सोशल मीडिया में बनते-बिगड़ते-संवरते हैं रिश्ते, जरा संभालिये और सभालिये

आर जे न्यूज़ -:

कोरोना में सोशल मीडिया 

रोज परिवार कोरोना उत्सव मनाने लगे। पकवान/ व्यंजन बनने लगे। उनकी बाकायदा थाली/प्लेटें सजाई जातीं और पोस्ट की जातीं। महिलाएं सुंदर-सुंदर कपड़े पहनतीं तैयार होतीं, साड़ी चेलेंज निभातीं। त्यौहारों पर, जन्मदिन-शादी की सालगिरह पर घरों में ही कार्यक्रम/पार्टियां होतीं। जो उपलब्ध होता उसी में आनंद लेते और आज भी ले ही रहे हैं।

अब इन सभी गतिविधियों ने आनंद तो दिया पर इसका
फिर एक वर्ग ने घोर विरोध किया।। इनका कहना था कि देश ऐसी आपदा से घिरा हुआ है, लोग भूखे मर रहे, हैं और इन्हें ऐसी भरी हुई व्यंजनों की थाली पोस्ट करते लज्जा नहीं आ रही … और भर्त्सना कर-कर के ऊधम मचा दी। एक गुट तैयार हुआ शुरू हुई टांग खिंचाई।

देश गया…राष्ट्र-भक्ति गई बस उसने पोस्ट डाली का युद्ध बिगुल बज गया। कमेन्ट बॉक्स भर गए, लाइक और इमोजी की बाढ़ आ गई। कोसने-दुलराने का, पक्ष-विपक्ष, कटाक्ष-व्यंग का घमासान हो चला। आह-वाह और कराह हो गई भाई।।।

ऐसे समय ये शोभा देता है ? विपत्ति काल है। जरा तो शर्म करें। यहां हम पुरुषों का मुद्दा छोड़ देते हैं।

केवल महिलाओं की बात करते हैं। इन हरकतों ने कईयों के बीच झगडे करवा दिए, दूसरों की वाल पर जा कर रोईं। एक दूसरे की बुराई की, भरपूर कोसा, उसको नीच, खुद को महान बताया। स्क्रीन शॉट ब्रह्मास्त्र की तरह चले। रिश्ते बिगड़े, इज्जत उतरी, पंगे हुए। इन सबमें केवल और केवल आपकी छवि बिगड़ी,

बिना कारण तनाव हुआ, समय बिगड़ा, संबंध खराब हुए सो अलग।

इस माया नगरी का यही जाल है। जो इसमें उलझता है उसे ये नगरी अपनी मिल्कियत लगने लगती है। यहां की दुनिया ने कई रिश्ते बना दिए, कई उजाड़ दिए। जानिए तो इसकी शुरुवात हुई कैसे ?

तत्पश्चात प्राचीन काल में ऋषियों व गुरुकुलों के आचार्यों की स्मृति शक्ति ही सोशल मीडिया के रूप में काम करती थी।

अब यही सब यहां भी है।
सत्यता की परख और गलती की माफ़ी। पर हमारे बीच यही गायब हो चूका है। महिलाओं पर इसका गहरा असर हुआ है। ऐसा ही एक और पसंद किया जाने वाला सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म है वाट्स अप। व्यक्तिगत और समूहों में चलाये जाने वाला। इसमें भी खूब विवाद, कहा सुनी, तानाकशी चलती है। परिवार के ग्रुप तक में सदस्यों के ग्रुप बन जाते हैं।

होते हैं। खुद तो दूसरों की तारीफ़ करते नहीं खुद के लिए पलकें बिछाए बैठते हैं और इज्जत का प्रश्न बना लेते हैं। यही हाल उनका फेसबुक पर भी होता है। परिचित व परिवार जन बहिष्कार करते हैं, ये उनकी जलन निकालने का सर्वोत्तम मार्ग होता है। इसलिए आप बाकी से भी उम्मीद न रखें।

असल में इस सोशल मीडिया से आप केवल जरुरी जानकारी लेने-देने जितना संबंध रखें। इसका अर्थ ही सामाजिकता से जुड़ाव
है न कि व्यक्तिगत। 

राजनैतिक पोस्ट से बचने में ही भलाई होती है। इसकी कुर्सी के पाये साम, दाम, दण्ड, भेद होते हैं। हम “पबलिक{पब्लिक}” है जो कई बार कुछ नहीं जानती।

तो मित्रों इन
सब मूर्खताओं से पीछा छुडाओ। सोशल मीडिया की ये टुच्ची हरकतें वास्तविक आनंद और असल मित्रों से आपको दूर करतीं हैं। अव्वल तो जो आपके साथ जीवित, साक्षात, परिजन हैं उनके साथ सुख भोगें। किसने आपको इन पर विश किया, लाईक किया, कमेन्ट किया छोड़ें। इनके चक्कर में आप उन्हें भी खो रहे हैं जो आपके अपने हैं, आपके प्यार को, आपको
प्यार करने को तरस रहे हैं और आपकी ऊंगलियां इस निर्जीव मशीन को सहला रही है। इसी मशीन में छोटों ने जान दे रखी है…। और बड़ों की जान ले रखी है।आप समझें ये केवल रिश्तों को बनाने का साधन है साधक नहीं। इसके केवल फायदों के लिए इस्तेमाल में ही समझदारी है। वर्ना घर-समाज की बर्बादी है… केवल बर्बादी….

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