भारत के वैज्ञानिक कर रहे दावे, वुहान लैब से ही लीक हुआ कोरोना वायरस, चीन की खुली पोल

आर जे न्यूज़

कोरोना वायरस के शुरुआती प्रसार को लेकर एक बार फिर तीखी बहस छिड़ गई है। पिछले साल तक जहां इसकी उत्पत्ति जानवरों से मानी जा रही थी तो अब बीते कुछ माह से वुहान प्रयोगशाला (लैब) से लीक की जांच की मांग ने जोर पकड़ लिया है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है, महामारी के चमगादड़ों से इंसानों में आने की थ्योरी दुनिया को संतुष्ट नहीं कर पाई है। ऐसे में प्रयोगशाला से प्रसार की गहन पड़ताल होनी चाहिए। इसके लिए उन्होंने कई कारण और तरीके बताए हैं।

1977 में लैब से फैला था एच1एन1
लैब दुर्घटनाएं पहले भी मानव संक्रमण का कारण बन चुकी हैं। 1977 में फैली एच1एन1 फ्लू महामारी इसका बड़ा उदाहरण है, जिसमें सात लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे। यही वजह है कि किसी भी वायरस के लैब से निकलने से पूरी तरह इनकार नहीं किया जा सकता।

आनुवांशिक हेरफेर की गुंजाइश
अब तक आनुवांशिक हेरफेर के प्रमाण तो नहीं मिले हैं लेकिन ऐसे तरीके मौजूद हैं, जिनसे वैज्ञानिक बिना किसी सबूत के वायरल अनुक्रमों को संशोधित कर सकते हैं। इनमें जीनोम को टुकड़ों में काटने के बाद एक साथ जोड़ने का तरीका शामिल है। साथ ही आईएसए प्रोटोकॉल के जरिये भी आपस में जुड़े टुकड़े स्वाभाविक रूप से सजातीय पुनर्संयोजन के माध्यम से कोशिकाओं में एक साथ आ जाते हैं। इसके अंतर्गत दो डीएनए अणु टुकड़ों का आदान-प्रदान करते हैं।

जानवरों के नमूने रहे निगेटिव
हालांकि आनुवांशिक हेरफेर संभावित लैब लीक का एकमात्र कारण नहीं है। इसके पीछे कुछ और तर्क भी हैं। वायरस के पशुजनित होने को लेकर सालभर से ज्यादा समय तक हुए गहन शोध सफल नहीं रहे। इसके लिए लगभग 30 प्रजातियों के 80 हजार जानवरों के नमूनों में से सभी का जांच परिणाम निगेटिव रहा है।

लैब में थे कोरोना के करीबी वायरस
लैब लीक की आशंका इसलिए भी उठ रही है क्योंकि वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी दक्षिणी चीन में एकत्र किए कोरोना के करीबी वायरसों पर काम कर रहा था। ऐसे में आनुवांशिक हेरफेर के अलावा जंगलों में संग्रह के दौरान या प्रयोगशाला में प्रयोग के दौरान वायरस से संक्त्रस्मण की दुर्घटना भी हो सकती है।

इन तरीकों से लगाएं पता
आखिर, लैब लीक का निश्चित रूप से कैसे पता लगाया जाए। इसके लिए कुछ तरीके हो सकते हैं। सबसे पहले तो जांचकर्ताओं के पास कोरोना अनुक्रम के डाटा के साथ-साथ चीनी शोधकर्ताओं द्वारा उपयोग किए जाने वाले विभिन्न संसाधनों तक पहुंच सुनिश्चित करनी होगी।

इनमें प्रयोगशाला नोटबुक, प्रस्तुत परियोजनाएं, वैज्ञानिक पांडुलिपियां, वायरल अनुक्रम से लेकर आदेश सूची और जैविक विश्लेषण शामिल हैं। दुर्भाग्य से सितंबर 2019 के बाद से कोरोना के अनुक्रम से जुड़े डाटाबेस तक वैज्ञानिक नहीं पहुंच पाए हैं।

प्रत्यक्ष प्रमाण के अभाव में कुछ वैकल्पिक दृष्टिकोणों से ज्यादा जानकारी मिल सकती है। संभव है कि कोरोना वायरसों के उपलब्ध अनुक्रमों का विस्तार से विश्लेषण कर वैज्ञानिक मजबूत सुरागों के आधार पर आम सहमति तक पहुंच सकते हैं। जैसा कि 1977 में एच1एन1 वायरस सहित अन्य महामारियों के लिए किया गया था।

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