वो मौत का कुआं और वो शोक में डूबा गांव..

रवि से शिरू रवि पर ही ख़त्म हो गई कहानी..

विदिशा जिले के गंजबासौदा कस्बे से करीब एक डेढ़ किलोमीटर पक्की सडक पर चलने पर ही पडता है..शहर से पाँच कि.मी.की दूरी पर लाल पठार गांव..। गांव के रास्ते में हर तरफ़ पुलिस ही पुलिस का पहरा था.. सरकार और प्रशासन का ऐसा कोई अधिकारी नहीं था,जो वहां पर शुक्रवार की रात से लेकर शनिवार की रात तक मौजूद ना हो.. तकरीबन हजार लोगों की आबादी वाले इस गांव में गुरुवार की शाम तकरीबन 6:00 बजे थे और एक आठ वर्षीय बालक कुएं में जा गिरा और उसे बचाने को लेकर कई लोगो ने रस्सी तो कई लोगो ने जाल डाल कर पकड़ने की कोशिश की लेकिन बचाने के चक्कर में लोग उस कुए की मेड जिसपर ऊपर से छत टाइप की थी उस पर तक़रीबन 40 से पचास लोग चढ़ गए और देखते ही देखते वह कुआ काल के गाल में समा गया..!

इस बड़ी घटना के होने के चन्द घंटो बाद शहर के आलाधिकारी से लेकर भोपाल से कई मंत्री आई जी.डी.आई.जी.से लेकर पुलिस प्रशासन के हाथ पैर फूला दिये थे। इसलिये ये सख्ती और चुस्ती दिख रही थी। गांव की सकरी गलियों में घुसते ही माइक हाथ में देख दो लोगों ने हाथ पकडकर कहा कि भाईसाहब आप ये जरूर बताना कि यदि हमारे गांव में पीने के पानी की व्यवस्था होती तो ये हादसा नहीं होता और इतने सारे लोगों की जान नहीं जाती। गांव में सिर्फ दो कुएं हैं एक उस तरफ ओर ये दूसरा जिसमें इतने सारे लोग गिर गये कि अब तो ये भी खत्म हुआ ही समझो। कुछ लोग कुए के पानी में डूब कर मर गये..हम बाकी अब प्यास से मरेंगे..। हमें तो घटनास्थल पर पहुंचने की जल्दी थी तो हां-हां कह कर हाथ छुडा कर भागे।

उफ वो घटनास्थल क्या था..?गांव के किनारे की एक तरफ कुछ मकान तो तीन तरफ से खेतों से घिरा कुआं था जिसका अब नामोनिशान ही मिटा दिया गया। चार जेसीबी और दो बड़ी पोकलेन मशीन अपनी भारी घड़घड़ाहट के साथ उस कुएं को चौडा कर गीली मिट्टी और मलबा किनारे लगाने में जुटी थी। हर तरफ पुलिस के जवान तमाशबीनों को रोकते हुये डटे थे…। आपदा प्रबंधन में माहिर एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के जवानों की निगरानी में राहत और बचाव कार्य देर रात से जारी था….यह आलम गुरुवार रात को हुये हादसे के बाद जो तीन शव जो रात में ही निकाले गये थे उसके बाद से शुक्रवार की दोपहर तक और कोई शव नहीं निकाला जा सका था। इससे गांव वालों का धीरज जवाब दे रहा था जो गांव के लोग रात से लेकर सुबह तक पुलिस प्रशासन और प्रेस को सहयोग की मुद्रा में दिख रहे थे.. अब वो बात बात पर उत्तेजित हो रहे थे।

