उत्तर-प्रदेश में वायु प्रदूषण के लिए 3 साल पहले बनी नीत दबी रही फाइलों में

नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तीन साल पूरे होने के बाद भी उत्तर प्रदेश में न तो कोई मजबूत नीति बन सकी और न ही वायु प्रदूषण को लेकर कोई स्पष्ट आंकड़ा उपलब्ध है डब्ल्यूएचओ के मानकोंं पर अगले एक दशक में सांस लेने लायक वायु गुणवत्ता का स्तर बनाये रखने के लिए जो भी तात्कालिक और दीर्घकालिक लक्ष्य निर्धारित किये जाएं उसे पूरा करने के लिए प्राधिकरणों और संबंधित संस्थानों को कानूनी रूप से बाध्याकारी बनाया जाए। रिपोर्ट की अन्य सिफारिशों में यह भी कहा गया है कि सीपीसीबी द्वारा विकसित “प्राण” पोर्टल में वित्तीय वितरण तथा उपयोग को पारदर्शी करने के साथ साथ ट्रैकिंग संकेतकों तक पहुंच को भी सबके लिए सुलभ बनाया जाए।

वायु प्रदूषण हर साल रिकार्ड स्तर पर लोगों की जान ले रहा है। ऐसे में भारत की जनता नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम को ‘एक और सरकारी दस्तावेज’ की तर्ज पर नहीं ले सकती। यह लोगों के स्वास्थ्य और जीवन से जुड़ा मामला है। सुनील दहिया का कहना है कि “अगर कोई वायु प्रदूषण को कम करने के लिए बनाये गये नियमों या कानूनों का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करने के लिए स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर सरकारों और विभागों के बीच तेज गति से कार्य करने के लिए समनव्य स्थापित करना होगा।

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