कृषि कानूनों की वापसी को लेकर जाने लखीमपुर के किसानों की प्रतिक्रिया

लखीमपुर की अनाज मंडी में बड़े-बड़े धान के ढेर लगे हुए हैं. धान के फसल कट चुकी है और अब किसान अपनी फसल बेचने के लिए मंडियों का रुख़ कर रहे हैं शुक्रवार को प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी के कृषि क़ानून वापस लेने वाले ऐलान के बाद हम लखीमपुर की मंडी समिति पहुंचे और यह जानने की कोशिश की कि क्या देश विदेश में सुर्ख़ियों में छाया हुआ यह मुद्दा वाक़ई में उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए एहमियत रखता है या नहीं

किसानों को ढूंढते हुए हम मंडी के उस हिस्से में पहुँचते जहाँ पर धान की बोली लग रही थी. यहाँ पर मौजूद सभी किसान प्राइवेट मिल वालों को अपना धान बेच रहे थे धान की एमएसपी 1940 रुपये प्रति क्विंटल तय हुई है. लेकिन यहाँ बोली 1300 रुपये प्रति क्विंटल से शुरू हो रही थी.हमारे सामने बालक राम नाम के किसान की फसल की बोली लगी और उसका दाम 1400 रुपये प्रति क्विंटल तय हुआ, जो सरकारी दाम से 540 रुपये कम था  यानी कि नुकसान का सौदा यह नुकसान का सौदा करने के लिए बालक राम को 88 किलोमीटर दूर पड़ोस के बहराइच ज़िले से आना पड़ा.

उनके मुताबिक़ किसान बहराइच में नहीं बेच पा रहे हैं इसलिए लखीमपुर लेकर आए हैं45 बीघा खेती वाले बालक राम से कृषि क़ानूनों के बारे में पूछे जाने पर वह कहते हैं कि उन्हें कृषि कानूनों के बारे में और उससे जुड़े किसान आंदोलन के बारे में जानकारी नहीं है

बालक राम कहते हैं, हमें कृषि क़ानून के बारे में जानकारी नहीं है. हम बस खेती करते हैं, उसके अलावा कुछ नहीं जानते हैं. पिताजी स्टेट फार्म में नौकरी करते थे, उसी से रिटायरमेंट हुआ है, घर आए हैं और ज़मीन खरीदी. आज सिर्फ 35 क्विंटल धान बेंचे हैं

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किसान बालक राम के मुताबिक़, यह सौदा भले ही मजबूरी और नुकसान का हो लेकिन अगर नकद पैसे मिलकर धन बिक रहा है तो बेचना ही सही है बालक राम कहते हैं,  हमें जो रेट मिल रहा है उससे हम संतुष्ट हैं  हमें दस के जगह आठ मिल जाए लेकिन हम संतुष्ट हैं  यह नहीं कि हमें 10 रुपया मिले लेकिन 10 महीने बाद मिले. कम से कम खेती आगे चलती रहेगी  प्रमोद कुमार वर्मा लखीमपुर के बड़े किसान हैं और वह भी अपनी धान की फसल बेचने के लिए मंडी में आये हैं

लखीमपुर में हुई हिंसा की घटना और उसमे मारे जाने वाले लोगों की घटना पर वह कहते हैं कानून वापस लेने का फ़ैसला सही है. किसानों की माँगें जायज़ थीं. लखीमपुर में हुई घटना का दबाव भी रहा. आगामी चुनाव हैं, उसका दबाव है तभी इन्होंने कानून वापस ले लिए है. यह तो इनकी मजबूरी थी, अगर वापस नहीं लेते तो UP चुनाव हार जाते

हम बड़े किसान हैं लेकिन हमें अपना धान बेचने में बहुत ज़्यादा मुश्किल हो रही है. एक दाना नहीं बिक पा रहा रहा है, ना गेहूं का ना धान. हम तो सरकारी कांटे पर ले जाते हैं. लेकिन वहाँ जब कोई ख़रीद ही नहीं रहा है तो किसको दे दें. प्राइवेट में मजबूरी है, चाहे 1000 में बिके या 1100 में बिके. कुछ जगह तो 600  रुपये में धान बिक रहा है

लखीमपुर में  आठों विधायक भाजपा के हैं.

प्रमोद वर्मा कहते हैं कि यह देर आये दुरुस्त आये वाली स्थिति नहीं है. देर वाकई में हो गयी है और वह कहते हैं, इसका सरकार पर बिलकुल राजनीतिक असर पड़ेगा. क़ानून कहता है कि 14 दिन में पेमेंट होना चाहिए. फ़ैक्ट्री बंद पड़े हैं. क्या वे 14 दिन में पेमेंट करवाने वाला क़ानून फ़ॉलो कर पाए आज तक? बस मजबूरी है

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