प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में गिरावट को लेकर काफी बवाल और बहस चल रही है। सी वोटर के साप्ताहिक सर्वेक्षण के अनुसार, मोदी की लोकप्रियता 63 प्रतिशत से घटकर 38 प्रतिशत तक आ गई है, जबकि वैश्विक संगठन मॉर्निंग कंसल्ट के अनुसार, मई 2020 के 68 फीसदी से घटकर 33 फीसदी पर आ गई है। निराशा और संकट की भयावहता को देखते हुए ये निष्कर्ष आश्चर्यजनक नहीं हैं।
महामारी की दूसरी लहर के प्रबंधन में सरकारों ने टीकाकरण को एकमात्र रामबाण मान लिया है। और वैक्सीन खरीद के प्रबंधन ने लाखों लोगों को कतार में खड़े होने को विवश कर दिया है। निस्संदेह, पूरे भारत में लोगों के दुख और गुस्से में इसकी प्रतिक्रिया दिखती है।
एक बहुविकल्पीय प्रश्न के माध्यम से जनमत सर्वेक्षण के जरिये भारत के राजनीतिक परिदृश्य के बारे में एक दिलचस्प परिप्रेक्ष्य तैयार करना दुर्लभ है। और सर्वेक्षक यशवंत देशमुख ने अपने सर्वेक्षण के माध्यम से, जिसमें 10,000 लोगों से सवाल पूछे गए, बस यही किया है। सी-वोटर सर्वेक्षणकर्ता ने पूछा, ‘आपको क्या लगता है कि भारत के प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार कौन है?’ प्रतिक्रियाओं का बारीक विवरण सारी कहानी बता रहा है।
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नरेंद्र मोदी की वरीयता 64 फीसदी से घटकर 41 फीसदी पर आ गई है। इससे ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि उत्तरदाताओं की दूसरी पसंद, लगभग 18 प्रतिशत, ‘पता विपक्ष में दूसरे के दुख से खुश होने की जो भावना दिख रही है, वह हैरान करने वाली है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की जीत के बाद विपक्षी दलों के ‘एक साथ आने’ को लेकर काफी अटकलें लगाई जा रही हैं।
खैर, ममता बनर्जी की लोकप्रियता सिर्फ तीन प्रतिशत से अधिक है और सभी उम्मीदवारों की कुल लोकप्रियता मोदी की तुलना में कम है। राहुल गांधी 11.6 प्रतिशत के साथ विपक्षी नेताओं की सूची में सबसे ऊपर हैं और अन्य इकाई अंकों की सदस्यता के मामले में सर्वश्रेष्ठ हैं। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि महागठबंधन बनने पर भी कुछ खास नहीं हो पाएगा-ऐसा कहने वालों का अनुपात आठ से 18 प्रतिशत तक बढ़ गया है।
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