िया है बेटी
त्याग और समर्पण सिखाती है बेटी, नए-नए रिश्ते बनाती है बेटी।
जिस घर जाए उजाला लाती है बेटी, बार-बार याद आती है बेटी
बेटी की कीमत उनसे पूछो, जिनके पास नहीं है बेटी।

विष्णुकांत शर्मा वरिष्ठ संवाददाता आगरा

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