केन्द्रीय मंत्रिमंडल में कसावट या तुष्टिकरण की कवायद

बहुचर्चित केन्द्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार किया गया ।उससे पहले शामिल किए गए मंत्रियों की जो क्लास ली गई वह शायद पहली बार हुआ। इसमें क्या चर्चाएं हुईं होंगी कहना मुश्किल है लेकिन जानकार यह मानते हैं कि अंदर अंदर जो सुलग रहा है उस पर पानी डालने का एक तरीका है।

तकरीबन एक घंटे चली इस मीटिंग के बाद नाकाम रहे मंत्रियों के धड़ाधड़ त्यागपत्र आने लगे। थावरचंद गहलौत तो पूर्व में ही त्यागपत्र दे चुके थे क्योंकि उन्हें कर्नाटक का कल राज्यपाल नियुक्त किया गया है।

मोदी मंत्रिमंडल से 12मंत्रियों ने इस्तीफा दिया है इसमें श्रम मंत्री संतोष गंगवार, शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, फर्टिलाइजर मंत्री सदानंद गौढ़ा, स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन, जलशक्ति मंत्रालय व सोशल जस्टिस मंत्रालय में राज्यमंत्री रतनलाल कटारिया, केंद्रीय मंत्री देबोश्री चौधरी, राज्य मंत्री संजय धोत्रे ,बाबुल सुप्रियो , रविशंकर प्रसाद,प्रकाश जावड़ेकर और राव साहब दानवे पाटिल के नाम प्रमुख रुप से शामिल हैं ।

इन इस्तीफों की वजह पिछले वर्षों में उनके काम से असंतोष होना बताया जा रहा है। इनमें स्वास्थ ,श्रम और शिक्षा मंत्रालय प्रमुख हैं।

जिन्हें मंत्रीमंडल में शामिल करना मजबूरी थी उनमें ज्योतिरादित्य प्रमुख थे । उत्तर प्रदेश से सात लोगों को मंत्री बनाना भी आगत चुनाव की मांग थी।

महाराष्ट्र में भाजपा की पतली हालत दुरुस्त करने नारायण राणे को लाना भी वहां भाजपा की मजबूती का प्रयास हुए।पिछड़ा वर्ग , अनुसूचित जाति और महिला वर्ग पर भी उदारता की वजहें साफ़ है।ओ बी सी से 27मंत्री हैं इस बार 11महिलाओं को और 5अल्पसंख्यकों मंत्री बनाया गया है।

लोजपा में फूट डालकर चिराग पासवान को चूना लगाने वाले चाचा पशुपति नाथ पारस के जरिए बिहार में नई आग पैदा करने में भाजपा ने पहल की है ।अपना दल की अनुप्रिया का साथ भी जरुरी था।ये तमाम लोग भाजपा की गिरती साख को कितना ऊपर लाएंगे यह बाद की बात है लेकिन इस सबसे अंदरूनी खाई और गहराएगी ।

बहरहाल नये मंत्रीमंडल के गठन से एक बात ज़ाहिर है जो एक दर्जन से अधिक मंत्री हटाए गए हैं वे पिछले दो वर्ष में नाकारा सिद्ध हुए हैं । लेकिन जनमानस में ये सवाल यह रह कर उभर रहा है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, गृह मंत्री अमित शाह ,रक्षा मंत्री राजनाथ और विदेश मंत्री एस जयशंकर के कार्य तो सबसे अधिक असंतोष जनक थे उन्हें क्यों नहीं बदला गया ।

दूसरी बात ये सत्ता लोलुप और पार्टी छोड़कर आए लोगों पर इतना यकीन ठीक होगा क्या ?ज्यादा पढ़े लिखे और बुजुर्गो की जगह अपेक्षाकृत प्रौढ़ मंत्रीमंडल बनाकर भी कुछ नया करने की कोशिश है पर कमांडर की शिक्षा-दीक्षा चिंताजनक है।
कुल मिलाकर नरेन्द्र मोदी की इस नई टीम से लोग कैसे आशान्वित हो सकते हैं जब मुखिया के साथियों के चेहरे भी दाग़नुमा हों। उन्हें बदला ना जाए और ऐसे लोग केबिनेट में हों जो पद के मद में राष्ट्रपति का अभिवादन ही भृल जाएं ।

इस बात की चर्चाएं भी सिंधिया खेमे में हैं कि उनसे पहले मध्यप्रदेश के डा वीरेंद्र कुमार को शपथ दिलाना महाराजा की तौहीन है।महाराज को आखिरकार देर सबेर उनकी कांग्रेस से गद्दारी का प्रतिफल मिल ही गया ।

हालांकि अभी 26मंत्री और बनाए जा सकते हैं उम्मीद है ये पद पार्टी के अंदर असंतुष्टों के संतुलन और अन्य दलों से पलायन वालों के लिए सुरक्षित रखें गए हैं।कुल 81मंत्रियों की जगह है, अभी 78 मंत्री ही बने हैं।

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