टीवी कैमरों को देख कर भडक रहे थे… घटनास्थल पर जाकर देखा तो वो मौत का कुआ था.. जिसमें गुरुवार की रात रवि अहिरवार गिरा तो उसे बचाने आये तीस लोग फिर कुएं का स्लैब टूटने से कुएं में गिर गये थे.. इनमें से उन्नीस तो किसी तरह फिर निकल आये थे बाकी के लोगों को निकालने की कोशिश जारी थी। इस कुएं से थोड़ी दूरी पर कुएँ के चारों तरफ रेलिंग लगाकर रोका गया था मगर उन्हीं रैलिंग में सिर फंसा फंसा कर कहीं औरतें सुबक(शिस्क) रहीं थीं तो कहीं पुरूष..। इसी रेलिंग को पार कर पार्वती कुये के पास एक मकान की छांव में बैठी हुई थी.. आंखों के आंसू रो रोकर सूख चुके थे…गले से आवाज नहीं निकल पा रही थी कुछ पूछो तो हाथों के इषारे से ही बता रहीं थी..हमारे पाठको को बता दें की उनका चौदह साल का नाती कुएं में जा गिरा है। जैसे ही इस घटना का पता चला है तभी रात से यहीं जमकर बैठी हैं और उस अभागे कुए कि तरफ टकटकी लगाकर देखे जा रहीं है..! जिसने इनके कलेजे के टुकडे को लील लिया..।

गांव की ओर औरतें भी कुएं से थोड़ी दूर पर खड़ी हैं और कैमरे देखते ही भडक उठती हैं रात से अपनी फिल्म बनवा रहे हैं अब नहीं… बनवानी हमारे लोगों को जिंदा निकाल दो तो हम मानें बडी मीडिया वाले हो।हमारी आँखें भी नम होती जा रही थी.. मगर ये तो सब जान रहे थे कि अब किसी का भी जिंदा निकलना नामुमकिन ही है। बस इंतजार है लाशों का कितनी और किसकी निकलती है। गांव में सर्वे करवाया गया तो करीब ग्यारह लोग लापता है, जिसका अंदेशा इस कुएं में डूबने का था। और गांव क्या था..?पठारी इलाके में बसे कुछ पच्चीस पचास उंचे नीचे कच्ची गलियों के बीच पत्थरों से बने छोटे-छोटे मकान। इन मकानों में बच्चे ही खेलते दिख रहे थे। पुरुष और महिलाएं कुएं के पास ही रात से डेरा जमाये थीं। कुछ के लोग लापता थे तो कुछ के जवान बच्चे। कोई रो रहा था तो कोई किसी को सहारा दे रहा था।

गांव में रात के बाद से शायद ही किसी घर में चूल्हा जला होगा। भूखे बच्चे हम अजनबियों को देख देखकर सहम रहे थे। कुएं के पास ही उस रवि का घर था जो कुएं में पहले गिरा। कच्चे कबेलू वाले छोटे से घर में रवि की मां पछाड़ खाकर बेसुध पड़ी थी। उनको सहारा दे रही पास बैठी औरत ने बताया कि कल शाम छह बजे से ही यही हालत है बेटा नहीं मिला तो जान दे देंगी इतना चाहती थी छोटे बेटे रवि को। इस छोटी सी बस्ती में हर घर में मातम है किसी का सगा तो किसी का नाते रिश्ते वाला उस मौत के कुएं में गिरा है। हर थोड़ी दूर पर घरों के अंदर से महिलाओं के दहाड मारकर रोने की आवाजें लगातार आ रहीं थीं।

लाल पठार के उस मौत के कुएं ने शुक्रवार की रात तक ग्यारह लाशें उगलीं। मरने वालों के परिजनों को सीएम से लेकर पीएम तक ने रस्मी राहत का ऐलान किया। मगर उस गांव से लौटने में ये एहसास हो रहा था कि ये दर्दनाक कहानी लाल पठार की नहीं उन सभी गांवों की है जहां पर पानी की किल्लत साल भर बनी रहती हैं। गांवों में सरकारी कागजों में नलकूप और हैंडपंप बने और खुदे हैं मगर असल में वो या तो होते नहीं या फिर बिगडे होते हैं। जिनको सुधारने की सुध किसी को नहीं। लाल पठार में भी इस हादसे के बाद गांव के लोगों को पीने के पानी के लिये नलकूप की खुदाई शनिवार शाम से शुरू हो गयी। हमारी सरकार मूलभूत सुविधाओं के लिये भी हादसों का इंतजार करती है। हद है …..

नितिन योगी 

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