भाजपा अपने मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्रियों के लिए सुरक्षित सीट की तलाश में तो नहीं थी?

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी चाहे जितना दावा कर ले परंतु वह अपने मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री के लिए सुरक्षित सीटें चाहती है क्यों कि उत्तर प्रदेश में मुकाबला बहुत कड़ा होने वाला है इसलिए भाजपा अपने बड़े नेताओं को सेफ करके उन्हें पूरे प्रदेश में प्रचार के लिए छूट का अवसर प्रदान करना चाहती है

इसीलिए गोरखपुर सदर का चुनाव छठे चरण में और सिराथू का पांचवें चरण में होने जा रहा है. लेकिन पार्टी ने फिर भी अपने दोनों बड़े चेहरों का टिकट घोषित कर दिया पार्टी ने शनिवार को 403 में से 105 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम जारी कर दिए हैं. माना जा रहा है पार्टी अपने दूसरे डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा के लिए भी लखनऊ में एक सुरक्षित सीट ढूंढ रही है उसकी घोषणा भी जल्द हो जाएगी

गोरखपुर योगी आदित्यनाथ का गृह ज़िला है और उसे ‘सीएम सिटी’ का दर्जा भी हासिल है. फ़िलहाल वो एमएलसी रह कर मुख्यमंत्री बने हैं, लेकिन माना जा रहा है कि गोरखपुर से चुनाव लड़ने और जीतने में उन्हें महारत हासिल है.

योगी आदित्यनाथ 1998 से लेकर 2017 तक लगातार पांच बार गोरखपुर से सांसद रह चुके हैं और सीएम बनने के बाद ही उन्होंने वो सीट खाली की. उसके तुरंत बाद उनके मुख्यमंत्री रहते ही 2018 के लोकसभा उपचुनाव में संजय निषाद ने इस सीट पर बीजेपी उम्मीदवार को हरा दिया.संजय निषाद की पार्टी का अब बीजेपी से गठबंधन है

निषाद ख़ुद एक एमएलसी हैं. उनके बेटे प्रवीण निषाद भाजपा के टिकट पर 2019 में संत कबीर नगर से सांसद बने.गोरखपुर मंडल की नौ में से आठ सीटें अभी बीजेपी के क़ब्ज़े में हैं. गोरखपुर की सिर्फ चिल्लूपार सीट से बसपा के विधायक विनय शंकर तिवारी विधायक हैं, लेकिन अब वो भी सपरिवार समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुके हैं

तिवारी परिवार का गोरखपुर और आसपास के इलाक़े की राजनीति पर काफ़ी असर रहा है. इसके मद्देनज़र सपा को गोरखपुर में काफ़ी मज़बूती मिलती दिख रही है इसके अलावा योगी आदित्यनाथ को सिटिंग विधायक राधाचरण अग्रवाल कि अंदर ही अंदर बगावत का भी मुकाबला करना होगा

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