हवा चलने से रेत हटी तो बालू में दफन किए गए शव दिखने लगे

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले में गंगा किनारे का यह दृश्य विचलित करने वाला है। हवा चलने से रेत हटी तो बालू में दफन किए गए शव दिखने लगे। सैकड़ों की संख्या में शव गंगा किनारे दफनाए गए थे। माना जा रहा है कि लकड़ी और धन की कमी के कारण इन शवों को यहां दफन किया गया था। पिछले दिनों गंगा, यमुना और रामगंगा नदी में बड़ी संख्या में शवो को उतराते देखा गया था। योगी ने नदियों में शव बहाने पर पाबंदी लगा दी थी।

अब सरकार की सख्ती को देखते हुए नगर विकास विभाग ने निकाय स्तर पर निगरानी समितियों का गठन किया है। नगर महापौर और नगर पालिका परिषद व नगर पंचायत स्तर पर गठित समितियों का अध्यक्ष चेयरमैन को बनाया गया है। आपको बता दें कि सदियों से लोगों की आस्था के रुप में पूजी जाने वाली मां गंगा का अस्तित्व झूंसी में खतरे में हैं।

झूंसी के छतनाग गांव स्थित गंगा तट को लोगों ने कब्रिस्तान बना दिया है। वैसे तो छतनाग घाट को श्मशान घाट के रुप में ज्यादा मान्यता मिली हुई है लेकिन कोरोना संक्रमण में इन दिनों शव का अंतिम संस्कार करने के लिए पहुंचने वाले लोग शव को बालू में दफनाकर मां गंगा को प्रदूषित करने में जुटे हुए हैं।
छतनाग घाट पर गंगा तट के तकरीबन एक किलोमीटर की दूरी में सौ से ज्यादा लाशें दफनाई गई हैं। इससे स्थानीय लोगों में भारी आक्रोश व्याप्त है। लोगों ने प्रशासन से इस पर तत्काल रोक लगाए जाने की मांग की है। आदिकाल से मां गंगा हिन्दुओं के लिए आस्था का प्रतीक रही है। मां गंगा को भारतीय संस्कृति का प्राण भी कहा जाता है लेकिन इन दिनों प्रशासनिक उपेक्षा और लोगों की उदासीनता के चलते इसका अस्तित्व खतरे में है। मां गंगा की सफाई और इसे प्रदूषण मुक्त करने को केंद्र व प्रदेश सरकार की ओर से तमाम योजनाएं चलाई जा रही हैं लेकिन इसके  उलट हकीकत देखनी हो तो झूंसी के छतनाग घाट पर चले आइए।

लोग मनमाने तरीके से मां गंगा को बुरी तरह प्रदूषित करने में जुटे हुए हैं। माघ, महाकुंभ और कुंभ के दौरान छतनाग घाट तक मेला बसाया जाता है। हालांकि इस दौरान शवों का अंतिम संस्कार यहां बंद करा दिया जाता है। छतनाग श्मशान घाट पर झूंसी के अलावां जौनपुर, प्रतापगढ़, हंडिया, गोपीगंज, ज्ञानपुर, बरौत, बादशाहपुर समेत कई शहरों से लोग शवों का अंतिम संस्कार करने आते हैं। घाट के किनारे शव को जलाने के लिए लकड़ियों की भी कई टाल हैं।

इसके बावजूद कोरोना के बढ़ते संक्रमण और लोगों की भारी संख्या में हुई मौत के दौरान चंद पैसे बचाने के लिए मां गंगा को प्रदूषित करने में जुटे हुए हैं। घाट पर मां गंगा की अविरल धारा से महज दो सौ मीटर दूर पर ही तकरीबन एक किलोमीटर की एरिया में सौ से ज्यादा लाशें बेखौफ दफनाई गई हैं। इससे छतनाग गांव समेत आसपास के लोग हतप्रभ हैं। ग्रामीणों ने शवों को दफनाए जाने पर तत्काल रोक लगाए जाने की मांग की है।

तनाग श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार करने पहुंचे लोगों से जब अमर उजाला प्रतिनिधि ने बात की तो बताया कि कोरोना संक्रमण काल में काम धंधा सब चौपट है। शव का क्रिया कर्म करने में कम से कम दस से बारह हजार रुपये का खर्च आता है। जो इस वक्त उनके लिए बहुत बड़ी रकम है। इसलिए वे हिन्दू परंपरा को छोड़कर शव को रेती मेें दफनाने के लिए मजबूर हैं।

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